पिछले हफ्ते टिपरा मोथा (TIPRA Motha) प्रमुख प्रद्योत किशोर देबबर्मन (Pradyot Kishore Debbarman) ने चेतावनी दी थी कि अगर केंद्र ने लोकसभा चुनावों से पहले पिछले साल मार्च में हस्ताक्षरित त्रिपक्षीय समझौते में किए गए अपने वादों को पूरा नहीं किया तो वे समर्थन वापस ले लेंगे.
वहीं अब वरिष्ठ टिपरा मोथा नेता और एडीसी के निर्वाचित सदस्य हंगसा कुमार त्रिपुरा (Hangsa Kumar Tripura) ने भी शनिवार को 2028 के विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली त्रिपुरा सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी.
ढलाई में एक रैली में बोलते हुए हंगसा त्रिपुरा ने चेतावनी दी कि टिपरासा समुदाय (आदिवासी) के लोगों को दोबारा मूर्ख नहीं बनाया जाएगा.
हंगसा त्रिपुरा ने कहा, “अगर भाजपा अपना वादा नहीं निभाती है तो अगले विधानसभा चुनाव में उसे सत्ता से हटा दिया जाएगा. चुनाव जीतने के बाद भाजपा अलग भाषा बोल रही है. ऐसा लगता है कि टिपरासा समुदाय के लोगों के साथ फिर से धोखा हुआ है. मैं उन्हें याद दिलाना चाहता हूं कि हमारी पार्टी आदिवासी लोगों के अधिकारों के लिए एक राजनीतिक मंच है। हमें एक बार धोखा दिया जा सकता है, लेकिन हर बार नहीं.”
भाजपा के पास 32 सीटों के साथ बहुमत है, जबकि उसके सहयोगी आईपीएफटी के पास 1 और टीआईपीआरए मोथा के पास राज्य विधानसभा में 13 सीटें हैं.
अपने सहयोगी के प्रति शत्रुतापूर्ण रुख अपनाते हुए प्रद्योत ने भाजपा पर अपने वादों का पालन न करने का आरोप लगाया है और समर्थन वापस लेने की धमकी भी दी है.
प्रद्योत ने पहले कहा था, “जब तक त्रिपुरा में मूल निवासियों के अधिकारों को सुरक्षित नहीं किया जाता, तब तक राजनीतिक पदानुक्रम में बैठे लोगों के पास मौजूद सत्ता अस्थायी रहेगी. हम सही समय पर सही निर्णय लेने के लिए तैयार हैं और हम इस बारे में सोचेंगे. हमारे पार्टी नेताओं और सदस्यों को तैयार रहना चाहिए. अगर हमारे अधिकार और वादे पूरे नहीं किए गए, तो हमें सत्ता से बाहर रहने के लिए तैयार रहना चाहिए.”
विधानसभा और विधान परिषद में आदिवासियों के लिए अधिक सीटों की मांग
वहीं एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, टिपरा मोथा स्वायत्त जिला परिषद (ADC) को सीधे वित्त पोषण, मूल निवासी आबादी के लिए भूमि अधिकार, त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) सीटों को मौजूदा 28 से बढ़ाकर 50 करने और टीटीएएडीसी क्षेत्रों में विधानसभा सीटों को मौजूदा 20 से बढ़ाकर 27 करने के लिए जोर दे रही है.
सूत्रों के मुताबिक, मोथा की मांगों के कारण 125वें संशोधन के क्रियान्वयन में भी देरी हो सकती है.
भाजपा और टिपरा मोथा के बीच विवाद का कारण
त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) के अधिकार क्षेत्र में ग्राम समितियों के प्रारूप में जमीनी स्तर का लोकतंत्र, पूर्वोत्तर राज्य में लगभग तीन वर्षों से काम नहीं कर रहा है.
त्रिपुरा में आखिरी ग्राम समिति चुनाव तय कार्यक्रम के मुताबिक वाम मोर्चा शासन के दौरान फरवरी 2016 के अंतिम सप्ताह में हुए थे. इसका पांच साल का कार्यकाल फरवरी 2021 में समाप्त हो गया और चुनाव प्रक्रिया के बाद मार्च 2021 की शुरुआत तक नई ग्राम समितियां बन जानी चाहिए थीं लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
त्रिपुरा में बीजेपी ने फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल किया और पहली बार सरकार बनाई. फिर भाजपा ने 2023 के विधानसभा चुनावों में भी सत्ता बरकरार रखी. हालांकि, राज्य चुनावों में अक्सर होने वाले उतार-चढ़ाव 2023 के विधानसभा चुनावों के बाद त्रिपुरा में भी देखने को मिले.
त्रिपुरा के पूर्व राजघराने के मुखिया प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मा के नेतृत्व वाली टिपरा मोथा, जिसने विधानसभा चुनाव विपक्षी दल के रूप में लड़ा और 60 सदस्यीय सदन में 13 सीटें हासिल कीं. उसने भाजपा से हाथ मिला लिया, जिससे टिपरा मोथा को दो मंत्री पद मिले.
टिपरा मोथा के नियंत्रण वाली टीटीएएडीसी क्षेत्राधिकार में 587 ग्राम समितियां हैं जो हर तरह से सामान्य ग्राम पंचायतों के समान हैं. इस तरह गठबंधन सहयोगी होने के बावजूद, टिपरा मोथा को काफी वक्त से लंबित ग्राम समिति चुनाव कराने के लिए प्रमुख भागीदार भाजपा से मिन्नत करनी पड़ रही है. लेकिन भाजपा ने टिपरा मोथा की बार-बार की गई अपीलों पर कोई एक्शन नहीं लिया.
इस मुद्दे ने टिपरा मोथा के भाजपा के साथ राजनीतिक समीकरण को बिगाड़ दिया है.
इस मुद्दे पर टिपरा मोथा के प्रवक्ता एंथनी देबबर्मा का कहना है कि राज्य भाजपा नेतृत्व को ग्राम समिति चुनावों में हार का डर है और इसलिए प्रशासनिक मशीनरी जितना संभव हो सके, इस प्रक्रिया में देरी कर रही है. राज्य सरकार इस तथ्य पर विचार नहीं कर रही है कि नई, निर्वाचित ग्राम समितियों की अनुपस्थिति में कोई विकास कार्य नहीं हो रहा है.
वहीं देबबर्मा का कहना है कि राज्य सरकार को कम से कम टीटीएएडीसी को उन कार्यों के लिए धन जारी करना चाहिए था जो ग्राम समितियों को करने की आवश्यकता है. राज्य सरकार की चुप्पी समझ से परे है; उन्होंने कहा कि यह गठबंधन के मानदंडों के खिलाफ है.
लेकिन अब इस मुद्दे पर विवाद तेज़ हो गया है और टिपरा मोथा पार्टी सत्तारूढ़ दल से अपना समर्थन वापस लेने की बात कर रही है.
TTAADC क्या है?
TTAADC की अवधारणा भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में निहित है, जिसका उद्देश्य उत्तर-पूर्व भारत में मूल निवासी समुदायों के अधिकारों और संस्कृति की रक्षा करना है.
परिषद का गठन संसद द्वारा पारित 1979 के TTAADC अधिनियम द्वारा किया गया था. TTAADC का औपचारिक रूप से गठन 15 जनवरी, 1982 को हुआ था.
यह त्रिपुरा के भौगोलिक क्षेत्र के 68 फीसदी से अधिक को कवर करता है. इसे 49वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 1984 के तहत अपग्रेड किया गया था, जो 1 अप्रैल, 1985 को प्रभावी हुआ.
यह 30 सदस्यों द्वारा शासित होता है, जिनमें से 28 निर्वाचित होते हैं और दो राज्यपाल द्वारा नामित होते हैं. एक कार्यकारी समिति दिन-प्रतिदिन के प्रशासन का प्रबंधन करती है, जिसका संचालन मुख्य कार्यकारी सदस्य द्वारा किया जाता है.