केंद्र सरकार ने गुरुवार को हिंसा प्रभावित मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया है. फ़िलहाल राज्य विधानसभा को भी निलंबित कर दिया गया है.
यह कदम मणिपुर के मु्ख्यमंत्री एन बीरेन सिंह द्वारा रविवार को अपने पद से इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद उठाया गया है.
वहीं बीरेन सिंह का यह फैसला राज्य में जारी जातीय हिंसा के करीब 21 महीने बाद आया. इस दौरान हिंसा में 250 से अधिक लोगों की मौत हो गई और हज़ारों लोग विस्थापित हो गए.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के दोनों सदनों के बजट सत्र के शेष बचे समय के लिए 10 मार्च को फिर से बैठक करने के लिए स्थगित होने के कुछ घंटों बाद यह निर्णय लिया. इसके बाद मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने एक रिपोर्ट दी.
गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि राज्यपाल से मिली रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति इस नतीजे पर पहुंची हैं कि मणिपुर में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें यहां की सरकार भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती इसलिए राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 356 में दी गईं शक्तियों का प्रयोग कर यहां की शासन व्यवस्था अपने हाथों में ले रही हैं.
राष्ट्रपति शासन लागू होने से पहले एक सुरक्षा योजना तैयार की गई थी और राज्य पुलिस और खुफिया एजेंसियां
मणिपुर में केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि क्या राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने से हिंसा को काबू में किया जा सकता है.
इसके अलावा यह सवाल भी है कि क्या अब कुकी और मैतई समुदाय के नेताओं को बातचीत के मेज़ पर लाया जा सकता है.
मैतेई समुदाय राष्ट्रपति शासन का कर रहा विरोध
मैतई समुदाय ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने का विरोध किया है. मणिपुर में पिछले लगभग दो साल से चल रही हिंसा में मैतई समुदाय ने भी जान-माल का नुक़सान झेला है.
मैतई समुदाय के भी हज़ारों लोगों को शरणार्थी कैंपों में पनाह लेनी पड़ी थी. इसके अलावा आपसी ख़ून ख़राबे में मैतई समुदाय के भी कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है.
लेकिन इसके बावजूद मैतई समुदाय एन बीरेन सिंह को हटाए जाने या राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के हक़ में नहीं थे. क्योंकि मणिपुर सरकार और मुख्यमंत्री इस पूरे समय में मैतई समुदाय के पक्ष में ही खड़ी हुई नज़र आ रही थी.
मैतई समुदाय के संगठन और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह दोनों एक ही तरह की बातें कर रहे थे. मणिपुर सरकार पर यह आरोप भी है कि उसने ही मैतई चरमपंथियों को हथियार उपलब्ध कराए थे.
इसलिए मणिपुर में मैतई समुदाय अगर राष्ट्रपति शासन का विरोध कर रहा है तो उसे समझा जा सकता है.
कुकी समुदाय ने देखी ‘उम्मीद की किरण’
जबकि आदिवासी समूहों ने इसे “कुकी-ज़ो के लिए उम्मीद की किरण” बताया.
इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) के गिन्जा वुअलजोंग ने कहा कि राष्ट्रपति शासन “मुख्यमंत्री के बदलाव से ज्यादा बेहतर है.”
उन्होंने कहा, “कुकी-ज़ो अब मैतेई समुदाय पर भरोसा नहीं करते इसलिए नए मैतेई मुख्यमंत्री का होना किसी भी तरह से आरामदायक नहीं होगा.”
आईटीएलएफ कुकी-ज़ो के लिए अलग प्रशासन और 3 मई, 2023 को भड़के जातीय संकट से कथित रूप से पक्षपातपूर्ण तरीके से निपटने के लिए बीरेन को हटाने की मांग कर रहा था.
वुअलजोंग ने कहा, “राष्ट्रपति शासन के साथ ही मेरा मानना
वहीं मैतेई समूहों ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि अगला मुख्यमंत्री चुनेंगे, लेकिन इस कदम को विफल कर दिया गया.
सलाहकार सदस्य और पूर्व COCOMI समन्वयक सोमोरेंद्र थोकचोम ने कहा, “बीरेन सिंह के इस्तीफा देने के बाद किसी योग्य व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए थी. मणिपुर के विधायकों को सदन का नेता चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए थी. ऐसा होने के बजाय, विधायकों को एक-एक करके दिल्ली बुलाया गया. सत्ता के केंद्रीकरण ने समस्या पैदा की और आखिरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया.”
भाजपा की राज्य प्रमुख ए शारदा देवी ने कहा कि विधानसभा अभी भी निलंबित अवस्था में है. बीरेन सिंह ने मणिपुर की अखंडता के हित में इस्तीफा दिया. कुछ समय तक मौजूदा स्थिति को देखने के बाद, सदन चलाने पर विचार किया जा सकता है.
खरगे ने मणिपुर के हाल पर पीएम मोदी से पूछा सवाल
शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि भाजपा ने गलती मानकर ही मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाया है. साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मणिपुर की जनता से माफी मांगने के लिए कहा है.
उन्होंने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री मोदी अब मणिपुर का दौरा करने और वहां के लोगों से माफी मांगने का साहस दिखा पाएंगे?
मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर लिखा, “नरेंद्र मोदी जी, आपकी पार्टी ही 11 साल से केंद्र में शासन कर रही है. यह आपकी पार्टी ही है जो आठ साल तक मणिपुर पर भी शासन कर रही थी. यह भाजपा ही है जो राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार थी. यह आपकी सरकार है जिसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमा पर गश्ती की जिम्मेदारी है. आपके द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाना, अपनी ही पार्टी की सरकार को निलंबित करना इस बात की सीधी स्वीकारोक्ति है कि आपने मणिपुर के लोगों को निराश किया.”
खरगे ने दावा किया कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति शासन इसलिए नहीं लगाया क्योंकि वह ऐसा चाहते थे बल्कि इसलिए लगाया क्योंकि राज्य में संवैधानिक संकट है और आपका कोई भी विधायक आपकी अक्षमता का बोझ स्वीकार करने को तैयार नहीं है.
उन्होंने कहा, “आपके डबल इंजन ने मणिपुर की निर्दोष जनता की जिंदगियों को रौंद दिया. अब समय आ गया है कि आप मणिपुर में कदम रखें और पीड़ित लोगों के दर्द और पीड़ा को सुनें और उनसे माफी मांगें.”
खरगे ने सवाल किया, ‘क्या आपमें यह साहस है? उन्होंने दावा किया, ‘मणिपुर की जनता आपको और आपकी पार्टी को माफ नहीं करेगी.’
इससे पहले बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को राजधानी इंफाल में अपना इस्तीफा सौंप दिया था. बीरेन सिंह ने विधानसभा के बजट सत्र शुरू होने से एक दिन पहले ही इस्तीफा सौंप दिया था जिसके बाद बजट सत्र को रद्द कर दिया गया था.
बीरेन सिंह ने अपने त्यागपत्र में कहा था, “मणिपुर के लोगों की सेवा करना सम्मान की बात रही है. मैं समय पर कार्रवाई करने और मणिपुर के हर व्यक्ति के हितों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार का बहुत आभारी हूं.”
CPI(M) राष्ट्रपति शासन की कर रहा आलोचना
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने शुक्रवार को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की आलोचना की और इसे भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के “पूर्ण दिवालियापन” का संकेत बताया.
सीपीआई (एम) ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति शासन मणिपुर के हित में नहीं बल्कि सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर आंतरिक टकराव को सुलझाने के मकसद से उठाया गया है.
सीपीएम पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा, ‘‘मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना बीजेपी की ‘डबल इंजन’ सरकार के पूर्ण दिवालियापन को रेखांकित करता है, जिसके शासन में राज्य दो साल से हिंसक उथल-पुथल में है.’’
पार्टी ने आरोप लगाया, ‘‘राष्ट्रपति शासन मणिपुर के हित में नहीं है. यह इसलिए लगाया गया है ताकि सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर आंतरिक विवादों को निपटाने के लिए कुछ समय मिल सके.’’
वहीं कांग्रेस की मणिपुर इकाई के अध्यक्ष केशम मेघचंद्र ने भी शुक्रवार को दावा किया कि बीजेपी के भीतर नेतृत्व संकट और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर आम सहमति न बन पाने के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.
मेघचंद्र ने कहा कि बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने हिंसाग्रस्त राज्य की जमीनी स्थिति को ‘‘आखिरकार समझना शुरू कर दिया है.’’
मेघचंद्र ने इंफाल में कहा, ‘‘मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद नेतृत्व संकट और बीजेपी के भीतर (नए मुख्यमंत्री के चयन पर) मतभेद के कारण राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. अब पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर है… उम्मीद है कि (प्रधानमंत्री नरेन्द्र) मोदी अब सरकार की कार्य के प्रति निष्क्रियता पर गौर करेंगे और राज्य में संकट का समाधान करना शुरू करेंगे.’’
उन्होंने कहा कि मणिपुर की क्षेत्रीय और प्रशासनिक अखंडता की रक्षा का दायित्व केंद्र सरकार पर है.
राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता
मणिपुर में बीते डेढ़ साल से जारी जातीय हिंसा के बीच राजनीतिक अनिश्चितता बनी हुई है. सत्तारूढ़ भाजपा के पूर्वोत्तर के प्रभारी संबित पात्रा और पार्टी विधायकों के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद गतिरोध कायम दिख रहा है.
संबित पात्रा ने पिछले दो दिनों में राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से दो बार मुलाकात की है. पात्रा ने कई भाजपा विधायकों के साथ भी बैठक की है.
राज्य में भाजपा नीत सरकार 9 फरवरी को गिर गई, जब मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने नई दिल्ली से इंफाल लौटने के तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया था जहां उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के साथ बातचीत की थी.
सिंह के इस्तीफे को स्वीकार करते हुए राज्यपाल ने 10 फरवरी को सदन बुलाने के जनवरी के आदेश को “अमान्य” घोषित करते हुए विधानसभा सत्र को रद्द करने की अधिसूचना जारी की.
इसके बाद से ही नए मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति बनाने के लिए बीजेपी के पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा विधायकों और राज्यपाल के साथ बैठकें कर रहे थे.
लेकिन मुख्यमंत्री को लेकर सहमति नहीं बनने के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया.
मणिपुर में विधानसभा का अंतिम सत्र 12 अगस्त 2024 को पूरा हुआ था और अगला सत्र छह महीने के अंदर बुलाया जाना था लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
संविधान के अनुच्छेद 174(1) के मुताबिक विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का अंतर नहीं हो सकता है.
मणिपुर की 60 सदस्यों वाली विधानसभा में 2027 तक विधानसभा चुनाव नहीं होने हैं. पिछले महीने एनपीपी विधायक एन कायिसि की मृत्यु के बाद वर्तमान में 59 सदस्य हैं.
59 विधायकों में से 37 भाजपा के, 6 एनपीपी के, 5 एनपीएफ के, 5 कांग्रेस के, 2 कुकी पीपुल्स अलायंस के, एक जेडीयू का और तीन निर्दलीय थे.
साल 2022 में मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार बनाई थी. 60 विधानसभा सीटों वाले राज्य की विधानसभा में बीजेपी ने 32, कांग्रेस ने 5 और अन्य ने 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
नतीजों के करीब पांच महीने बाद जनता दल यूनाइटेड के जीते हुए 6 में से 5 विधायकों ने बीजेपी ज्वाइन कर ली थी.
मणिपुर में बीजेपी के पास अपने 37 विधायक हैं. पूर्ण बहुमत है. करीब तीन साल का कार्यकाल बचा है, बावजूद इसके राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. ऐसे में यह स्थिति साफ तौर राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता को दर्शाता है.
क्या राष्ट्रपति शासन शांति की गारंटी देता है
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन पर विपक्षी दल की आलोचना से आगे सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या राष्ट्रपति शासन राज्य में शांति की गारंटी देता है. इसका जवाब है – नहीं, लेकिन उसकी शुरुआत की उम्मीद बाँधता है.
मणिपुर में शांति के लिए कुकी और मैतई समुदाय के बीच कम से कम इतनी सहमति ज़रूरी है कि वे एक दूसरे पर वार नहीं करेंगे. लेकिन दोनों ही पक्षों को इस बात के लिए राज़ी करना आसान नहीं होगा.
मणिपुर में मैतई और कुकी दोनों ही समूहों की जो मांगे हैं वे इस पूरे काम को बेहद जटिल और पेचीदा बना देती हैं.
मसलन कुकी अपने लिए संवैधानिक समाधान माँग रहे हैं. यानि वे चाहते हैं कि उनके लिए भारतीय संविधान के तहत एक अलग राज्य का गठन किया जाए.
अगर सरकार कुकी समुदाय को अलग राज्य नहीं दे सकती है तो एक ऐसा ढांचा तैयार करे जिसमें उन्हें स्वायत्ता मिले.
दूसरी तरफ़ मैतई समुदाय की माँग है कि उसे भी अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया जाए. अगर ऐसा होता है तो अभी तक इंफ़ाल घाटी में सीमित मैतई समुदाय को पहाड़ी इलाकों में ज़मीने ख़रीदने का अधिकार मिल जाएगा.
ये दोनों ही मांगे ऐसी हैं जिन पर केंद्र सरकार के लिए सहमति देना आसान काम नहीं है.
इस पृष्ठभूमि में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन का एक लंबा दौर चल सकता है. इस दौरान केंद्र सरकार की पहली प्राथमिकता युद्धविराम हासिल करना होना चाहिए.