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तेलंगाना: आदिवासी किसानों का नाम रिकॉर्ड से हटाए जाने पर हाई कोर्ट नाराज़, कलेक्टर से मांगी रिपोर्ट

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि सरकार ने उन्हें बहुत पहले आधा एकड़ से लेकर तीन एकड़ तक के भूखंड सौंपे थे. उन्होंने कहा कि उन्हें उस जमीन पर खेती करने के लिए पट्टा भी जारी किया गया है.

तेलंगाना हाई कोर्ट ने धरणी पोर्टल से बिना किसी चेतावनी के कुछ आदिवासी किसानों के नाम हटाए जाने पर नाराज़गी जताई है. चीफ़ जस्टिस एम सुधीर कुमार ने कामरेड्डी के कलेक्टर को 76 आदिवासी किसानों के स्वामित्व वाली भूमि के रिकॉर्ड को हटाने पर एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. उन्होंने कहा कि ज़मीन के मालिकों के नाम हटाने के लिए कुछ प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए.

चीफ़ जस्टिस एक आदिवासी किसान भूपल्ली सैलू और कुछ दूसरे लोगों द्वारा दायर की गई एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे. सभी याचिकाकर्ता यचाराम मंडल के अलग-अलग आदिवासी गांवों या टांडा के रहने वाले हैं.

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि सरकार ने उन्हें बहुत पहले आधा एकड़ से लेकर तीन एकड़ तक के भूखंड सौंपे थे. उन्होंने कहा कि उन्हें उस जमीन पर खेती करने के लिए पट्टा भी जारी किया गया है.

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि सरकार ने 76 आदिवासी किसानों को पट्टादार पासबुक भी जारी की थी. वकील ने कोर्ट को यह भी बताया कि किसानों को रायतु बंधु योजना के तहत वित्तीय सहायता भी मिल रही थी.

लेकिन हाल ही में, सरकार ने याचिकाकर्ताओं को बिना कोई नोटिस दिए धरणी पोर्टल से उनके नाम हटा दिए. इसकी वजह से जो सहायता किसानों को रायतु बंधु और दूसरी सरकारी योजनाओं के तहत मिल रही थी, वो बंद हो गई है.

जस्टिस सुधीरन कुमार सरकारी वकील की इस दलील से सहमत नहीं थे कि किसानों को दी गई ज़मीन वन विभाग की है. सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया था कि सरकार ने धरणी और रायतु बंधु योजना का फ़ायदा उन लोगों को न देने का फैसला किया है जो वन भूमि पर कब्जा कर रहे हैं.

जस्टिस सुधीर कुमार ने कामरेड्डी जिला कलेक्टर और अधिकारियों द्वारा किसानों के नाम हटा दिए जाने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा अगर अधिकारी जवाब देने में विफल रहते हैं, तो उन्हें अपना मामला समझाने के लिए अदालत के सामने खुद पेश होना होगा.

76 आदिवासी किसानों के नाम धरणी पोर्टल से हटाए गए हैं

उन्होंने जिला कलेक्टर को याचिका पर आखिरी फ़ैसले तक याचिकाकर्ताओं को उनकी संबंधित भूमि से बेदखल न करने का भी निर्देश दिया है. मामले की अलगी सुनवाई 15 जुलाई को होगी.

किसानों को रायतु बंधु योजना का फ़ायदा मिलना तब बंद हो गया था जब राजस्व अधिकारियों की अचानक कार्रवाई से धरणी पोर्टल ने उन्हें भूमि मालिकों के रूप में दिखाना बंद कर दिया.

रायतु बंधु योजना

रायतु बंधु योजना के तहत राज्य सरकार डीबीटी यानि Direct Benefit Transfer के माध्यम से फसल के मौसम की शुरुआत में ज़मीन के मालिक किसानों को वित्तीय सहायता देती है. इसका मक़सद किसानों की फ़सल लगाने से पहले शुरुआती निवेश की जरूरतों को पूरा करना, और उन्हें कर्ज के जाल से बचाना है.

योजना के तहत हर किसान को 5,000 रुपये प्रति एकड़ प्रति फसल सीजन में मिलता है. इसके लिए एकड़ की कोई सीमा नहीं है.

ऐसे में, कोई किसान जो दो एकड़ जमीन का मालिक है, उसे हर साल 20,000 रुपये मिलेंगे, जबकि कोई किसान जिसके पास 10 एकड़ जमीन है, उसे सरकार से सालाना 1 लाख रुपये मिलेंगे.

सरकार चाहती है कि इससे किसानों की बीज, उर्वरक, कीटनाशक और मज़दूरी जैसी इनपुट ज़रूरतों का खर्च कवर हो जाए.

राज्य सरकार ने 2018 के खरीफ सीजन के बाद किसानों को रायतु बंधु सहायता देना शुरु किया था. पिछले साल दिसंबर तक लाभार्थियों के बैंक खातों में 43,036.64 करोड़ रुपये जमा किए जा चुके थे.

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