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यहां के आदिवासी क्या चाहते हैं? बस, नदी पार करने के लिए एक छोटा सा पुल

चंपाझार पंचायत के तहत ठाकुरमुंडा ब्लॉक का यह गांव पंचायत ऑफ़िस से बस 12 किलोमीटर और ब्लॉक मुख्यालय से 25 किमी की दूरी पर है. लेकिन सड़क संपर्क की कमी ने इस गांव की सभी सुविधाओं से दूरी को कई गुना बढ़ा दिया है.

ओडिशा के सिमलिपाल टाइगर रिज़र्व की तलहटी पर बसा है डांगडीहा गांव. इस गांव में रहने वाले आदिवासियों की सबसे बड़ी मांग है सालिंदी नदी पर एक पुल, बस एक छोटा सा पुल.

लेकिन, आज़ादी के 75 साल पूरे होने के बाद भी सालिंदी नदी के किनारे बसा मयूरभंज का यह गांव मानो प्रशासन की नज़रों से ओझल हो गया है.

चंपाझार पंचायत के तहत ठाकुरमुंडा ब्लॉक का यह गांव पंचायत ऑफ़िस से बस 12 किलोमीटर और ब्लॉक मुख्यालय से 25 किमी की दूरी पर है. लेकिन सड़क संपर्क की कमी ने इस गांव की सभी सुविधाओं से दूरी को कई गुना बढ़ा दिया है.

इस गांव में लगभग 114 आदिवासी परिवारों के 800 लोग रहते हैं. इनके गांव तक न तो पक्की सड़क जाती है, न पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी कोई सुविधाएं ही हैं.

हर साल, गांव के लोग अपने रोज़मर्रा के कामों के लिए नदी पार करने के लिए इस पर बने अस्थायी बांस के पुल की मरम्मत करते हैं, क्योंकि उसके बिना उनकी जान को बड़ा ख़तरा है.

बारिश के मौसम में उनकी परेशानी और बढ़ जाती है, ख़ासतौर पर तब जब कोई मेडिकल इमरजेंसी हो, और गांववालों को मरीज़ों को चारपाई पर डालकर नदी पार करनी पड़ती है. गांव का सबसे निकटतम स्वास्थ्य केंद्र 20 किमी से भी ज़्यादा दूर ठाकुरमुंडा का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC ) है.

गांववालों का कहना है कि वो इन मुद्दों को बार-बार उठाते हैं, और हर साल अधिकारियों से स्थायी पुल की मांग करते हैं, लेकिन उनकी मांग अनसुनी ही है.

डांगडीहा में तीन आदिवासी बस्तियां हैं, जिनमें बंगाली शाही और बाल शाही सालिंदी नदी के एक छोर पर स्थित हैं. बंगाली शाही में मौजूद आंगनवाड़ी केंद्र तक पहुंचने के लिए घुटू शाही से गर्भवती महिलाओं और बच्चों को बांस के पुल को पार करना पड़ता है.

दूसरी तरफ़ बंगाली शाही और बाल शाही के निवासियों के लिए प्राथमिक स्कूल घुटू शाही में है. ऐसे में इन तीनों बस्तियों के लिए यह पुल बेहद अहम है.

35 साल की ममता बंकिरा ने एक्सप्रेस को बताया, “हर साल हम बांस के पुल की मरम्मत करते हैं और नदी पार करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. लेकिन स्थायी पुल की हमारी मांग प्रशासन का ध्यान खींचने में विफल रही है.” पुल के लिए कई बार बीडीओ और तहसीलदार से मुलाक़ात की गई हैं, लेकिन काम नहीं हुआ है.

दशकों से मूलभूत सुविधाओं से वंचित इन दूरदराज़ के गांवों के आदिवासी अब अपनी बात पर ज़ोर देने के लिए आगामी पंचायत चुनाव का बहिष्कार करने का प्लान बना रहे हैं.

करंजिया के उप कलेक्टर रजनीकांत बिस्वाल ने अखबार को बताया कि उन्होंने ग्रामीण विकास (करंजिया) के एक्सिक्यूटिव इंजीनियर के साथ गांव में पुल के निर्माण पर चर्चा की है. वो कहते हैं कि जल्द ही वो बीडीओ, तहसीलदार और ईई के साथ गांव का दौरा करेंगे, और हालात का जायज़ा लेने के बाद ज़रूरी क़दम उठाएंगे.

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