केंद्र सरकार बेशक इस साल के बजट को ‘आत्मनिर्भर भारत’ की तरफ़ एक महत्वपूर्ण क़दम बताया है. लेकिन दलित और आदिवासी समूहों ने बजट की कड़ी आलोचना की है. उनका कहना है कि केंद्रीय बजट में इन समुदायों की ज़रूरतों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है.
नैशनल कैंपेन फ़ॉर दलित ह्यूमन राइट्स (NCDHR) और दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (DASAM) – ने बजट का विश्लेषण कर रिपोर्ट तैयार की है.
अपनी रिपोर्ट में NCDHR ने पहले से ही हाशिए पर मौजूद समूहों के लिए इस बार किए गए आवंटन में खामियों को हाइलाइट किया है.
इस रिपोर्ट में सामने आया है कि अनुसूचित जनजातियों के लिए आवंटित राशि में से महज़ 2.6% हिस्सा या 27,830 करोड़ रुपये ही, स्पेसिफ़िक स्कीमों (Specific Schemes) के लिए है.
अनुसूचित जातियों के लिए यह उनके लिए आवंटित कुल बजट का 4.5% हिस्सा है, यानि 48,397 करोड़ रुपये.
NCDHR का कहना है कि बाक़ि का सारा पैसा बस यह दिखाने के लिए है कि एक बड़ी रक़म इन समुदायों के लिए आवंटित की गई है, क्योंकि अधिकांश पैसा उन योजनाओं के लिए है जो सीधे इन समुदायों के लिए नहीं हैं.
एनसीडीएचआर के पूर्व महासचिव एन पॉल दिवाकर कहते हैं कि इस बार भी बजट में दलित और आदिवासी समुदायों को उनका उचित हिस्सा नहीं दिया गया है.
कागज़ पर बजट में भले ही वृद्धि हुई हो, लेकिन इसमें से एक बड़ी संख्या टार्गेटिड योजनाओं के लिए नहीं है, इसलिए यह पैसा एससी / एसटी समुदायों तक पहुंच ही नहीं पाएगा.
छात्रों के लिए स्कॉलरशिप स्कीम का आवंटन गिरा
मैट्रिक के बाद मिलने वाली स्कॉलरशिप आदिवासी और दलित छात्रों को आगे की पढ़ाई करने में मदद करती है. इस योजना से देशभर के क़रीब साठ लाख छात्रों को मदद मिलती है.
लेकिन इस साल के बजट में स्कॉलरशिप के लिए आवंटन कम कर दिया गया है. आदिवासी छात्रों के लिए यह आवंटन 1993 करोड़ रुपये है, और दलित छात्रों के लिए 3415.62 करोड़ रुपये.
ज़ाहिर है यह रक़म छात्रों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
इन संगठनों का यह भी कहना है कि स्कॉलरशिप स्कीम के कार्यान्वयन में पहले से ही विभिन्न स्तर पर कई दिक्कतें हैं. और इस बजट से यह साफ़ है कि सरकार इन चुनौतियों को दूर करने के बजाय स्कीम को ख़त्म ही कर देना चाहती है.
महिलाओं के लिए पर्याप्त पैसा नहीं
आदिवासी और दलित महिलाओं की सुरक्षा और विकास इन समुदायों के लिए एक बड़ा मुद्दा है. लेकिन इस साल के बजट में प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़ एक्ट (Prevention of Atrocities Act) और प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स एक्ट (Protection of Civil Rights Act) के लिए महज़ 600 करोड़ रुपए दिए गए हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रक़म इन अधिनियमों को लागू करने के लिए काफ़ी नहीं है.