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सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा को लेकर सुरक्षा और राहत उपायों की ताजा रिपोर्ट मांगी

अपनी स्टेटस रिपोर्ट में सरकार ने कहा था कि कुल 318 राहत शिविर बनाए गए हैं और इसमें 47,914 से ज्यादा लोग रह रहे हैं. कुल 626 एफआईआर अभी तक दर्ज की गई हैं. राशन, भोजन, पानी और चिकित्सा देखभाल और दवाओं की व्यवस्था जिलाधिकारियों द्वारा अनुविभागीय मजिस्ट्रेटों, कार्यकारी मजिस्ट्रेटों और संबंधित लाइन विभागों के जिलास्तरीय अधिकारियों के साथ जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा की जा रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मणिपुर सरकार से राज्य में हिंसा से प्रभावित मैतेई और कुकी समुदायों के लिए उठाए गए सभी सुरक्षा, राहत और पुनर्वास के प्रयासों की ताजा रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है.

भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की एक पीठ ने कहा कि कानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य का विषय है और सुप्रीम कोर्ट यह सुनिश्चित करेगा कि राजनीतिक कार्यपालिका इस मामले पर आंख न मूंदे.

सीजेआई ने कहा, ‘हम नहीं कह सकते कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है. कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है. एक शीर्ष अदालत के तौर पर हम सुनिश्चित करेंगे वे इस पर आंखें न मूंदे. एक अदालत के तौर पर हमें यह भी समझना होगा कि कुछ मामले राजनीतिक हाथ में सौंपे जाते हैं.’

इससे पहले केंद्र और राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में एक रिपोर्ट फाइल की थी और बताया था राज्य के हालात सुधर गए हैं.

अपनी स्टेटस रिपोर्ट में सरकार ने कहा था कि कुल 318 राहत शिविर बनाए गए हैं और इसमें 47,914 से ज्यादा लोग रह रहे हैं. कुल 626 एफआईआर अभी तक दर्ज की गई हैं.

इसमें कहा गया है, ‘राशन, भोजन, पानी और चिकित्सा देखभाल और दवाओं की व्यवस्था जिलाधिकारियों द्वारा अनुविभागीय मजिस्ट्रेटों, कार्यकारी मजिस्ट्रेटों और संबंधित लाइन विभागों के जिलास्तरीय अधिकारियों के साथ जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा की जा रही है. राज्य सरकार ने राहत उपाय के लिए 3 करोड़ रुपये की आकस्मिक निधि भी स्वीकृत की थी. हलफनामे में कहा गया है कि राज्य सरकार ने विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास निधि (एमपी लाड) का 25 प्रतिशत संबंधित विधानसभा क्षेत्रों में राहत उपायों के लिए खर्च करने का फैसला लिया है.’

हलफनामे में कहा गया है, ‘राज्य के गृह विभाग ने डीजीपी और सभी जिला एसएसपी को क्षेत्राधिकार पर ध्यान दिए बिना रिपोर्ट किए गए सभी मामलों को लेकर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश जारी किए थे और अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने को कहा था. अभी तक 626 एफआईआर दर्ज की गई हैं. प्रशासन ने 1,070 की बड़ी संख्या में लोगों से फायरआर्म्स, 27,110 गोला बारूद भी छीने और इसके अलावा 456 की बड़ी संख्या में फायरआर्म्स, 6,819 गोला बारूद भी बरामद किया है.’

पीठ ने यह भी कहा कि वह मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले से पैदा हुए कानूनी मुद्दों से नहीं निपटेगी, जिसने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के लिए केंद्र से सिफारिश करने को कहा है, क्योंकि आदेश को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं वहां की बड़ी खंडपीठ में लंबित हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने मैतेई और कुकी समुदायों की सुरक्षा आशंकाओं को ध्यान में रखा और आदेश दिया कि मुख्य सचिव और उनके सुरक्षा सलाहकार राज्य में ‘शांति और सौहार्द’ सुनिश्चित करने को लेकर आकलन करेंगे और कदम उठाएंगे. इसमें कहा गया है कि आदिवासी कोटे के मुद्दे पर अपनी शिकायतों के साथ वे मणिपुर उच्च न्यायालय की खंडपीठ में जा सकते हैं.

जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की खंडपीठ ने मणिपुर हाई कोर्ट के 27 मार्च के सिंगल-जज के आदेश पर गंभीर विचार किया, जिसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए एक सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था.

सीजेआई ने कहा, “मुझे लगता है कि हमें एचसी के आदेश पर रोक लगानी होगी. हाई कोर्ट का आदेश बिल्कुल गलत है..गलत है.”

सीजेआई ने टिप्पणी की, ‘हमें मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाना पड़ेगा. यह तथ्यात्मक रूप से एकदम गलत है और हमने जस्टिस मुरलीधरन को उनकी गलती सुधारने का समय दिया और उन्होंने नहीं किया. हमें अब इसके खिलाफ कड़ा रुख अपनाना होगा. साफ है कि हाईकोर्ट के जज अगर संविधान पीठ के फैसलों का पालन नहीं करते हैं तो हम क्या करें…यह एकदम साफ है.’

पीठ ने कोई रोक नहीं लगाई और इस बात पर ध्यान दिया कि एकल जज के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष अपील दायर की गई है व सुनवाई की अगली तारीख 6 जून तय की गई है. इसमें कहा गया है कि पीड़ित पक्ष के लोग खंडपीठ के समक्ष अपना मामला पेश कर सकते हैं.

केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समय बढ़ाने के लिए एकल जज के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था और न्यायाधीश ने एक वर्ष तक सिफारिश भेजने के निर्देश पर विचार करने का समय दिया है. उन्होंने कहा कि जमीनी स्थिति को देखते हुए सरकार ने आदेश पर रोक लगाने की मांग नहीं की और सिर्फ एक्सटेंशन की मांग की थी क्योंकि यह जमीनी स्थिति पर असर डालेगा.

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पूरी निष्पक्षता के साथ, सरकार का यह फैसला महज एक्सटेंशन की मांग का था क्योंकि यह एक जनजाति बनाम दूसरी जनजाति का मामला है.

वहीं मैतेई समुदाय के एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि म्यांमार से अवैध अप्रवासी आ रहे हैं और वे मणिपुर में बसना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि वे अफीम की खेती में शामिल हैं और इस तरह ये उग्रवादी शिविर वहां बढ़ रहे हैं. म्यांमार से उग्रवादी शिविर आ रहे हैं यह बड़ी समस्या है.

सॉलिसिटर जनरल ने कुमार से सहमत होते हुए कहा कि म्यांमार से अवैध प्रवासन की चिंता सही है.

पीठ ने मामले को अब जुलाई के पहले सप्ताह में सुनवाई के लिए टाल दिया है.

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हुई हिंसा के दौरान जान गंवाने वाले और सम्पत्ति के नुकसान पर चिंता जताई थी और जोर दिया था वहां स्थिति सामान्य करने के लिए समुचित उपाय किए जाएं.

शीर्ष अदालत मणिपुर में हिंसा से जुड़ी कई सारी याचिकाएं पर सुनवाई कर रही थी.

दरअसल, 27 मार्च को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का निर्देश दिया था.

मणिपुर में 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) की एक रैली के बाद हिंदू मैतेई और इसाई जनजाति कुकी के बीच हिंसा भड़क उठी थी. कई दिनों तक पूरे राज्य में हिंसा की स्थिति बनी रही और स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए केंद्र सरकार को अर्धसैनिक बलों को तैनात करना पड़ा.

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