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तमिलनाडु: यहां के आदिवासी पहाड़ी चढ़ते-उतरते वक्त जान हथेली पर लेकर चलते हैं

थिलाई बस्ती में 240 से अधिक परिवार रहते हैं. यहां के निवासियों को दुर्गम इलाके से होकर लगभग छह किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है और महीने का राशन लेने के लिए कनारू को पार करना पड़ता है.

तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के जर्थनकोल्लई पहाड़ी (Jarthankollai hill) पर बसे 18 बस्तियों में दिन-ब-दिन सैकड़ों आदिवासियों को जान की बाजी लगानी पड़ती है. क्योंकि ढलान पर चढ़ते समय तलहटी में थूथिकाडु की ओर जाने वाली कोई उचित सड़क नहीं है. कोई दूसरा विकल्प नहीं होने के कारण उन्हें मुश्किल परिस्थितियों और प्राकृतिक बाधाओं से लड़ना पड़ता है. जब वे रोजाना एक-एक कदम उठाते हैं और बेस तक पहुंचने के लिए मिट्टी की सड़क पर थेलाई के रास्ते होकर 10 किलोमीटर चलते हैं.

जर्थनकोल्लई की रहने वाली मीना ने कहा, जो अपने घर वापस जाते समय अपने सिर पर एक बैग रखे हुए थी, “हमारे पास वाहन नहीं है और गांव तक पहुंचने के लिए पैदल ही चलना पड़ता है. हम अपनी यात्रा सुबह शुरू करते हैं और जब तक हम अपने घर पहुंचेंगे तब तक दोपहर हो चुकी होगी.”

साथ ही एक कनारू जो पहाड़ी से नीचे बह रहा है वो कई जगहों पर मिट्टी की सड़क को काटता है जिससे उनकी यात्रा और मुश्किल हो जाती है. थिलाई बस्ती में 240 से अधिक परिवार रहते हैं. यहां के निवासियों को दुर्गम इलाके से होकर लगभग छह किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है और महीने का राशन लेने के लिए कनारू को पार करना पड़ता है क्योंकि यह गांव थुथिकाडु ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है.

अपनी मुश्किलों के बारे में विस्तार से बताते हुए थुथिकाडु ग्राम पंचायत के अध्यक्ष, डी बाबू ने कहा, “मेरी पत्नी को प्रसव पीड़ा हो रही थी और मैंने एक आपातकालीन वाहन के लिए फोन किया था. लेकिन कनारू पार करते समय वह फंस गया और मुझे उसे अपने दोपहिया वाहन पर थिलाई से नीचे ले जाना पड़ा. हम जानते हैं कि यह एक जोखिम भरा सफर है लेकिन कोई दूसरा विकल्प हमारे पास नहीं है.”

उन्होंने कहा कि उनकी एकमात्र मांग थिलाई के रास्ते होते हुए जर्थनकोल्लई और थुथिकाडु के बीच एक उचित सड़क बनाने की है. चिन्नाथट्टनकुट्टई, पुधुर, चिन्नाकनिची, मुथनकुदिसाई, पट्टीकुडिसाई, येरीमेडु आदि के आदिवासी भी इसी मुद्दे का सामना कर रहे हैं.

डी बाबू ने कहा कि वन विभाग से मंजूरी मिलने के बाद मिट्टी की सड़क बनाई गई थी. लेकिन हम वन विभाग और जिला प्रशासन से एक स्थायी समाधान यानि एक उचित सड़क बनाने का अनुरोध कर रहे हैं.

संपर्क करने पर वेल्लोर के जिला वन अधिकारी (DFO) प्रिंस कुमार ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमें खंड विकास कार्यालय (BDO) से एक पत्र मिला जिसमें छह मीटर की सड़क बनाने की मंजूरी मांगी गई थी लेकिन हम (जिला कार्यालय) क्लीयरेंस नहीं दे सकते क्योंकि उनका अनुरोध मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है. वन अधिकार अधिनियम के तहत तीन मीटर की बात आती है तो हम निर्णय ले सकते हैं.”

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