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तेलंगाना: चेंचू आदिवासियों के लिए बनी खास योजना हुई रद्द, आजीविका पर होगा गहरा असर

इन आदिवासियों के लिए सरकार ने 2009 में इस परियोजना को शुरू किया था. इसका मकसद चेंचू आदिवासियों की आजीविका में मदद करना और उनके बीच कुपोषण को दूर करना था.

तेलंगाना के नल्लमला जंगलों में रहने वाले पीवीटीजी चेंचू आदिवासियों की आजीविका को प्रभावित करने वाला एक बड़ा फैसला सरकार ने लिया है.

नल्लमला में रहने वाले करीब 7,400 चेंचू आदिवासियों के लिए खासतौर पर बनी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (MGNREGS) – विशेष चेंचू परियोजना को इस साल बंद कर दिया गया है.

नागरकुरनूल और नलगोंडा जिलों में फैले नल्लमला जंगल में रहने वाले इन आदिवासियों के लिए सरकार ने 2009 में इस परियोजना को शुरू किया था. इसका मकसद चेंचू आदिवासियों की आजीविका में मदद करना और उनके बीच कुपोषण को दूर करना था.

यह योजना तत्कालीन आंध्र प्रदेश के पांच जिलों को कवर करते हुए आईटीडीए श्रीशैलम के तहत शुरू की गई थी. शुरुआत में, मनरेगा के तहत काम पर जाने वालों को दिहाड़ी के बजाय ‘खाद्य टोकरी’ दी जाती थी.

2010 के बाद से, उन्हें काम के लिए पैसा दिया जाने लगा. काम शुरू करने से पहले ही इन आदिवासियों को एक हजार रुपए एडवांस में दिए जाते थे, ताकि वो राशन खरीद सकें, और कुपोषण को दूर कर सकें.

चेंचू आदिवासियों के बीच कुपोषण एक बड़ी समस्या है. इन आदिवासियों की औसत उम्र 40-45 साल ही है.

2015 से 2017 के बीच पैसों का भुगतान ग्राम आयोजकों के माध्यम से किया जाने लगा, और 2018 से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर प्रणाली शुरू होने के बाद, मजदूरी सीधे उनके बैंक खातों में जमा की जा रही थी.

अप्पापुर चेंचू पेंटा (बस्ती) के सरपंच बाला गुरुवैया ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “चेंचू को प्रवासी मजदूरों के रूप में जाना जाता है, जो सालाना काम की तलाश में दूरदराज की जगहों की यात्रा करते हैं. इस योजना की मदद से इनका माइग्रेशन काम हुआ था, और चेंचू अपने इलाकों में ही टिक पा रहे थे.”

इस विशेष परियोजना के तहत हर घर से मजदूरी चाहने वाले हर आदमी या औरत को साल में 180 मानव-दिवस काम का आश्वासन दिया गया था. जबकि मनरेगा के तहत सिर्फ 100 दिन के काम का आश्वासन दिया जाता है.

इसके अलावा, उनके बीच कुपोषण को देखते हुए, उन्हें यह छूट थी कि वह 70 प्रतिशत काम भी पूरा करें तो काफी था, और उन्हें पूरे दिन का वेतन मिलेगा.

चेंचू आदिवासियों ने पिछले दशक में इस योजना के तहत सड़क बनाने से लेकर सिंचाई टैंक बनाने तक कई काम किए हैं, जिनसे उनके ही समुदाय को फायदा मिला है. लेकिन सरकार के इस ताजा फैसले से वो यह सब विशेष प्रावधान खो देंगे.

अधिकारी नई योजना के कार्यान्वयन को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि योजना को चलाने के लिए अपनाई जा रही कार्यप्रणाली स्पष्ट नहीं है. इससे पहले 11 जूनियर तकनीकी सहायक चेंचू समुदाय से काम पर रखे गए थे. इनका अब आगे क्या होगा, यह भी साफ नहीं है.

फिलहाल विशेष परियोजना के तहत 24 स्टाफ काम कर रहे हैं, जो 97 चेंचू बस्तियों को कवर करते हैं. इनमें से कई बस्तियां गहरे जंगल के अंदर स्थित हैं.

विशेष चेंचू परियोजना को अब नियमित मनरेगा कार्यों में तब्दील करने से जुड़े तकनीकी मुद्दों को छोड़ भी दिया जाए, तो भी इस बदलाव से इन आदिवासियों की आजीविका पर कितना गहरा असर पड़ेगा, ये चिंता की बात है.

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