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सौर लाइटें खराब होने से नागरहोल के अंदर आदिवासी बस्तियां अंधेरे में डूबी

संबंधित प्राधिकारियों और लाइटों के लिए जिम्मेदार एजेंसी को अनेक शिकायतें और तत्काल अपील के बावजूद इस समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.

देश के सुदूर इलाकों में बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने के अधिकारियों के दावों के विपरीत, कर्नाटक के नागरहोल टाइगर रिजर्व (Nagarahole Tiger Reserve) के वन क्षेत्रों में आदिवासी बस्तियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

मैसूरु जिले के एचडी कोटे तालुक में डीबी कुप्पे ग्राम पंचायत के अंतर्गत गोलुरु आदिवासी बस्ती (Goluru tribal hamlet) में लगाई गई सौर लाइटें खराब पड़ी हैं, जिससे पूरा इलाका अंधेरे में डूबा हुआ है.

आदिवासी अब जंगली जानवरों के हमले के डर में जी रहे हैं. गांव में आंगनवाड़ी सहित जरूरी सेवाओं को नियमित बिजली मिलती है लेकिन इन बस्तियों के घर खराब सौर लाइटों के कारण अंधेरे में डूबे रहते हैं.

मानसून से पहले यह असमानता बेहद निराशाजनक है क्योंकि इससे आदिवासी समुदाय की कठिनाइयां बढ़ जाती हैं.

राज्य सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आदिवासियों की दलीलों का जवाब देते हुए इस आदिवासी क्षेत्र के सभी घरों के सामने सौर लाइटें लगाईं थी, जो पांच साल से अधिक समय तक काम करने का वादा करती हैं. लेकिन इनमें से ज्यादातर लाइटें खराब हो गई हैं, जिससे गोलुरु के 50 से अधिक घर बिना रोशनी के अंधेरे में डूब गए हैं.

संबंधित प्राधिकारियों और लाइटों के लिए जिम्मेदार एजेंसी को अनेक शिकायतें और तत्काल अपील के बावजूद इस समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.

अखिल भारत जनाधिकार सुरक्षा समिति के सदस्य सुनीत टीआर ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि यह अस्वीकार्य है कि आज के समय में एक पूरा समुदाय बुनियादी सुविधाओं के बिना रह गया है. हमने दिए गए टोल-फ्री नंबर पर संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बहाने बनाए और कहा कि उनका वेतन रोक दिया गया है. यहां तक कि अधिकारियों ने भी मदद के लिए बार-बार की गई अपीलों को नज़रअंदाज़ किया है.

गोलुरु की निवासी गौरी ने अपनी परेशानी साझा करते हुए कहा कि निवासी लगातार डर में जी रहे हैं.

गौरी ने कहा कि उचित प्रकाश व्यवस्था के बिना हम साँपों और अन्य वन्यजीवों को नहीं देख सकते जो हमारे घरों के पास और कभी-कभी हमारे घरों में घुस आते हैं. मानसून में यह और भी बदतर हो जाता है क्योंकि बारिश के कारण और अधिक जंगली जानवर आश्रय की तलाश में गाँव में आ जाते हैं.

वहीं आदिवासी विकास परियोजना (आईटीडीपी) अधिकारी और पंचायत विकास अधिकारी (पीडीओ) संपर्क करने पर इस मामले में जवाब नहीं दे रहे हैं.

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