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आदिवासियों की आवाज़ दबाने को कोशिश, विरोध कर रहे कार्यकर्ताओं पर हत्या का आरोप

गिरफ्तारी के बाद इन कार्यकर्ताओं को बिसरा पुलिस स्टेशन में 15 दिन की हिरासत में भेज दिया गया था. इन्हें न तो एफआईआर की कॉपी दी गई, न ही किसी को यह बताया गया कि इन्हें कहां कैद रखा गया है.

28 मार्च को ओडिशा के राउरकेला में 21 आदिवासी कार्यकर्ताओं को बिसरा पुलिस ने गिरफ्तार किया. उनका जुर्म यह कि उन्होंने राज्य के सुंदरगढ़ जिले में बोंडामुंडा और उसके आसपास से विस्थापित हुए आदिवासियों के विरोध का नेतृत्व किया था.

इनमें कार्यकर्ता डेमे ओराम भी शामिल हैं, जो लगभग 700 आदिवासियों और अंचलिक सुरक्षा समिति के सदस्यों के साथ, 16 मार्च से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं. यह लोग विस्थापन का विरोध कर रहे हैं, और चाहते हैं कि अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की सिफारिशें लागू की जाएं.

गिरफ्तारी के बाद इन कार्यकर्ताओं को बिसरा पुलिस स्टेशन में 15 दिन की हिरासत में भेज दिया गया था. इन्हें न तो एफआईआर की कॉपी दी गई, न ही किसी को यह बताया गया कि इन्हें कहां कैद रखा गया है.

एफआईआर, जो अब उपलब्ध है, में कई गंभीर आरोप हैं. इसमें दर्ज मामले (आईपीसी) की धारा 147 (दंगा करने की सजा), 148 (घातक हथियार से लैस दंगा करना), 149 (सामान्य मकसद के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए गैरकानूनी सभा करना), 186 (लोक सेवक के काम में बाधा डालना), 294 (सार्वजनिक स्थान पर अश्लील काम या गाने), और 307 (हत्या की कोशिश) शामिल हैं.

पुलिस का कहना है कि गिरफ्तारियां इसलिए की गईं क्योंकि समूह ने बिसरा में कुकुड़ा गेट पर एक सड़क ओवरब्रिज के निर्माण में अवैध रूप से बाधा डाली. हालांकि, कार्यकर्ताओं का दावा है कि गिरफ्तारियां आदिवासियों को धमकाने और उनकी जमीन पर जबरदस्ती कब्जा करने के लिए की गई हैं.

आदिवासियों के समर्थन में जारी एक बयान में कहा गया है, “ओडिशा सरकार और रेलवे प्राधिकरण द्वारा आदिवासियों की जमीन पर जबरन कब्जा करने के लिए भारी पुलिस बल की तैनाती के साथ धमकी देने की कोशिश की जा रही है. बोंडामुंडा में और उसके आसपास की करीब 4000 एकड़ जमीन, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के प्रावधानों के तहत बोंडामुंडा में (ए) मार्शलिंग यार्ड स्थापित करने के लिए 1956-64 में कथित तौर पर अधिग्रहित की गई थी.”

बयान में अधिग्रहण की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए गए हैं. इसके अलावा बयान में दावा है कि इस इलाके की आदिवासी आबादी मुआवजे और पुनर्वास के लिए लंबे समय मांग कर रही है, लेकिन इन मांगों को लगातार नजरअंदाज किया गया है.

कार्यकर्ताओं का कहना है कि ओराम ने इस तरह की पुलिस कार्रवाई की अपेक्षा की थी, और एनसीएसटी को स्थिति से अवगत कराया था. ओराम ने सुंदरगढ़ निर्वाचन क्षेत्र के सांसद जुअल ओराम से भी संपर्क किया था और कार्रवाई करने के लिए नागरिक समाज समूहों के साथ एकजुटता की अपील की थी.

मार्शलिंग यार्ड के लिए भूमि अधिग्रहण के मुद्दे को एनसीएसटी के सामने उठाए जाने के बाद, आयोग ने 2018 में जगह का दौरा किया था.

इसके बाद आयोग ने आदेश जारी कर कहा था, “कई गांवों में, भूमि विस्थापित व्यक्ति (Land Displaced Person) दयनीय हालत में रह रहे हैं जहां उन्हें कोई सुविधा नहीं दी गई है. एनसीएसटी की 2018 की सिफारिशें हैं, जिसमें हर विस्थापित आदिवासी परिवार को पांच एकड़ असिंचित ज़मीन और दो एकड़ सिंचित ज़मीन के आवंटन का प्रावधान शामिल है. इसके अलावा, आदिवासियों की बेदखली पर रोक है.”

कार्यकर्ताओं के लिए एक जमानत याचिका ओडिशा की एक अदालत ने 31 मार्च को खारिज कर दिया था.

(यह खबर द वायर में आज छपी है.)

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