प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) सोमवार (24 फरवरी) को इतिहास के सबसे बड़े झुमुर (जिसे झुमइर या झुमोर भी लिखा जाता है) कार्यक्रम के साक्षी बने.
असम के चाय उद्योग की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित झुमइर बिनंदिनी 2025 (Jhumoir Binandini 2025) में गुवाहाटी के सरुसजाई स्टेडियम में करीब 8 हज़ार से अधिक युवाओं ने पीएम मोदी और 50 से अधिक देशों के राजदूतों के सामने अपना पारंपरिक झुमइर नृत्य प्रस्तुत किया.
पीएम मोदी के इस कार्यक्रम में शामिल होने पर कई लोगों का मानना
पिछले साल जून में लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्य की अपनी पहली यात्रा पर मोदी का सरुसजाई स्टेडियम में जोरदार स्वागत किया गया और स्टेडियम में ढोल की ध्वनि और “ऐतिहासिक” झुमुर नृत्य के प्रतिभागियों की लयबद्ध ताल से गूंज उठा.
प्रधानमंत्री ने असम की विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में अपनी सरकार के प्रयासों को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है और यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में चराइदेव मैदाम (Charaideo Maidam) को शामिल किए जाने की सराहना की.
उन्होंने इस उपलब्धि का श्रेय भाजपा सरकार की सक्रिय भागीदारी को दिया.
मोदी ने इस दौरान कहा, “एक समय था जब पूर्वोत्तर के विकास और संस्कृति को नजरअंदाज किया जाता था, लेकिन आज मोदी खुद पूर्वोत्तर की संस्कृति के ब्रांड एंबेसडर बन गए हैं…भाजपा सरकार असम का विकास कर रही है और चाय समुदाय की सेवा भी कर रही है…मुझे यकीन है कि पूरा भारत और दुनिया आज का झुमोर नृत्य देखेगी.”
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी चाय समुदाय की लंबे समय से लंबित मांगों जैसे कि चाय बागान श्रमिकों की दैनिक मजदूरी बढ़ाकर 351 रुपये प्रतिदिन करने या चाय जनजाति को एसटी का दर्जा देने पर बिना कुछ कहे ही लौट गए.
जबकि मोदी के गुवाहाटी पहुंचने से कुछ घंटे पहले दिल्ली में आयोजित कांग्रेस की प्रेस वार्ता में ये मुद्दे उठाए गए थे.
हालांकि, प्रधानमंत्री ने चाय बागान श्रमिकों के वेतन में वृद्धि पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि असम चाय निगम ने बोनस की शुरुआत की है, जिससे विशेष रूप से महिला श्रमिकों को लाभ होगा.
प्रधानमंत्री ने कहा, “श्रमिकों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से विशेष रूप से महिला कर्मचारियों के लिए बोनस की घोषणा की गई है. इसके अतिरिक्त, 1.5 लाख गर्भवती महिलाओं को उनके चिकित्सा व्यय का समर्थन करने के लिए 15 हज़ार रुपये मिल रहे हैं.”
प्रधानमंत्री मोदी ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पर केंद्र के फोकस पर भी प्रकाश डाला.
उन्होंने कहा, “असम सरकार चाय जनजाति क्षेत्रों में 350 से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिरों का निर्माण कर रही है. और 100 से अधिक मॉडल चाय बागान स्कूल पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं और 100 अन्य का निर्माण कार्य प्रगति पर है. इसके अलावा, हमने इस समुदाय के युवाओं के लिए ओबीसी श्रेणी की 3 फीसदी सीटें आरक्षित की हैं.”
स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि राज्य सरकार चाय जनजाति समुदाय के भीतर उद्यमशीलता के प्रयासों का समर्थन करने के लिए 25 हज़ार रुपये प्रदान कर रही है.
मोदी ने आखिर में कहा कि चाय उद्योग का विकास असम की प्रगति को आगे बढ़ाएगा. पूर्वोत्तर नई ऊंचाइयों को छूने के लिए तैयार है.
वहीं इससे पहले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि सभी प्रतिभागियों को 25,000-25,000 रुपये मिलेंगे और 800 चाय बागानों को झुमोर के अभ्यास और प्रचार के लिए जरूरी संगीत वाद्ययंत्र खरीदने के लिए 25,000-25,000 रुपये मिलेंगे.
यह एक बहुत बड़ी पहल है क्योंकि विधानसभा चुनाव में बस एक साल बाकी है. चाय जनजातियां 126 निर्वाचन क्षेत्रों में से करीब 35 में निर्णायक भूमिका निभाती हैं.
राजनीति से परे आइए जानते हैं कि असम की चाय जनजाति का झुमइर नृत्य क्या है, लेकिन उससे पहले जानते हैं चाय बागान समुदाय के बारे में…
चाय बागान समुदाय कौन है?
“चाय जनजाति” शब्द का मतलब चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों और उनके वंशजों के बहु-सांस्कृतिक, बहु-जातीय समुदाय से है. ये लोग मध्य भारत से आए थे, जो ज़्यादातर वर्तमान झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से थे और 19वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए जा रहे चाय बागानों में काम करने के लिए असम में बस गए थे.
यह प्रवास अक्सर मजबूरी में होता था और जब ऐसा नहीं होता था, तब भी यह ज्यादातर शोषणकारी परिस्थितियों में होता था. प्रवासी न केवल चाय बागानों में बहुत कम वेतन पर बेहद खराब परिस्थितियों में काम करते थे, बल्कि वे जाने के लिए भी स्वतंत्र नहीं थे.
असम की यात्रा के दौरान और चाय बागानों में बीमारियों से हज़ारों लोग मर गए और सैकड़ों लोगों को बागानों से भागने की कोशिश करने के लिए ब्रिटिश बागान मालिकों द्वारा मार दिया गया या क्रूरतापूर्वक दंडित किया गया.
आज इन लोगों के वंशज मुख्य रूप से ऊपरी असम के तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, शिवसागर, चराईदेव, गोलाघाट, लखीमपुर, सोनितपुर और उदलगुरी और बराक घाटी में कछार और करीमगंज जिलों में बसे हैं.
वर्तमान में उन्हें राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का दर्जा प्राप्त है. जबकि वे लंबे समय से अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) का दर्जा पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
असम में बड़े चाय बागान समुदाय का हिस्सा मुंडा या संथाल जैसी जनजातियों को उन राज्यों में एसटी का दर्जा प्राप्त है जहां से वे मूल रूप से आए हैं.
असम के चाय जनजाति और आदिवासी कल्याण निदेशालय की वेबसाइट के मुताबिक, ‘ये लोग न सिर्फ राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं बल्कि राज्य के चाय उत्पादन में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं.’ लेकिन इसके बावजूद सामाजिक-आर्थिक रूप से वे हाशिए पर हैं और राज्य में सबसे गरीब लोगों में से हैं.
असम के चाय बागानों में आदिवासी ज़्यादातर शोषणकारी परिस्थितियों में काम करते हैं. कठिन शारीरिक श्रम के बदले में चाय बागान उन्हें सिर्फ़ दो वक्त की रोटी मुहैया कराते हैं, जबकि उनके पास तरक्की और समृद्धि की कोई संभावना नहीं है.
उनमें से कई लोग चाय बागानों में काम करना छोड़ कर दूसरे क्षेत्रों में मज़दूरी कर रहे हैं. महंगाई के इस दौर में ब्रह्मपुत्र घाटी में चाय मजदूरों को सिर्फ़ 250 रुपये और बराक घाटी में 220 रुपये मिलते हैं.
2014 के चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने मज़दूरी बढ़ाकर 350 रुपये प्रतिदिन करने का वादा किया था, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. चाय मजदूर सिर्फ़ 351 रुपये प्रतिदिन की मज़दूरी मांग रहे हैं. लेकिन सरकार उन्हें ये बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने में विफल रही है.
झुमुर नृत्य क्या है?
चाय बागान समुदाय अपने घरों से असम में सांस्कृतिक प्रथाओं का एक विविध संग्रह लेकर आया. इस संबंध में झुमुर परंपरा बेहद ख़ास है.
झुमुर सदान जातीय भाषाई समूह का लोक नृत्य है, जो अपनी उत्पत्ति छोटानागपुर क्षेत्र से मानते हैं. आज यह असम में चाय बागानों के श्रमिकों द्वारा मनाए जाने वाले “चाय बागानों के त्योहारों” या त्योहारों में एक केंद्रीय स्थान रखता है. सबसे महत्वपूर्ण त्योहार तुशु पूजा और करम पूजा हैं, जो आने वाली फसल का जश्न मनाते हैं.
झुमुर नृत्य में महिलाएं मुख्य नर्तकियां और गायिकाएं होती हैं. जबकि पुरुष पारंपरिक वाद्ययंत्र जैसे कि मादल, ढोल या ढाक (ड्रम), झांझ, बांसुरी और शहनाई बजाते हैं.
पहना जाने वाला पहनावा समुदाय दर समुदाय अलग-अलग होता है. हालांकि लाल और सफ़ेद साड़ियां महिलाओं के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय हैं.
नर्तक कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते हैं और सटीक कदमों के साथ एक समान पैटर्न में चलते हैं और अपनी मूल भाषाओं नागपुरी, खोरठा और कुरमाली में दोहे गाते हैं. असम में इनका विकास असमिया से काफी हद तक उधार लेकर हुआ है.
यह नृत्य समावेशिता, एकता और सांस्कृतिक गौरव की भावना का प्रतीक है और असम के समन्वित सांस्कृतिक मेलजोल का प्रतीक है. यह सामाजिक बंधन और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के साधन के रूप में काम करता है.
वैसे तो असम में झुमुर गीतों का विषय उत्साहपूर्ण धुनों और जीवंत लय के साथ होता है. लेकिन अक्सर गंभीर हो सकता है.
गुवाहाटी विश्वविद्यालय की शोधार्थी निधि गोगोई ने अपने शोधपत्र ‘झुमुर लोक परंपरा: असम में चाय समुदाय की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान’ (2022) में लिखा है, “ये गीत चाय बागान श्रमिकों के जीवन के बारे में बताते हैं और उनकी दरारों को उजागर करते हैं… [और] हमें उनके प्रवास के इतिहास और शोषणकारी श्रम संबंधों के बारे में बहुत कुछ बताते हैं.”
इस तरह यह परंपरा सामाजिक सामंजस्य के साधन के रूप में भी काम करती है, खासकर चाय बागान समुदायों के विस्थापन के इतिहास को देखते हुए.
इसने न सिर्फ उनकी संस्कृति और पहचान के पहलुओं को बनाए रखने में मदद की, बल्कि उनके पूर्वजों ने जिस दुनिया में खुद को पाया, उसे समझने में भी मदद की.