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ओडिशा, झारखंड के कई जिलों में आदिवासी सालाना 1 लाख रुपये से कम कमाते हैं

झारखंड में परिवारों की वार्षिक आय का लगभग 30 प्रतिशत दैनिक मजदूरी से आता है और बाकी खेती, वन उपज, पेंशन आदि से आता है. मजदूरी न सिर्फ उनकी आय में मुख्य रूप से योगदान करता है बल्कि पैसे कमाने का एक नियमित स्रोत भी है.

एक सर्वेक्षण के मुताबिक, ओडिशा और झारखंड के कई जिलों में आदिवासी सालाना 1 लाख रुपये से कम कमाते हैं. दोनों राज्यों में कम से कम आठ जिलों में परिवारों की मासिक आय 6 हज़ार रुपये से कम है.

2021 में किए सर्वेक्षण में ये जानकारी सामने आई है. जिसे पिछले चार दशकों से जनजातीय समुदायों के साथ और उनके लिए काम करने वाले एनजीओ प्रदान (PRADAN) और फोर्ड फाउंडेशन ने गहन जनजातीय विकास कार्यक्रम (ITDP) के तहत किया. इस सर्वेक्षण में ‘आदिवासी बहुल’ प्रशासनिक ब्लॉक पर केंद्रित 5 हज़ार परिवारों को कवर किया गया. बेसिक सैंपल यूनिट 20 घरों वाला एक गांव था.

रिपोर्ट में आजीविका के हर पहलू को शामिल किया गया है. साथ ही आदिवासी और गैर-आदिवासी गांवों के बीच के अंतर और विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) और आदिवासियों के बीच के अंतर को समझाया गया है.

दैनिक मजदूरी

झारखंड और ओडिशा दोनों में आदिवासी दैनिक मजदूरी पर निर्भर हैं जो इन परिवारों की वार्षिक आय में प्रमुख रूप से योगदान करती हैं, खासकर महिला मुखिया वाले परिवारों में.

झारखंड में परिवारों की वार्षिक आय का लगभग 30 प्रतिशत दैनिक मजदूरी से आता है और बाकी खेती, वन उपज, पेंशन आदि से आता है. मजदूरी न सिर्फ उनकी आय में मुख्य रूप से योगदान करता है बल्कि पैसे कमाने का एक नियमित स्रोत भी है.

मजदूरी में आदिवासी और गैर-आदिवासी परिवारों के बीच असमानता है. एक आदिवासी परिवार की सालाना मजदूरी लगभग 31 हज़ार रुपये है जबकि गैर-आदिवासी परिवार की मजदूरी 42,085 रुपये है- मासिक अंतर लगभग 1 हज़ार रुपये का है.

सर्वेक्षण से पता चला कि कैसे वन उपज का वार्षिक आय में बहुत कम योगदान है. जबकि गैर-आदिवासी परिवारों में वन उपज से आय अधिक होती है.

आहार विविधता (Dietary Diversity)

आहार विविधता (पोषक तत्वों का सेवन और उपभोग किए गए भोजन की गुणवत्ता) स्वीकार्य आहार और परिवारों की खाद्य सुरक्षा के बारे में चौंकाने वाले आंकड़े बताती है. आदिवासियों के मामले में, सर्वेक्षण में शामिल कुल लोगों में से आधे भी पूरी तरह से पौष्टिक भोजन का सेवन नहीं करते हैं.

लगभग 24 प्रतिशत आदिवासी महिलाएं गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षित हैं, जिसका मतलब है कि उनके खानपान में पोषक तत्वों की मात्रा बहुत कम है और लगभग 43 प्रतिशत महिलाएं आहार विविधता की सीमा रेखा पर हैं. आदिवासी आबादी का एक बड़ा हिस्सा मध्यम और मामूली रूप से खाद्य असुरक्षित है, जिसका अर्थ है कि उनका खानपान उतना अच्छा नहीं है.

सब मिलाकर देखे तो औसतन आदिवासी और गैर-आदिवासी परिवारों में आंकड़े स्पष्ट रूप से अलग हैं. दोनों राज्यों में औसत परिवार का आकार पांच है. झारखंड में सिर्फ 47 प्रतिशत आदिवासी पूरी तरह से खाद्य सुरक्षित हैं, जबकि गैर-आदिवासी समूहों में यह संख्या बढ़कर 54 प्रतिशत हो जाती है. क्योंकि आदिवासियों की आय कम है इसलिए खाद्य सुरक्षा का औसत भी कम है.

मामूली और मध्यम असुरक्षित श्रेणी में आदिवासी और गैर-आदिवासी समूहों के बीच ज्यादा अंतर नहीं है जबकि गंभीर रूप से वंचित वर्ग में बहुत बड़ा अंतर है. हालांकि, डेटा ने बॉडी मास इंडेक्स इकट्ठा नहीं किया फिर भी यह दोनों राज्यों में कुपोषण की बड़ी तस्वीर दिखाता है.

भूमिहीन और संसाधनों तक पहुंच

आदिवासी और गैर-आदिवासी परिवारों को उनकी भूमि के मुताबिक अलग-अलग वर्गों में वर्गीकृत किया गया था. अपेक्षित रूप से 95 प्रतिशत आदिवासी परिवार भूमिहीन, सीमांत या छोटे किसान हैं. 10 एकड़ वाले किसानों का अनुपात 0.7 प्रतिशत है. झारखंड में 5 से 10 एकड़ के बीच वाले किसानों का अनुपात 2.4 प्रतिशत और ओडिशा में 3.6 प्रतिशत है.

ओडिशा में 14 प्रतिशत आदिवासी, 28 प्रतिशत गैर-आदिवासी और 47 प्रतिशत PVTG भूमिहीन हैं. झारखंड में ये अनुपात आदिवासी के लिए 12 प्रतिशत और गैर-आदिवासी उत्तरदाताओं के लिए 30 प्रतिशत थे. ओडिशा में पीवीटीजी के बीच भूमिहीन परिवारों की संख्या महत्वपूर्ण है क्योंकि कई आदिवासियों के पास भी कोई जमीन नहीं है.

सभी श्रेणियों में सभी उत्तरदाता या तो भूमिहीन या सीमांत भूमिधारक (एक हेक्टेयर से कम) या छोटे भूमिधारक (दो हेक्टेयर से कम) हैं. जो भूमि है भी वो उबड़-खाबड़ और पहाड़ी इलाकों में होने और मिट्टी की पतली परत होने के कारण परिवारों की स्थिति खराब है.

सर्वेक्षण में पाया गया कि झारखंड में जंगलों से एक किलोमीटर से कम दूरी पर स्थित परिवारों की आय का प्रतिशत एक समान था. जंगलों के अंदर या बहुत करीब 20 प्रतिशत से अधिक परिवार दोनों राज्यों में सबसे कम आय वर्ग के थे और लगभग 19 प्रतिशत उच्चतम आय वर्ग के थे.

दूसरी ओर जंगलों से पांच किलोमीटर या उससे अधिक दूरी पर स्थित परिवार उच्च आय प्रतिशत समूहों में थे. झारखंड में सिर्फ 17 प्रतिशत और ओडिशा में 14 प्रतिशत सबसे कम आय प्रतिशत समूह में थे. जबकि उच्चतम आय वाले परिवारों का अनुपात झारखंड में 14.5 प्रतिशत और ओडिशा में 22.1 प्रतिशत तक बढ़ गया. इससे पता चला कि जंगलों से दूर रहने वाले लोग संभवतः अधिक आर्थिक अवसरों का इस्तेमाल कर सकते हैं और ज्यादा आय अर्जित कर सकते हैं.

सर्वेक्षण ने साक्षरता के स्तर में भी अंतर दिखाया. भूमिहीन परिवारों में निरक्षर सदस्यों का अनुपात काफी अधिक है. आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों परिवारों में “स्कूल नहीं जाने” का अनुपात काफी बड़ा था. सभी श्रेणियों में निरक्षर लोगों की संख्या झारखंड की तुलना में ओडिशा में आम तौर पर अधिक है खासकर आदिवासी परिवारों में.

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