तमिलनाडु के धर्मपुरी ज़िले की एक आदिवासी बस्ती सितेरी के निवासियों ने ज़िला प्रशासन से अपने इलाक़े में सेलफोन टावर स्थापित करने की मांग की है. उनका कहना है कि नेटवर्क कनेक्टिविटी की कमी उनकी दिनचर्या को प्रभावित कर रही है.
वो कहते हैं कि ख़ासतौर पर आपात स्थिति में नेटवर्क की कमी उन्हें बहुत खलती है, क्योंकि कभी-कभी इलाज में देरी की वजह से रोगियों की मौत भी हो जाती है.
अब इलाक़े के आदिवासियों ने प्लान बनाया है कि अगर प्रशासन ने मोबाइल टावर लगाने के लिए ज़रूरी क़दम नहीं उठाए, तो निवासी 9 अक्टूबर को होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों का बहिष्कार करेंगे. सितेरी पंचायत पप्पीरेड्डीपट्टी ब्लॉक का हिस्सा है, और इसमें 60 से ज़्यादा आदिवासी बस्तियां हैं. पंचायत की कुल आबादी 9,000 से अधिक है, जिनमें से अधिकांश खेती में लगे हैं.
बस्ती के एक किसान श्रीकांत ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “22 गांवों में लैंडलाइन कनेक्शन नहीं है. हालांकि, कई लोगों के पास मोबाइल फोन हैं, सेलफ़ोन टावरों की कमी की वजह से उनके पास कोई सिग्नल नहीं होता. हाल के दिनों में, स्कूल के ऑनलाइन होने के बाद से यहां के बच्चों की शिक्षा बिल्कुल ठप पड़ी है. अगर एक और लॉकडाउन होता है, तो हमारे गाँव में ड्रॉपआउट्स बढ़ जाएंगे.”
बस्ती के एक और निवासी वेंकटेशन ने कहा कि आपात स्थिति में एम्बुलेंस बुलाने के लिए भी उन्हें सिग्नल तभी मिलता है जब 5-6 किलोमीटर पैदल चलते हैं.
सितेरी में एक पीएचसी है, लेकिन प्राथमिक उपचार के लिए भी इन पहाड़ी इलाकों को पार करने में लोगों को घंटों लग जाते हैं. अगर इस समस्या का समाधान जल्द नहीं किया जाता, तो लोगों की जान जा सकती, क्योंकि सबसे क़रीब का अस्पताल 30 किलोमीटर दूर है.
अपना विरोध दर्ज करने के लिए बस्ती के आदिवासियों ने अपने घरों में काले झंडे फहराए हैं.
इलाक़े के तीन गांवों के कॉलेज ग्रेजुएट्स ने बताया कि पिछले साल जब उन्हें अपनी सेमेस्टर परीक्षा के पेपर लिखने और जमा करने थे, तो उन्हें हारूर के लिए बस लेनी पड़ी, और परीक्षा लिखने के लिए बस स्टैंड पर बैठना पड़ा. जहां 22 गांवों में कनेक्शन बल्कुल नहीं है, वहीं दूसरे गावों में कनेक्टिविटी बेहद ख़राब है.
हारूर के राजस्व अधिकारियों ने कहा कि वह बीएसएनएल या दूसरे सर्विस प्रोवाइडर्स से टावर लगाने का अनुरोध करेंगे.