HomeLaw & Rightsसुप्रीम कोर्ट आदिवासी सर्टिफिकेट की जाँच के मापदंड तय करेगा

सुप्रीम कोर्ट आदिवासी सर्टिफिकेट की जाँच के मापदंड तय करेगा

आदिवासी के फ़र्ज़ी सर्टिफिकेट की वैधता जाँचने के मापदंड पर सुप्रीम कोर्ट के ही दो तरह के फ़ैसलों से भ्रम की स्थिति बन गई थी. आज यानि 9 फ़रवरी को सुप्रीम कोर्ट में 3 जजों की बेंच ने इस मामले को तय करने के लिए सुनवाई शुरू की है.

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को आदिवासी समुदायों के लोगों को जारी होने वाले जाति प्रमाणपत्रों से जुड़े एक महत्वपूर्ण और पेचीदा सवाल पर सुनवाई शुरू हुई है.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने सवाल है- आदिवासी समुदायों के जाति प्रमाणपत्रों की वैधता को जाँचने वाली कमेटी (cast scrutiny committee) के लिए क्या यह ज़रूरी है कि जाति प्रमाण पत्र से पहले एफिनेटी टेस्ट (Affinity Test) ज़रूर कराए. 

सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट की ही दो अलग-अलग बेंच ने आदिवासी यानि अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र को जाँचने के अलग अलग मापदंड बताए हैं. 

इसलिए यह मामला मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने तीन जजों के सामने रखने का फैसला किया था. ताकि इस मसले पर कोई एक राय बन सके. 

एफिनेटी टेस्ट (Affinity Test) क्या है

आदिवासी इलाक़ों में अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्रों पर कई बार विवाद पैदा होता है. महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में यह एक बड़ा मुद्दा बताया जाता है. कई आदिवासी संगठन इस मुद्दे को बड़ा राजनीतिक मसला भी बताते हैं.

इस तरह के मामले अक्सर कोर्ट भी पहुँच जाते हैं. किसी व्यक्ति का जाति प्रमाणपत्र की वैधता को जाँचने के लिए ज़िला स्तर पर एक कमेटी का गठन किया जाता है. अगर किसी व्यक्ति के जाति प्रमाणपत्र पर किसी तरह का संदेह व्यक्त किया जाता है तो यह कमेटी उस प्रमाणपत्र की वैधता को प्रमाणित करती है.

यह कमेटी जाति प्रमाणपत्र से जुड़े ज़रूरी दस्तावेज़ों के अलावा इस बात की भी जाँच कर सकती है कि जिस व्यक्ति के जाति प्रमाणपत्र की जाँच की जा रही है क्या वह व्यक्ति आदिवासी जीवनशैली, रीति रिवाजों और धार्मिक सामाजिक आस्थाओं में विश्वास रखता है या नहीं. 

एक तरह से यह एक तुलनात्मक अध्ययन है जो एक समाज के साथ किसी व्यक्ति विशेष के संबंध का विश्लेषण करता है. 

इस मामले की पृष्ठभूमि क्या है

सुप्रीम कोर्ट ने 2010 के एक मामले का निपटारा करे हुए कहा था बॉम्बे हाईकोर्ट की फ़ुल बेंच के फ़ैसले का हवाला दिया था. बॉम्बे हाईकोर्ट ने की फ़ुल बेंच का यह फ़ैसला था कि कोई व्यक्ति असल में अनुसूचित जनजाति यानि आदिवासी समुदाय से है या नहीं यह तय करते समय Kinship और Affinity Test ज़रूरी है. 

यानि उस व्यक्ति की जीवनशैली, धार्मिक-सामाजिक आस्थाएँ और सांस्कृतिक पहलुओं को ध्यान में रखा जाना ज़रूरी है. 

लेकिन सुप्रीम कोर्ट की एक और बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले को नज़रअंदाज़ कर दिया. इस बेंच ने फ़ैसला दिया कि Affinity test कोई लिटमस टेस्ट नहीं हो सकता है.

ऐसी स्थिति में यह ज़रूरी हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट यह तय करे कि अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्रों की वैधता को जाँचने के मापदंड तय कर दे.

हालाँकि यह एक बेहद पेचीदा मामला है क्योंकि आज तक यह ही नहीं तय हो पाया है कि किसी आदिवासी समुदाय को किन ठोस मापदंडों पर परखने के बाद अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाता है. 

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