कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि अगर उनकी पार्टी गुजरात में सरकार बनाने में कामयाब रहती है तो रीवर लिंकिंग प्रोजेक्ट बंद कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की ज़मीन और पानी पर आदिवासियों का हक़ है.
हाल ही में गुजरात में पार-तापी नदी जोड़ने के मसले पर आदिवासियों ने ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन किया था. इसके बाद सरकार ने इस प्रोजेक्ट पर काम की शुरुआत को टाल दिया.
गुजरात विधानसभा के चुनाव में बीजेपी-आप के बाद आज कांग्रेस पार्टी ने आदिवासी इलाक़ों में प्रचार अभियान शुरू कर दिया. अपनी परंपरागत वोट बैंक को वापस लाने के प्रयास में कांग्रेस आज से आदिवासी सत्याग्रह सम्मेलन की शुरुआत करने जा रही है.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज इस सिलसिले की शुरुआत दाहोद में एक रैली से की है. कांग्रेस का आदिवासी सत्याग्रह आज से अगले 6 महीने तक चलेगा. उमरगाव से अंबाजी तक के आदिवासी बेल्ट पर चलने वाले इस कार्यक्रम की शुरुआत दाहोद से की गई है.
गुजरात की स्थापना से 2001 तक इस बेल्ट पर कांग्रेस का परचम लहराता रहा. लेकिन 2001 के बाद बीजेपी ने भी आदिवासी वोट बैंक में अपनी जड़े जमा रखी है.
कांग्रेस और बीजेपी की लड़ाई में AAP भी कूद चुकी है
इस साल के अंत तक गुजरात विधानसभा के चुनाव है. पंजाब में जीत मिलने के बाद आम आदमी पार्टी पहली बार गुजरात में अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. स्वाभाविक तौर पर पहली बार त्रिकोणीय जंग होने जा रहा है.
नरेन्द्र मोदी 20 अप्रैल को दाहोद में आदिवासियों के बीच कार्यक्रम कर चुके हैं. इतना ही नहीं, पीएम नरेंद्र मोदी इस क्षेत्र में 21 हजार करोड़ से भी ज्यादा राशि के विकास कार्यो का लोकार्पण और शिलान्यास कर चुके हैं.
तो वहीं गुजरात में जड़े जमाने का प्रयास कर रही आम आदमी पार्टी की ओर से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 1 मई के दिन ही आदिवासी बेल्ट के भरूच के चंदेरिया में बड़ी रैली की थी. वहीं, भारतीय ट्राईबल पार्टी के मुखिया छोटुभाई वसावा से मंच साझा करके आप के साथ गठबंधन की घोषणा की थी.
भरूच जिले में आदिवासी आरक्षित दो सीटों पर छोटुभाई वसावा और उनके बेटे महेश वसावा का कब्जा है. स्वाभाविक तौर पर आप के साथ गठबंधन कर के अपने आदिवासी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने का पहला कदम उठाया.
सभी के लिए आदिवासी क्यों है ज़रूरी
182 सीटों वाली विधानसभा में आदिवासियों के लिए 27 सीटें आरक्षित हैं. साल 2002 के पहले विधानसभा हों या लोकसभा आदिवासी परंपरागत तौर पर कांग्रेस की वोट बैंक हुआ करती थी.
कांग्रेस हर चुनाव के वक्त प्रचार की शुरुआत भी इसी आदिवासी इलाकों से ही करती थी. फिर साल 2001 में नरेंद्र मोदी की एंट्री के बाद कांग्रेस की इस वोट बैंक में बीजेपी ने बहुत बड़ा बदलाव किया.
वन बंधु योजना के नाम पर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आदिवासी इलाके में बीजेपी को पकड़ दिलाई. कांग्रेस के हाथ से धीरे-धीरे आदिवासी वोट बैंक खिसकने लगा.
हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 17 सीटें इसी इलाके से मिली थीं. लेकिन 17 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के दो विधायकों ने इस्तीफा देकर बीजेपी जॉइन कर ली है. वहीं कांग्रेस के आदिवासी विधायक अनिल जोषियारा का निधन हो गया.
आदिवासी बेल्ट पर अधिकांश सीटें हासिल करने के लिए 2020 में जीतू चौधरी नाम के कांग्रेसी विधायक को इस्तीफा दिलवाकर बीजेपी ने टिकट देकर न सिर्फ विधायक बनाया, बल्कि उन्हें भूपेन्द्र पटेल सरकार में मंत्री भी बनाया.
साबरकांठा की खेडब्रह्मा सीट से लगातार 3 बार चुनाव जीतने वाले अश्विन कोटवाल भी हाल ही में कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. गुजरात में जनसंख्या के आधार पर देखें तो कुल मतदाताओं का 14 प्रतिशत मतदाता आदिवासी है.
विकसित माने जाने वाले गुजरात में आदिवासी इलाकों में आज भी पानी, शिक्षण, स्वास्थ्य एवं रोजगार को लेकर बड़ा मुद्दा है. वहीं जंगल और जमीन हर चुनाव का आदिवासी इलाके में मुद्दा बनता रहा है.