त्रिपुरा में बीजेपी ने 32 सीटें जीतकर बहुमत हासिल कर लिया है और लगातार दूसरी बार उसकी सरकार रिपीट हुई है. फिर भी बीजेपी की जीत से ज्यादा राज्य में टिपरा मोथा पार्टी की चर्चा है, जो दो साल पहले ही बनी थी और अब 13 सीटें जीत कर अपनी जोरदार मौजूदगी दर्ज कराई है. टिपरा मोथा के खाते में 19 फीसदी वोट है और यह स्थिति तब है जब वह 42 सीटों पर ही लड़ी थी. इस लिहाज से देखा जाए तो उसका स्ट्राइक रेट काफी अच्छा है.
ऐसे में अपने पहले विधानसभा चुनाव में 13 विधायकों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरे टिपरा मोथा ने रविवार को कहा कि वह बीजेपी के साथ आमने-सामने बैठक करने को तैयार है ताकि समस्याओं का संवैधानिक समाधान निकाला जा सके.
त्रिपुरा के शाही प्रद्योत किशोर देबबर्मन द्वारा संचालित पार्टी ने सरकार में शामिल होने के बीजेपी के प्रस्ताव को तब तक अस्वीकार कर दिया है जब तक कि उसे “ग्रेटर टिपरालैंड” पर स्वदेशी आबादी के लिए एक अलग राज्य का लिखित आश्वासन नहीं मिल जाता.
देबबर्मन ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में कहा, “अगर हमें संवैधानिक अधिकारों – आर्थिक, राजनीतिक, भाषाई पर बातचीत के लिए सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया जाता है तो हम आएंगे. हम मिट्टी के पुत्र हैं…हम स्वदेशी लोगों की समस्याओं का संवैधानिक समाधान खोजने के लिए बातचीत के लिए तैयार हैं. और बातचीत मंत्री पद या व्यक्तिगत लाभ के बारे में नहीं हो सकती है.”
साथ ही उन्होंने आश्वासन दिया कि उनकी पार्टी उन लोगों को निराश नहीं करेगी जिन्होंने इसके लिए मतदान किया. उन्होंने चेतावनी भी दी कि जो कोई भी त्रिपुरा पर अपने स्वदेशी लोगों की उपेक्षा करके शासन करना चाहता है उसे राज्य को सुचारू रूप से चलाने में मुश्किल होगी.
टिपरा मोथा का बैठकर बातचीत करने का विचार असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के इस बयान के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा कि पार्टी की चिंताओं को बातचीत के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए. हालांकि, उन्होंने एक अलग आदिवासी राज्य के लिए किसी भी बातचीत से इनकार किया.
सरमा, जो बीजेपी के नेतृत्व वाले एनईडीए (एनई में एनडीए के समकक्ष) के संयोजक भी हैं, ने शनिवार को कहा कि केंद्र और त्रिपुरा में नई सरकार को टिपरा मोथा द्वारा उठाए गए मुद्दों को हल करने की जरूरत है.
सरमा ने कहा कि त्रिपुरा राज्य को विभाजित किए बिना हम आदिवासी लोगों की शिकायतों को हल करने के लिए उनके साथ बैठकर बात करने के लिए तैयार हैं. लेकिन हम ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की बात नहीं कर सकते, चर्चा अधिक स्वायत्तता और सशक्तिकरण पर हो सकती है.
उन्होंने कहा, “भाजपा का मानना है कि त्रिपुरा आज जैसा है वैसा ही रहेगा लेकिन टिपरा मोथा द्वारा उठाए गए मुद्दों को भी हल करने की जरूरत है. मुझे उम्मीद है कि नई सरकार निश्चित रूप से शिकायतों को सुनेगी. चुनाव खत्म हो गए हैं. साथ काम करने में कोई बुराई नहीं है. मूल निवासियों से संबंधित मुद्दों को एक जगह बैठकर सुना जा सकता है.”
बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार 8 मार्च को त्रिपुरा में दूसरे कार्यकाल के लिए पद की शपथ लेगी, जबकि मेघालय और नागालैंड में 7 मार्च को नई सरकारें शपथ लेंगी.