मणिपुर के सेनापति जिले में कई आदिवासी सिविल सोसाइटी संगठनों ने 14 सितंबर की मध्यरात्रि से 24 घंटे के पूर्ण बंद का आह्वान किया है. 13 सितंबर को संगठनों ने एक आपात बैठक के बाद जारी एक बयान में कहा कि यह बंद ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन, मणिपुर द्वारा सरकार के ‘गो टू द हिल्स’ अभियान के दूसरे चरण का बहिष्कार करने के समर्थन में है.
उन्होंने बंद का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ ‘कठोर कार्रवाई’ की चेतावनी भी दी है. मणिपुर की लाइफ़लाइन कहा जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 2 सेनापति के पहाड़ी ज़िले से होकर गुजरता है. इसलिए इस बंद से सामान्य जनजीवन तो प्रभावित होगा ही, इसके अलावा रोज़मर्रा के इस्तेमाल के सामान की आवाजाही पर भी असर पड़ेगा.
एक सितंबर को मणिपुर विधान सभा सचिवालय ने नौ गैर-आदिवासी विधायकों को हिल एरिया कमेटी में शामिल करने का आदेश जारी किया था. आदिवासी संगठनों की कड़ी आपत्तियों के बाद 4 सितंबर को आदेश को रोक दिया गया था.
राजनेता ओकराम जॉय ने इस आदेश के ख़िलाफ़ राष्ट्रपति से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया, क्योंकि उनका कहना था कि स्पीकर को ऐसा करने का अधिकार नहीं है. आखिरकार 8 सितंबर को आदेश वापस ले लिया गया.
हालांकि आदिवासी संगठन सिर्फ़ इस कदम से संतुष्ट नहीं थे. आदेश वापसी की वजह उन्हें मंज़ूर नहीं थी, क्योंकि यह अनुच्छेद 371-सी के मुताबिक मणिपुर विधान सभा में “प्रक्रियाओं और कार्य संचालन के नियमों” पर आधारित नहीं था.
15 सितंबर को सेनापति जिले में ‘गो टू द हिल्स’ कार्यक्रम का आयोजन होना है. समारोह में मुख्यमंत्री एन बीरेन, अन्य मंत्री और उच्च अधिकारी शामिल होंगे.
पुलिस के मुताबिक़ अप्रिय घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है. सूत्रों ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं था कि कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा या नहीं. दरअसल पहाड़ी जिलों में सिविल सोसाइटी संगठनों द्वारा किए गए पिछले सभी बंद सफल रहे हैं.
पिछले हफ्ते ही मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने राज्य के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों तक विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए ‘गो टू हिल्स 2.0’ अभियान की शुरुआत की है.
सरकार ने मार्च 2017 में ‘गो-टू हिल्स’ कार्यक्रम शुरू किया था लेकिन यह कोविड-19 महामारी के चलते 2019-20 में निलंबित रहा.