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हिमाचल में हाटी समुदाय को ‘आदिवासी’ का दर्जा मिलेगा, लंबी लडाई का सुखद पटाक्षेप होने की संभावना 

हाटी लोग 1967 से एसटी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. जब उत्तराखंड के जौनसार बावर में रहने वाले हाटी लोगों को आदिवासी का दर्जा दिया गया था, जिसकी सीमा सिरमौर जिले से लगती है. वर्षों से, अलग-अलग 'महा खुंबली' ने मांग को बढ़ाते हुए प्रस्ताव पारित किए.

केंद्र हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र को “आदिवासी” का दर्जा देने पर विचार कर रहा है. अगर इस प्रस्ताव को अगर मंजूरी दे दी जाती है तो इस इलाके में रहने वाले हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल हो जाएगा.

इस साल 4 अप्रैल को, मंडी से कांग्रेस सदस्य प्रतिभा सिंह द्वारा लोकसभा में एक सवाल कि “क्या हिमाचल प्रदेश के ट्रांस गिरी क्षेत्र को जनजातीय मामलों का दर्जा दिया गया है”, का जवाब देते हुए जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री बिशेश्वर टुडू ने कहा था कि “इस प्रस्ताव पर अपेक्षित मानदंडों की कमी के कारण विचार नहीं किया जा सका.”

ट्रांस-गिरी को आदिवासी क्षेत्र घोषित करने की मांग पुरानी है और इस क्षेत्र में रहने वाले हाटी समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति (ST) की स्थिति की मांग के साथ जुड़ी हुई है.

समुदाय और भूमि

गिरीपार क्षेत्र के निवासियों के लिए दुर्गम क्षेत्रों में कहीं भी बाजार उपलब्ध नहीं था. यहां के लोग समूह में आवश्यक वस्तुओं की खरीद करने और अपने उत्पादों को बेचने के लिए समीपवर्ती बाजारों में जाते थे. ये लोग लोग अपनी पीठ पर सामान लाद कर लाते और ले जाते थे.

इस समुदाय के लोग छोटे बाजारों में सब्जियां, फसल, मांस और ऊन आदि बेचते थे. हाट बाजारों में दुकानें लगाते थे. लोग इन्हें बुलाने के लिए हाटी कहने लगे और इस तरह हाट में सामान बेचने पर इस समुदाय का नाम हाटी पड़ा.

हाटी समुदाय के पुरुष खास मौकों पर अपने सिर पर विशिष्ट सफेद रंग की टोपी पहनते हैं. हाटी समुदाय अपनी जाति को लेकर बहुत सख्त होते हैं.

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने पहले कहा है कि हाटी 154 पंचायत क्षेत्रों में रहते हैं, और समुदाय के सदस्यों की संख्या 2011 की जनगणना में 2.5 लाख थी. हाटी की वर्तमान जनसंख्या लगभग 3 लाख अनुमानित है.

हाटी समुदाय को ‘खुंबली’ नामक एक पारंपरिक परिषद द्वारा शासित किया जाता है, जो हरियाणा के ‘खाप’ की तरह सामुदायिक मामलों को तय करती है. हाटी यमुना की दोनों सहायक नदियों, गिरि और टौंस नदियों के बेसिन में हिमाचल-उत्तराखंड सीमा तक फैले हुए हैं.

दरअसल 1815 में सिरमौर रियासत से अलग होने वाला जौनसार बाबर को 1967 में केंद्र सरकार ने जनजाति का दर्जा दिया था. जौनसार बाबर और सिरमौर के गिरिपार की लोक संस्कृति, लोक परंपरा, रहन-सहन एक तरह का है.

इनके गांवों के नाम और भाषा में भी समानता है. गिरिपार क्षेत्र में दुर्गम पहाड़ पर उत्तराखंड की सीमा से सटा एक छोटा सा गांव है शरली. बीच में टौंस नदी और सामने है उत्तराखंड के जौनसार बाबर क्षेत्र का सुमोग गांव.

दोनों ही गांवों के लोगों की बोली, पहनावा, परंपराएं, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज एक जैसा है. टौंस नदी के उस पार जौनसार समुदाय को एसटी का दर्जा है और इस पार हाटी समुदाय जनजातीय दर्जे के लिए करीब 49 साल से संघर्ष कर रहे हैं.

‘आदिवासी’ क्षेत्र की आवश्यकता

संविधान दो प्रकार के क्षेत्रों का प्रावधान करता है: संविधान की पांचवीं अनुसूची के अनुसार “अनुसूचित क्षेत्र” और छठी अनुसूची के संदर्भ में “जनजातीय क्षेत्र”. “जनजातीय क्षेत्रों” को संविधान के अनुच्छेद 244(2) के अनुसार नामित किया गया है … छठी अनुसूची के साथ पढ़ें … हिमाचल प्रदेश ने शिमला ज़िले के डोडरा क्वार उप-मंडल, सिरमौर ज़िले के संपूर्ण ट्रांस-गिरी क्षेत्र को अधिसूचित करने के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

हालांकि सरकार ने कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा के लिए मानदंड का पालन किया जाता है. जैसे कि – आदिवासी आबादी की प्रधानता, क्षेत्र की सघनता और उचित आकार, एक व्यवहार्य प्रशासनिक इकाई जैसे कि जिला, ब्लॉक या तालुक और पड़ोसी क्षेत्रों की तुलना में क्षेत्र का आर्थिक पिछड़ापन. 

उन्होंने कहा कि मंत्रालय में प्रस्ताव की जांच की गई थी और जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, अपेक्षित मानदंडों की कमी के कारण इस पर विचार नहीं किया जा सका. इसके बाद हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकार को सूचित किया गया था कि अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा के लिए वर्तमान प्रपत्र में प्रस्ताव पर विचार नहीं किया जा सकता है.

आदिवासी का दर्जा देने की मांग

हिमाचल प्रदेश में एसटी की सूची में गद्दी, गुर्जर, किन्नर (किन्नौर), लाहौला, पंगवाला और कुछ अन्य छोटी जनजातियां शामिल हैं. जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा लाहौल, स्पीति, किन्नौर और चंबा ज़िलों के सुदूर, ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रहता है. 2011 में राज्य की जनजातीय आबादी 3.92 लाख (कुल का लगभग 6 फीसदी) थी.

हाटी लोग 1967 से एसटी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. जब उत्तराखंड के जौनसार बावर में रहने वाले हाटी लोगों को आदिवासी का दर्जा दिया गया था, जिसकी सीमा सिरमौर जिले से लगती है. वर्षों से, अलग-अलग ‘महा खुंबली’ ने मांग को बढ़ाते हुए प्रस्ताव पारित किए.

मुख्यमंत्री ठाकुर ने कहा, “[जौनसर बावर के हाटी] सिरमौर में रहने वाले हाटी के साथ समान संस्कृति और सामाजिक-आर्थिक स्थिति साझा करते हैं. 1967 में, उनके परिवार के सदस्य जो जौनसार में थे उन्हें आदिवासी घोषित किया गया था लेकिन जो लोग हिमाचल में रहे, उन्हें समान दर्जा या लाभ नहीं दिया गया.”

आरक्षण का लाभ मिलने के बाद से जौनसार बावर क्षेत्र ने बड़ी संख्या में सिविल सेवक निकले हैं. हालांकि टोपोग्राफिकल नुकसान के कारण हिमाचल प्रदेश के कामरौ, संगरा और शिलियाई क्षेत्रों में रहने वाले हाटी शिक्षा और रोजगार दोनों में पिछड़ गए हैं. 

राजनीतिक वादे

हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा देने का वादा बार-बार किया गया है. 2009 में अपने लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में, बीजेपी ने पहली बार हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा देने का वादा किया था. इसके बाद राजनीतिक दल घोषणापत्रों में वादा दोहराते रहे.

इस वादे की बदौलत शिमला, जो कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, वहां संसदीय चुनावों में हाटी के समर्थन से बीजेपी को फायदा हुआ है. 

फिर 2014 में, राजनाथ सिंह, जो उस समय बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, ने सिरमौर के नाहन में एक रैली में हाटी को एसटी का दर्जा देने का वादा किया था.

2016 में, तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने जनजातीय मामलों के संस्थान, शिमला द्वारा किए गए एक अध्ययन के आधार पर ट्रांस-गिरी क्षेत्र और रोहड़ू में डोडरा क्वार को आदिवासी का दर्जा देने के लिए केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को एक फाइल स्थानांतरित की. 

हालांकि केंद्रीय मंत्रालय ने कहा कि हाटी समुदाय के बारे में एथनोग्राफी रिपोर्ट अपर्याप्त थी, और एक पूर्ण एथनोग्राफी अध्ययन की मांग की.

इस साल मार्च में, जय राम ठाकुर सरकार ने केंद्र को एक विस्तृत एथनोग्राफी प्रस्ताव भेजा, जिसमें हिमाचल प्रदेश की एसटी सूची में ट्रांस-गिरी क्षेत्र के हाटी समुदाय को शामिल करने की मांग की गई थी. ठाकुर ने राज्य विधानसभा को बताया कि आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं और सरकार केंद्र के साथ अपने मामलों पर दबाव बना रही है. 

अप्रैल के अंत में, ठाकुर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और कहा कि उन्हें आश्वासन दिया गया है कि केंद्र राज्य में अनुसूचित जनजातियों की सूची में हाटी समुदाय को शामिल करने के राज्य सरकार के अनुरोध पर अनुकूल रूप से विचार करेगा. 

इस साल के अंत में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में सत्तारूढ़ दल की अनुमानित 3 लाख-मजबूत समुदाय तक पहुंच राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. अप्रैल में, हाटी ने एसटी दर्जे की मांग पूरी नहीं होने पर चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दी थी.

सिरमौर और शिमला क्षेत्रों में लगभग नौ विधानसभा सीटों पर हाटी समुदाय की अच्छी उपस्थिति है. उनकी आबादी सिरमौर जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों – शिलाई, पांवटा साहिब, श्री रेणुकाजी और पछड़ (शिमला लोकसभा सीट के सभी हिस्से) में केंद्रित है. 

बीजेपी ने 2017 के चुनावों में 68 विधानसभा सीटों में से 44 पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2022 के चुनाव में बीजेपी की राह कठिन हो सकती है क्योंकि आम आदमी पार्टी के रूप में सत्ता की दावेदार तीसरी ताकत भी है. 

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