ओडिशा में मालीपर्बत बॉक्साइट खदानों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध तेज़ हो गया है. 22 सितंबर को ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (OSPCB) द्वारा खदान को पर्यावरण मंजूरी देने के लिए जनसुनवाई होनी है, लेकिन उससे पहले आदिवासियों के साथ-साथ कई ज़िलों से आदिवासी कार्यकर्ताओं ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी शुरु कर दी है.
सेमिलीगुडा ब्लॉक की तीन पंचायतों के सैकड़ों लोगों ने पिछले हफ़्ते मालीपर्बत खदानों के नए सिरे से संचालन का विरोध करने के लिए बुलाई गई एक विरोध बैठक में हिस्सा लिया. यह लोग मालीपर्बत सुरक्षा समिति (MPSS) के बैनर तले इकट्ठा हुए.
आदिवासियों का आरोप है कि मालीपर्बत में खनन को फिर से शुरू करने से सोरीशापोदर, दलाईगुड़ा और पखाझोला पंचायतों के लगभग 42 गाँव प्रभावित होंगे.
इसके अलावा मालीपर्बत में लगभग 32 छोटी नदियों और चार नहरें, जो आदिवासियों के खेतों तक पानी लाते हैं, पहाड़ियों से खनन की वजह से ख़त्म हो जाएंगी. इससे इलाक़े के आदिवासियों की आजीविका पर असर पड़ेगा.
कोरापुट से 40 किलोमीटर दूर डोलियाम्बा गांव में 270 एकड़ में फैली मालीपर्बत खदान को 2006 में हिंडाल्को को पट्टे पर दिया गया था. लेकिन आदिवासियों के कड़े विरोध के चलते हिडाल्को खनन गतिविधियां नहीं कर पाया, जिसकी वजह से पट्टे की शर्तें ख़त्म हो गईं.
हालांकि बॉक्साइट की खुदाई 2012 में कुछ समय के लिए शुरू हुई थी, लेकिन इलाक़े के आदिवासियों ने तब भी खनिज के आने-जाने का विरोध किया था. अब हिंडाल्को इस बॉक्साइट खदान के खनन को फिर से शुरू करने के लिए एक नया पट्टा चाहता है.
बॉक्साइट के खनन और ट्रांस्पोर्टेशन का कॉन्ट्रैक्ट पाने वाली एक कंपनी द्वारा ग़रीब आदिवासियों को पैसे देकर प्रभावित करने की कोशिश की गई थी. कार्यकर्ताओं ने आदिवासियों को आगाह किया कि वो कॉरपोरेट घरानों के वादों से प्रभावित न हों, और इस खदान के खिलाफ़ अपना विरोध जारी रखें.
ओडिशा सरकार को यह ध्यान में रखना होगा कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अर्थव्यवस्था के बजाय इकॉलोजी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
(तस्वीर प्रतीकात्मक है. Photo Credit: New Indian Express)