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तमिलनाडु: पत्थरों के डर से तिरुपुर गांव के आदिवासी खुले में सोने को मजबूर

आदिवासी परिवारों ने रात में अपने घरों में नहीं रहने का फैसला किया है. वहीं पुरुष खेत में अस्थायी आश्रयों में रहते हैं, जबकि महिलाएं और बच्चे सामुदायिक हॉल में रहते हैं.

तमिलनाडु के तिरुपुर में उडुमलपेट के पास एक आदिवासी बस्ती, पूचिकोट्टमपरई में 25 से अधिक परिवार, अपने घर के अंदर सोते हुए डरते हैं क्योंकि अक्सर पास की पहाड़ी से पत्थर लुढ़कते रहते हैं. उन्होंने सरकार से उन्हें स्थानांतरित करने और उनकी जान बचाने का अनुरोध किया है.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, एक स्थानीय निवासी एन मणिकंदन ने कहा कि मुथुवन जनजाति के 35 से अधिक परिवार पूचिकोट्टमपराई में रहते हैं, जो उदुमलाईपेट से 12 किलोमीटर दूर है. लेकिन भारी बारिश से पश्चिमी घाट में मामूली भूस्खलन हो रहा है और जिसके चलते इन बस्तियों में अशांति पैदा हो गई है.

हालांकि कुछ समय पहले तक ये कोई समस्या नहीं थी लेकिन पिछले कुछ दिनों में बड़े-बड़े पत्थर और चट्टानें गिरने लगी हैं. क्योंकि ज्यादातर घर मिट्टी, लाठी और छोटी चट्टानों का इस्तेमाल करके बनाए गए हैं. इसलिए पत्थर इस बस्ती में रहने वाले आदिवासियों के बीच दहशत पैदा कर रहे हैं.

तमिलनाडु हिल ट्राइब्स एसोसिएशन (तिरुपुर) के अध्यक्ष के. सेल्वम ने कहा, “परिवारों ने रात में अपने घरों में नहीं रहने का फैसला किया है. जबकि पुरुष खेत में अस्थायी आश्रयों में रहते हैं, महिलाएं और बच्चे सामुदायिक हॉल में रहते हैं. सरकार को चाहिए कि इन परिवारों के पुराने  पट्टे को रद्द कर उन्हें दूसरी जगह पट्टा के साथ जमीन आवंटित की जाए.”

तिरुपुर जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा, “आदिवासी बस्तियों में उचित जगह निरीक्षण के बाद पट्टा आवंटन किया जाता है. अधिकारियों की एक टीम मौके का दौरा करेगी और स्थिति का आकलन करेगी. हमें आदिवासी संघ से पुराने पट्टे को रद्द करने की याचिका मिली है और नए पट्टे के लिए अनुरोध. टीम की रिपोर्ट के आधार पर वन विभाग से परामर्श के बाद कार्रवाई की जाएगी.”

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