HomeAdivasi Dailyअसम के आदिवासी संगठनों की मांग, ख़त्म हो आदिवासी इलाक़ों से अतिक्रमण

असम के आदिवासी संगठनों की मांग, ख़त्म हो आदिवासी इलाक़ों से अतिक्रमण

CCTOA ने अपने ज्ञापन में कहा है कि "जनजातीय क्षेत्रों और ब्लॉकों से अतिक्रमण हटाने के लिए संबंधित प्राधिकरण द्वारा आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है."

असम के जनजातीय संगठनों की समन्वय समिति (Coordination Committee of the Tribal Organizations of Assam – CCTOA) के कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को सोनापुर सर्कल कार्यालय का घेराव किया. उन्होंने सोनापुर सर्कल अधिकारी के माध्यम से राज्य के मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भी भेजा है.

CCTOA ने इस ज्ञापन के ज़रिए कई मांगें सामने रखी हैं. इनमें कुछ ख़ास मांगें यह हैं:

– आदिवासी इलाक़ों से अतिक्रमण करने वालों और अवैध उद्योगों को हटाया जाए,

– जनजातीय क्षेत्रों और आदिवासी-बहुल क्षेत्रों में भूमि का सर्वेक्षण किया जाए,

– आदिवासियों को उनके कब्जे में भूमि के लिए पट्टा दिया जाए,

– वन अधिकार अधिनियम, 2006 का कार्यान्वयन हो,

– और, आदिवासी इलाक़ों, ट्राइबल सब-प्लान (टीएसपी) और Integrated Tribal Development Projects (आईटीडीपी) को Assam State Capital Region Development Authority (ASCRDA) के दायरे से बाहर किया जाए.

एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान गुवाहाटी हाई कोर्ट ने आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक वाले जिलों के उपायुक्तों को निर्देश दिया था कि वे इन आदिवासी इलाक़ों में अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कानून के अनुसार ज़रूरी कार्रवाई करें. आदिवासी इलाक़ों से अवैध कब्जा हटाने के संबंध में की गई कार्रवाई की डीटेल्स उपायुक्तों को व्यक्तिगत हलफनामे के तौर पर दाखिल करने को भी कहा गया था.

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर इस आदेश को प्रभावी करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए जाते हैं, तो अदालत की प्रक्रिया में देरी के लिए जिम्मेदार पाए जाने वाले अधिकारियों के वेतन से वसूली करने के बारे में कोर्ट विचार करेगी. लेकिन CCTOA ने अपने ज्ञापन में कहा है कि “जनजातीय क्षेत्रों और ब्लॉकों से अतिक्रमण हटाने के लिए संबंधित प्राधिकरण द्वारा आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.”

असम के राभा आदिवासी

CCTOA ने असम सरकार से गुवाहाटी हाई कोर्ट के निर्देशों को लागू करने का अनुरोध किया है. कार्यकरर्ताओं ने असम में कुल जनजातीय क्षेत्र के सिकुड़ने और संबंधित जनजातीय इलाक़ों में डी-शेड्यूलिंग के परिणामों पर भी चिंता ज़ाहिर की. उनका कहना है कि डी-शेड्यूलिंग से कई लाख आदिवासी बेघर और भूमिहीन हो गए.

ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि इस स्थिति ने असम की अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षिक स्थिति को काफी हद तक खराब कर दिया है. इसलिए, सीसीटीओए ने सरकार से सभी गैर-अनुसूचित जनजातीय बेल्टों को बहाल करने का अनुरोध किया है.

सीसीटीओए ने यह भी मांग की कि आदिवासी इलाक़ों और आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों में उचित भूमि सर्वेक्षण किया जाना चाहिए और आदिवासी लोगों को उनके कब्जे में भूमि के पूरे टुकड़े का तुरंत पट्टा दिया जाना चाहिए. ज्ञापन में कहा गया है, “वन अधिकार अधिनियम, 2006 असम में ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है. इसलिए अनुसूचित जनजाति के लोगों को काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए हमारी मांग है कि राज्य सरकार को विभिन्न वनों और आरक्षित वनों में सभी आदिवासी निवासियों को भूमि के बंदोबस्त/भूमि का मालिकाना हक जारी करने के लिए एक फ़ैसला लेना चाहिए. इसी क़दम से आदिवासियों के खिलाफ किए गए ऐतिहासिक अन्याय का निवारण हो पाएगा.”

सीसीटीओए ने यह भी कहा कि ASCRDA के दायरे में आदिवासी इलाक़ों, ट्राइबल सब-प्लान और आईटीडीपी क्षेत्रों को शामिल करने के असम सरकार का प्रस्ताव आदिवासी अधिकारों के लिए सीधा-सीधा ख़तरा है.

2011 की जनगणना के हिसाब से असम में आदिवासियों की आबादी लगभग 40 लाख है, जो राज्य की कुल आबादी का क़रीब 13 प्रतिशत हिस्सा है.

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