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छत्तीसगढ़ आदिवासी आरक्षण मामला: सुप्रीम कोर्ट ने राज्‍य सरकार की याचिका पर जारी किया नोटिस     

राज्य के आदिवासी इलाकों में आरक्षण के मुद्दे पर हर दिन प्रदर्शन हो रहे हैं. कहीं चक्का जाम किया जा रहा है, कहीं धरना दिया जा रहा है. मंगलवार को भी पूरे राज्य में राष्ट्रीय राजमार्ग को जगह-जगह जाम कर दिया गया. कुछ जगहों पर रेल यातायात भी रोकने की कोशिश हुई.

छत्तीसगढ़ आदिवासी आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्‍य सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया है. जस्टिस बी आर गवई और विक्रम नाथ की पीठ ने हाई कोर्ट के 19 सितंबर, 2022 के आदेश के खिलाफ गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 1 दिसंबर को करेगा.

राज्य सरकार ने अधिवक्ता सुमीर सोढ़ी के माध्यम से दायर अपनी याचिका में दलील दी है कि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मामले के तथ्यों और दिए गए आंकड़ों की जांच किए बिना आदेश पारित किया.

साल 2012 में आरक्षण नियमों में संशोधन के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था. साल 2012 के संशोधन के अनुसार, अनुसूचित जाति के लिए कोटा चार प्रतिशत घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया था, जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई थी और इसे 32 प्रतिशत कर दिया गया था. अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को 14 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया था.

उसी साल गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी और अन्य याचिकाकर्ताओं ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील दी थी कि क्योंकि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक हो गया है इसलिए सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 16(1) के तहत अवसर की समानता के सिद्धांतों का उल्लघन किया है.

क्या है मामला?

दरअसल, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितम्बर को आरक्षण पर बड़ा फैसला देते हुए राज्य के लोक सेवा आरक्षण अधिनियम को रद्द कर दिया था. इसकी वजह से अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत पर आ गया है. वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 13 प्रतिशत से बढ़कर 16 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 प्रतिशत हो गया है.

राज्य के आदिवासी इलाकों में आरक्षण के मुद्दे पर हर दिन प्रदर्शन हो रहे हैं. कहीं चक्का जाम किया जा रहा है, कहीं धरना दिया जा रहा है. मंगलवार को भी पूरे राज्य में राष्ट्रीय राजमार्ग को जगह-जगह जाम कर दिया गया. कुछ जगहों पर रेल यातायात भी रोकने की कोशिश हुई.

छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर अजीब-सी स्थिति पैदा हो गई है. यह देश का अकेला ऐसा राज्य है, जहां पिछले दो महीने से लोक सेवाओं और शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण का नियम और रोस्टर ही लागू नहीं है.

सूचना के अधिकार में पूछे गए एक सवाल के जवाब में भी राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने कहा है कि हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण की व्यवस्था को असंवैधानिक बताये जाने के बाद से राज्य में आरक्षण से संबंधित नियम और रोस्टर सक्रिय नहीं है.

राज्य सरकार ने तीन साल पहले पूरे देश में सर्वाधिक 82 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी लेकिन छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इसपर रोक लगा दी. आरक्षण लागू नहीं होने से राज्य के इंजीनियरिंग, पॉलीटेक्निक, बीएड, हार्टीकल्चर, एग्रीकल्चर समेत कई पाठ्यक्रमों में काउंसिलिंगऔर प्रवेश का काम अटक गया है.

राज्य लोक सेवा आयोग की भर्तियां और उनके परिणाम रोक दिए गए हैं. 12 हज़ार शिक्षकों की भर्ती समेत कई पदों की अधिसूचना रोक दी गई है. वहीं लगभग एक हज़ार रिक्त पदों के लिए 6 नवंबर को होने वाली सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा स्थगित कर दी गई.

वहीं आदिवासी आरक्षण में कटौती के मुद्दे को लेकर विपक्षी पार्टी बीजेपी भी बेहद मुखर है. आदिवासी आरक्षण में कटौती के विरोध में पार्टी ने बुधवार को राज्य भर में चक्का जाम किया था. बीजेपी नेताओं ने बताया कि आदिवासी आरक्षण में कटौती के विरोध में बीजेपी अनुसूचित जनजाति मोर्चा के साथ मिलकर पार्टी के नेताओं ने अलग-अलग जगहों पर चक्का जाम किया.

इस बीच, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासी वर्ग को भरोसा दिलाया है कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद 32 से 20 प्रतिशत हुए आरक्षण को बहाल करने सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है. इसके लिए महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक में आरक्षण की विधिक स्थिति का अध्ययन करने अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ता का दल जल्द जाएगा.

साथ ही सीएम बघेल ने यह भी कहा कि आदिवासियों के हित और उनके संरक्षण के लिए संविधान में जो भी प्रावधान है, उसका सरकार पालन कर रही है. हमारी मंशा साफ है कि संविधान द्वारा अनुसूचित जनजाति वर्ग को प्रदान किए गए सभी संवैधानिक अधिकार उन्हें मिलें.

2012 में आरक्षण बढ़ा

छत्तीसगढ़ में साल 2012 से पहले तक अनुसूचित जाति को 16, अनुसूचित जनजाति को 20 और ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता था. यानि 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था. तब राज्य में बीजेपी के नेतृत्व वाली रमन सिंह सरकार थी. तब की सरकार ने 2012 में आरक्षण को बढ़ाकर 58 प्रतिशत कर दिया.

इस नए नियम के तहत अनुसूचित जाति के आरक्षण को 16 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 20 से बढ़ाकर 32 प्रतिशत और ओबीसी को पहले की ही तरह 14 प्रतिशत आरक्षण मिलना शुरू हो गया.

रमन सिंह सरकार के इस फैसले का काफी विरोध हुआ. फैसले को 2012 में ही छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. एक दशक तक चले केस में 19 सितंबर 2022 को अदालत ने 58 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक बताकर नकार दिया.

सीएम भूपेश बघेल ने आरोप लगाया कि 2012 में आरक्षण बढ़ाने के बाद दो समितियों का गठन किया गया था लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी रिपोर्ट अदालत के सामने पेश नहीं की. जबकि 2012 से ही हाईकोर्ट में इसे लेकर सुनवाई चल रही है. 2012 से 2018 तक बीजेपी सरकार ने कोर्ट में मजबूती से आरक्षण का पक्ष नहीं रखा. इसके बाद 2018 में हमारी सरकार बनी तो केवल डेटिंग-पेंटिंग का काम बचा था.

राजनीतिक हलचल

छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण के मुद्दे ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है. सरकार और विपक्ष दोनों ही इसके लिए एक-दूसरे को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं. बीजेपी का आरोप है कि उनकी सरकार द्वारा लागू किए गए आरक्षण नियमों का कांग्रेस पार्टी शुरु से विरोध करती रही है.

उनका कहना है कि आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण देने के पक्ष में कांग्रेस नहीं हैं इसलिए कांग्रेस के लोगों ने ही हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी थी.

छत्तीसगढ़ के लिए आदिवासी आरक्षण एक बड़ा मुद्दा है. 2011 के जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से छत्तीसगढ़ में 30.62 प्रतिशत आबादी अनसूचित जनजाति की थी. वहीं 12.82 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति की है. अब ऐसे में जब अगले साल ही राज्य में चुनाव होने हैं, तो बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही पार्टी इस मुद्दे पर सक्रिय दिख रही हैं.

छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट और विधानसभा में क्या कुछ होता है इस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि छत्तीसगढ़ में आरक्षण का दायरा क्या होगा?

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