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तेलंगाना: वन रेंजर की हत्या के लिए आदिवासी समुदाय को बेदखल करने के पंचायत के प्रस्ताव को हाईकोर्ट ने किया रद्द

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि बेदखली के आदेश ने 2018 का पंचायत राज अधिनियम, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006 का उल्लंघन किया है.

तेलंगाना हाई कोर्ट ने मंगलवार, 6 दिसंबर को राज्य के भद्राद्री-कोठागुडेम जिले में एक ग्राम पंचायत द्वारा पारित एक प्रस्ताव को रद्द कर दिया. इस प्रस्ताव में गुट्टी कोया आदिवासी समुदाय को बेदखल करने का आह्वान किया गया था.

जस्टिस ललिता कन्नगंती ने इस तरह के आदेश पारित करने पर बेंदलपडु ग्राम पंचायत के अधिकार पर सवाल उठाया. प्रस्ताव में गुट्टी कोया को छत्तीसगढ़ राज्य में भगाने का आह्वान किया गया था.

जहां से इस समुदाय को राज्य प्रायोजित सलवा जुडुम मिलिशिया और माओवादी समूहों के बीच संघर्ष के कारण 2000 के दशक के मध्य में पलायन करने के लिए मजबूर किया गया था.

पंचायत ने नवंबर के अंतिम हफ्ते में वन रेंज अधिकारी श्रीनिवास राव की हत्या के मद्देनजर प्रस्ताव पारित किया था. पुलिस ने हत्या के सिलसिले में गुट्टी कोया समुदाय के दो लोगों को गिरफ्तार किया था.

वन रेंज अधिकारी की हत्या के परिणामस्वरूप जनजातीय समुदाय के खिलाफ जनमत बना है और साथ ही स्थानीय स्तर पर ‘पोडू खेती’ के ज्वलंत मुद्दे को भी सामने लाया है.

इन लोगों में से एक कवासी हाडमा के नेतृत्व में गुट्टी कोया समुदाय के तीन सदस्यों ने प्रस्ताव का विरोध करते हुए हाई कोर्ट का रुख किया.

याचिकाकर्ताओं के वकील चिक्कुडु प्रभाकर ने उस कानून के बारे में जानना चाहा जिसके तहत इस तरह का प्रस्ताव पारित किया गया था. उन्होंने स्पष्ट किया कि पुलिस ने हत्या के सिलसिले में पहले ही गिरफ्तारियां कर ली हैं.

उन्होंने कहा कि ऐसे में पूरे गुट्टी कोया समुदाय को दोष देने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले के कई उदाहरणों में याद दिलाया है कि पंचायतों के पास किसी के खिलाफ बेदखली नोटिस जारी करने की ऐसी शक्ति नहीं है.

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सरपंच और पंचायत सचिव ने बिना ग्राम पंचायत कराए ही प्रस्ताव पारित किया था.

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि बेदखली के आदेश ने 2018 का पंचायत राज अधिनियम, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006 का उल्लंघन किया है.

हालांकि, तेलंगाना के वन अधिकारियों का दावा है कि पशु चराई को लेकर वन अधिकारी और आरोपी के बीच असहमति के कारण हत्या हुई थी लेकिन इससे तेलंगाना में विवादास्पद ‘पोडू’ मुद्दा एक बार फिर सामने आ गई है.

पोडू खेती कृषि का एक पारंपरिक रूप है जिसे स्थानीय समुदाय पूर्वी घाट और आसपास के क्षेत्रों में करते हैं. पोडू खेती के हिस्से के रूप में जंगलों को साफ किया जाता है (अक्सर जला दिया जाता है) और लोग इन पैचों में बाजरा और सब्जियों जैसी फसलों की खेती करते हैं.

कटाई के बाद पोडू काश्तकार भूमि को छोड़ देते हैं और कभी-कभी दो या तीन साल बाद एक और फसल के मौसम के लिए इन पैचों पर लौट आते हैं. एक न्यूज रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि तेलंगाना में 3.95 लाख किसान पोडू की खेती में लगे हुए हैं.

पंचायत द्वारा पारित बेदखली नोटिस में दावा किया गया था कि एर्राबोडु में रहने वाले गुट्टी कोया “गांजा और शराब के आदी हैं और उनके पास घातक हथियार हैं. वे विवेक खो रहे हैं और हत्याएं कर रहे हैं. वे बेंदलपाडु के लोगों के जीवन के लिए ख़तरा हैं जो निरंतर भय में जीने को मजबूर हैं.”

रिपोर्ट में कहा गया है कि गुट्टी कोया जनजाति ने 2005 के आसपास छत्तीसगढ़ छोड़ कर आंध्र प्रदेश का रूख किया था क्योंकि वे सलवा जुडूम और माओवादियों के बीच गोलीबारी में फंस गए थे.

दरअसल इस पूरे मामले को प्रशासन क़ानून और व्यवस्था (Law & Order) का मामला मानता है. लेकिन इस पूरे मामले को गहराई से देखें तो यह एक मानवीय संकट भी है.

गुट्टी कोया आदिवासी बस्तर में माओवाद और सलवा जुडूम के संघर्ष से जान बचा कर भागे थे.

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