केरल में महामारी की वजह से बंद हुए स्कूलों को फिर से खोलने की तैयारियां ज़ोरशोर से चल रही हैं. लेकिन राज्य के आदिवासी छात्रों की मुश्किलें शायद फ़िलहाल ख़त्म नहीं होंगी.
ख़ास आदिवासी छात्रों को स्कूल जाने के लिए ट्रांस्पोर्ट सुविधा सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार की ‘गोत्र सारथी’ फ़िलहाल धर में लटकी है. परियोजना को कारगर करने के लिए स्थानीय निकायों के पास फ़ंड्स नहीं हैं. और इसका सीधा असर लगभग 20,000 आदिवासी छात्रों पर पड़ेगा.
यह परियोजना अनुसूचित जनजाति विकास विभाग द्वारा सीधे चलाई जानी थी, लेकिन फिर इसे एक स्पेशल सर्कुलर के ज़रिए स्थानीय निकायों को सौंप दिया गया. स्थानीय निकायों ने इस अनुमान के चलते कि महामारी की वजह से स्कूलों को खोलने में समय लगेगा, इस परियोजना के लिए फ़ंड निर्धारित नहीं किया.
जिन निकायों ने फ़ंड निर्धारित किया थी, उन्होंने मामूली राशि ही अलग रखी.
गोत्र सारथी परियोजना का मुख्य उद्देश्य दुर्गम इलाक़ों और जंगलों में रहने वाले आदिवासी छात्रों को स्कूलों तक ले जाना है, ताकि इन छात्रों की स्कूल छोड़ने की दर को कम किया जा सके. महामारी से पहले लगभग 18,486 छात्र इस योजना का फ़ायदा उठा रहे थे. तब 478 स्कूलों की लगभग 696 बसें चल रही थीं. आलप्पुझा को छोड़कर, केरल से सभी ज़िलों में ऐसी बस सेवाएं चल रही थीं.
गोत्र सारथी परियोजना में इस साल भी कम से कम इतने ही छात्रों के शामिल होने की उम्मीद है, लेकिन बसों की संख्या बढ़ानी होगी, ताकि कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा सके. लेकिन फ़िलहाल तो इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए कोई क़दम नहीं उठाए जा रहे.
अब जब स्कूल फिर से खुलने के कगार पर हैं, तो अनुसूचित जनजाति विकास विभाग ने स्थानीय निकायों और ज़िला कलेक्टरों को गोत्र सारथी सेवाएं फिर से शुरू करने के निर्देश दिए हैं.
ज़्यादातर स्थानीय निकायों ने इस निर्देश पर प्रतिक्रिया नहीं दी है. जिन्होंने दी है, उनमें से कई ने कहा है कि परियोजना को आगे बढ़ाने में कई बाधाएं हैं. उनका कहना है कि फ़ंड्स का आवंटन फिर से करना होगा, और यह नए बजट में ही हो सकता है.
वायनाड और कासरगोड ज़िलों ने आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जनजाति विकास विभाग को सूचित कर दिया है कि फ़ंड की कमी उन्हें परियोजना को रोकने के लिए मजबूर कर रही है.
कोविड महामारी की वजह से शिक्षा के ऑनलाइन शिफ़्ट होने से ही आदिवासी छात्रों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. ज़्यादातर आदिवासी छात्रों के पास इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं हैं, और अगर हैं तो इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी उन्हें परेशान करती है.
संसाधनों की कमी की वजह से कई आदिवासी छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा, जबकि कई छात्रों को पढ़ाई पूरी तरह से छोड़नी पड़ी है.
और अब जब स्कूल खलुने वाले हैं, और उनके लिए पढ़ाई फिर से शुरु करने का मौक़ा है, तो ट्रांस्पोर्ट की कमी की मार उन्हें पीछे धकेल रही है. अगर जल्द ही कोई समाधान नहीं निकाला गया, तो एक बार फिर आदिवासी छात्रों की शिक्षा प्रभावित होगी. आदिवासी छात्रों को स्कूलों में वापस लाने के लिए गोत्र सारथी सेवाओं को फिर से शुरू करना बेहद ज़रूरी है.