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आदिवासी सम्मेलन ‘संवाद’ ने स्टील सिटी को किया मंत्रमुग्ध, सांस्कृतिक एकता का प्रदर्शन दिखा

टाटा स्टील फाउंडेशन के सीईओ सौरव राय ने कहा कि हर साल 'संवाद' एक विशिष्ट विषय से बंधा होता है, जो आदिवासी पहचान के आसपास की कई चर्चाओं से पैदा होता है. इस वर्ष की थीम 'रिइमेजिन' है, जिसका उद्देश्य इस गतिशील समाज में सामाजिक परिवर्तन को सक्षम करने में जनजातीय लोगों की भूमिका के बारे में बातचीत को बढ़ावा देना है.

जमशेदपुर के गोपाल मैदान में मंगलवार को शुरू हुए पांच दिवसीय सम्मेलन ‘संवाद’ में झारखंड के 32 सहित देश भर के 200 से अधिक आदिवासी समुदाय हिस्सा ले रहे हैं. उद्घाटन समारोह में 501 ‘नगाड़ों’ की गूंज सुनाई दी. इस कार्यक्रम की मेजबानी कर रहे टाटा स्टील के शीर्ष अधिकारियों के साथ विभिन्न समुदायों के प्रमुख उद्घाटन समारोह में उपस्थित थे.

‘संवाद’ आदिवासी पहचान पर आधारित एक कार्यक्रम है और यह आयोजन का नौवां संस्करण है. कोविड-19 महामारी के चलते पिछले दो साल से इस कार्यक्रम का आयोजन वर्चुअली किया जा रहा था.

15 से 19 नवंबर के बीच चलनेवाले इस जनजातीय सम्मेलन में 23 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों के 27 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) सहित 200 जनजातियों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की. आयोजन के दूसरे दिन, एक आदिवासी एल्बम, जिसमें भारत भर के विभिन्न आदिवासी समुदायों के 52 कलाकारों द्वारा गाए गए 12 गीतों का संग्रह जारी किया गया था.

टाटा स्टील फाउंडेशन के सीईओ सौरव राय ने कहा कि हर साल ‘संवाद’ एक विशिष्ट विषय से बंधा होता है, जो आदिवासी पहचान के आसपास की कई चर्चाओं से पैदा होता है. इस वर्ष की थीम ‘रिइमेजिन’ है, जिसका उद्देश्य इस गतिशील समाज में सामाजिक परिवर्तन को सक्षम करने में जनजातीय लोगों की भूमिका के बारे में बातचीत को बढ़ावा देना है और स्वयं समुदायों से आवाज सुनना है कि यह उनके लिए क्या मायने रखता है.

यही नहीं, इन जनजातीय समूहों के रहन सहन और जीवन शैली से भी प्रेरणा लेनी है ताकि आज की समस्याओं को दूर किया जा सके. आज हम यह महसूस कर रहे हैं कि वर्तमान में हम जिन सबसे महत्वपूर्ण समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उनका उत्तर हमारे देश और दुनिया के स्वदेशी समुदायों के पास है.

उन्होंने कहा कि यह आयोजन भारत में आदिवासियों पर सबसे बड़े मंचों में से एक है, जिसमें आदिवासी संस्कृति का जश्न मनाने के लिए आदिवासी कलाकारों, बुनकरों और कारीगरों, संगीतकारों, होम शेफ, विद्वानों, फिल्म निर्माताओं और कलाकारों को एक साथ एक मंच पर देखा जाएगा.

इस साल 175 से अधिक आदिवासी हीलर जनजातीय चिकित्सा पद्धतियों के महत्व को बता रहे हैं. साथ ही संथाल कठपुतली, वारली कला, और बोडो बुनाई जैसे कला रूपों के लाइव प्रदर्शनों के साथ-साथ प्रदर्शनी-सह-बिक्री स्टालों के माध्यम से जनजातीय कला और हस्तशिल्प में 41 से अधिक कला रूपों का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है.

बुधवार शाम को केरल, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मणिपुर के आदिवासी समुदायों के मंत्रमुग्ध कर देने वाले सांस्कृतिक प्रदर्शनों का सैकड़ों दर्शकों ने आनंद लिया. नगाड़ों की थाप पर शहर के लड़के-लड़कियां नाचते नजर आए.

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