राज्य भर के अलग-अलग आदिवासी संगठनों ने गोवा विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण की मांग पर अपना आंदोलन तेज करने का फ़ैसला किया है.
पिछले हफ़्ते “गोवा की अनुसूचित जनजातियों के लिए मिशन राजनीतिक आरक्षण” के बैनर तले रैली निकाली गई. उन्होंने राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि वो उनकी मांग पर ध्यान दें.
रैली में भाग लेने के लिए राज्य के अलग-अलग हिस्सों से बड़ी संख्या में आदिवासी पहुंचे. रैली के बाद एक जनसभा का भी आयोजन हुआ, जिसे प्रमुख आदिवासी नेताओं ने संबोधित किया.
अपने भाषणों में उन्होंने चेतावनी दी कि अगर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक आरक्षण की मांग नहीं मानी गई तो आदिवासी समुदाय विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरेगा.
संगठन के अध्यक्ष जॉन फ़र्नांडीस ने कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभा में एसटी के लिए 12% राजनीतिक आरक्षण उनका संवैधानिक अधिकार था. उन्होंने कहा कि यह अधिकार उन्हें तुरंत दिया जाना चाहिए.
फ़र्नांडीस ने यह भी कहा कि “कानून की स्थापित स्थिति के बावजूद” आदिवासियों को राजनीतिक आरक्षण देने में सरकार की नाकामी को राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी बताया.
संगठन के सलाहकार गोविंद शिरोडकर ने भी आदिवासियों को विधानसभा में सीटों में आरक्षण से वंचित करके गोवा के आदिवासी समुदायों को न्याय देने में विफल रहने के लिए सरकार की आलोचना की. संगठन के वकील रवींद्र वेलिप ने जनजातियों के लिए राजनीतिक आरक्षण की कानूनी स्थिति के बारे में बात की.
राज्य के आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के 19 साल बाद भी विधानसभा में 12% सीट आरक्षण लागू नहीं किया गया है.
गोवा के गौड़ा, कुनबी और वेलिप आदिवासी समुदायों को 2003 में अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल किया गया था. आदिवासी नेताओं ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो राज्य के आदिवासी 2024 के लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने से भी नहीं हिचकिचाएंगे.