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गोवा: मंत्री के वादों के चार महीने बाद भी कारला आदिवासी गांव में कुछ नहीं बदला

प्रकृति की गोद में रहने वाले कारला के आदिवासी लोगों के पास कोई भी आधुनिक बुनियादी सुविधा नहीं है. कोई मोटर योग्य सड़क गांव तक नहीं पहुंचती. काजुर से कारला की ओर जाने वाली लगभग चार किलोमीचर लंबी मिट्टी से बनी कच्ची सड़क पर चलना कोई आसान काम नहीं है. सड़क पर गड्ढे ज़्यादा हैं, और बाइक की सवारी भी जोखिम भरी है.

चार महीने पहले गोवा के आदिवासी कल्याण मंत्री गोविंद गौडे ने दुर्गम पहाड़ी गांव कारला का दौरा करते हुए गांव के आदिवासियों से एक वादा किया था. वादा यह था कि कई बुनियादी सुविधाओं का काम जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा. इसमें सबसे ज़रूरी काम है गांव तक सड़क संपर्क.

लेकिन यहां के लोगों को सरकार की उदासीनता का कितना अंदाज़ा है, यह इस बात से पता चलता है कि 94 साल के कारला के एक निवासी भोमो गांवकर ने गौडे के आश्वासन को एक राजनेता की खाली बयानबाजी के रूप में उसी समय खारिज कर दिया था. और वो सही भी साबित हुए, क्योंकि अब तक कुछ नहीं हुआ है.

भोमो ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बातचीक के दौरान कहा, “हम जानते हैं कि यह चुनाव का समय है, और वे फिर से वही आश्वासन देंगे. अगर उन्होंने यह सड़क बनाई होती जैसा कि पहले वादा किया था, तो मुझे इतनी दिक्कत नहीं होती. मैं अब सिर्फ़ मौत का इंतज़ार कर रहा हूं.”

भोमो, जो अपने बांए पैर में सेप्सिस से जूझ रहे हैं, पूरी तरह से गलत नहीं हैं. गौडे ने पिछले हफ्ते कहा था कि चूंकि अब मॉनसून ख़त्म हो गया है, तो सड़क की हॉटमिक्सिंग का काम जल्द ही पूरा किया जाएगा. एक बार सड़क बन गई, तो बिजली और पानी की आपूर्ति से जुड़े अन्य मुद्दों को उठाया जा सकता है.

प्रकृति की गोद में रहने वाले कारला के आदिवासी लोगों के पास कोई भी आधुनिक बुनियादी सुविधा नहीं है. कोई मोटर योग्य सड़क गांव तक नहीं पहुंचती. काजुर से कारला की ओर जाने वाली लगभग चार किलोमीचर लंबी मिट्टी से बनी कच्ची सड़क पर चलना कोई आसान काम नहीं है. सड़क पर गड्ढे ज़्यादा हैं, और बाइक की सवारी भी जोखिम भरी है.

संगुम के नेत्रावली जंगलों के अंदर स्थित इस गांव से सबसे क़रीब का अस्पताल लगभग 25 किमी दूर क्यूपेम या कर्चोरेम में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है. स्वास्थ्य सुविधाओं तक आसान पहुंच न होने की वजह से, भोमो को अपने सेप्सिस के लिए पारंपरिक हर्बल दवाओं पर निर्भर रहना पड़ रहा है.

भोमो कहते हैं, “घाव अब धीरे-धीरे ठीक हो रहा है, और मैं बड़ी मुश्किल से कुछ क़दम चल पा रहा हूं. लेकिन हमारी सरकार ने जिस सड़क का वादा किया था, उसका क्या हुआ?” सड़क के अभाव में स्वास्थ्य इमरजेंसी में ग्रामीण असहाय हो जाते हैं, क्योंकि कोई भी एम्बुलेंस वहां नहीं पहुंच सकती.

गोविंद गौडे ने चार महीने पहले गांववालों से कई वादे किए थे

दूसरी तरफ़ गांव के छात्रों के लिए सबसे नज़दीक का प्राइमरी स्कूल काजुर में है, और पास का हाई स्कूल मैना में है. कारला में रहने वाले हाई स्कूल के छात्र, जिनकी संख्या दस के आसपास है, स्कूल जाने के लिए घने जंगलों से होकर जाने वाला एक रास्ता पकड़ते हैं. इसपर नीचे उतरने में चालीस मिनट, और ऊपर चढ़ने में डेढ़ घंटा लगता है.

यह रास्ता मॉनसून के दौरान जोखिम भरा होता है, क्योंकि इसपर पानी भर जाता है और ख़तरनाक फिसलन हो जाती है.

हायर सेकेंडरी और कॉलेज की शिक्षा के लिए, या खरीदारी के लिए यात्रा करने वाले स्थानीय लोगों के लिए रास्ता काजुर वाली 4 किलोमीटर लंबी कच्ची सड़क है, जहां से उन्हें कॉलेज की बसें या सार्वजनिक परिवहन तिलमोल (जो 20 किमी दूर है) या कुरचोरम (जो 25 किमी दूर है) के लिए मिलती हैं.

कौरेम-पिरला पंचायत के तहत आने वाले पूरी तरह से आदिवासी आबादी वाले इस गांव की आबादी 100 से ज़्यादा है, और यहां लगभग 20 घर हैं.

बिजली की कटौती, जो अक्सर पेड़ गिरने की वजह से होती है, यहां आम बात है. इससे रात में या अंधेरा छा जाना के बाद पढ़ाई लगभग असंभव है. और छात्रों को स्कूल तक आने-जाने में ही इतना समय लग जाता है कि उनकी पढ़ाई अधर में लटकी है.

पीने के पानी की बात करें तो नल का सप्लाई तो यहां नहीं है. गांव का इकलौता पीना के पानी का स्रोत दूर का एक कुआं है.

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