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सरना धार्मिक संहिता की मांग को लेकर आदिवासी संगठनों ने रांची में किया धरना

सलखान मुर्मू ने कहा कि अगर केंद्र सरकार 20 नवंबर तक सरना कोड को मान्यता देने से इनकार करने का कारण बताने में विफल रहती है तो ओडिशा, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल के 50 जिलों के 250 ब्लॉकों में आदिवासियों को 30 नवंबर से 'चक्का जाम' का सहारा लेने के लिए मजबूर किया जाएगा.

आदिवासी संगठन आदिवासी सेंगेल अभियान (Adivasi Sengel Abhiyan) ने मंगलवार को रांची में धरना दिया और आदिवासियों के लिए एक अलग धार्मिक श्रेणी ‘सरना’ को मान्यता देने की मांग की.

इस आंदोलन में झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल के आदिवासी भाग ले रहे हैं. ये लोग रांची के मोराबादी मैदान स्थित बापू वाटिका के पास धरने पर बैठ गए हैं. आदिवासी सेंगेल अभियान ने कहा कि इससे पहले राजभवन के पास प्रदर्शन का प्रस्ताव रखा गया था.

आदिवासी सेंगेल अभियान के सलखान मुर्मू ने कहा कि सरना धर्म कोड मान्यता के मुद्दे को अब ‘करो या मरो’ की तर्ज पर चलाने को बाध्य है. सलखान मुर्मू ने कहा, “हम आदिवासियों के लिए एक अलग सरना धार्मिक संहिता की मांग कर रहे हैं और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है.”

उन्होंने कहा कि आदिवासी लोग प्रकृति उपासक हैं और हिंदू, मुस्लिम या ईसाई नहीं हैं. उन्होंने कहा, हम सरना धर्म के नाम पर प्रकृति की पूजा में लगे हैं. प्रकृति हमारी पालनकर्ता है, हमारी ईश्वर है. हमारी पूजा, सोच, कर्मकांड और त्योहार प्रकृति से अटूट रूप से जुड़े हुए हैं. हम मूर्तिपूजक नहीं हैं.”

एएसए ने मांग की कि जनगणना के कागजात में उनकी पहचान सरना धर्म संहिता के अनुयायी के रूप में की जाए.

सलखान मुर्मू ने कहा कि अगर केंद्र सरकार 20 नवंबर तक सरना कोड को मान्यता देने से इनकार करने का कारण बताने में विफल रहती है तो ओडिशा, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल के 50 जिलों के 250 ब्लॉकों में आदिवासियों को 30 नवंबर से ‘चक्का जाम’ का सहारा लेने के लिए मजबूर किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि आदिवासी लंबे समय से सरना कोड की मांग कर रहे हैं लेकिन उनकी मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया है. मुर्मू ने दावा किया कि देश में आदिवासियों की आबादी बौद्धों से ज्यादा है लेकिन उनके धर्म को मान्यता नहीं है.

क्या है सरना धर्म

सरना यानी वो लोग जो प्रकृति की पूजा करते हैं. आदिवासियों का एक बड़ा तबका ऐसा है जो खुद को हिंदू नहीं मानता है. इनमें झारखंड के आदिवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है. ये आदिवासी खुद को ‘सरना धर्म’ का बताते हैं.

संविधान में अनुसूचित जनजातियों यानी आदिवासियों को ‘हिंदू’ माना जाता है. लेकिन बहुत से कानून ऐसे हैं, जो इन पर लागू नहीं होते. जैसे कि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, और हिन्दू दतकत्ता और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 2(2) और हिन्दू वयस्कता और संरक्षता अधिनियम 1956 की धारा 3(2) अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होते.

इसका मतलब ये हुआ कि बहुविवाह, विवाह, तलाक, दत्तकता, भरण-पोषण, उत्तराधिकार जैसे तमाम प्रावधान अनुसूचित जनजाति के लोगों पर लागू नहीं हैं. इसकी एक वजह ये भी है कि सैकड़ों जनजातियों और उप-जनजातियों के शादी, तलाक और उत्तराधिकार को लेकर अपने अलग रीति-रिवाज और परंपराएं है.

2001 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया था कि अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोग हिंदू धर्म मानते हैं, लेकिन ये हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2(2) के दायरे से बाहर हैं. लिहाजा इन्हें आईपीसी की धारा 494 (बहुविवाह) के तहत दोषी नहीं माना जा सकता. इसी तहत 2005 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जनजाति के लोग अपने समुदाय के रीति-रिवाजों के अनुसार शादी कर सकते है.

सरना धर्म कोड क्या है?

दरअसल, जनगणना रजिस्टर में धर्म का एक कॉलम होता है. इस कॉलम में अलग-अलग धर्मों का अलग-अलग कोड होता है. जैसे हिंदू धर्म का 1, मुस्लिम का 2, क्रिश्चियन धर्म का 3. ऐसे ही सरना धर्म के लिए अलग कोड की मांग हो रही है. अगर केंद्र सरकार सरना धर्म के लिए अलग से कोड की मांग को मान लेती है तो फिर हिंदू, मुस्लिम की तरह ‘सरना’ भी अलग धर्म बन जाएगा.

झारखंड के आदिवासी वर्षों से अपने लिए अलग से ‘सरना धर्म कोड’ लागू करने की मांग कर रहे हैं. आदिवासियों की ये मांग 80 के दशक से चली आ रही है. 2019 में झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार आने के बाद ये मांग और तेज़ हो गई. सोरेन सरकार ने ‘सरना धर्म कोड बिल’ पास भी किया था. लेकिन ये बिल अभी केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए अटका है.

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