वरिष्ठ आदिवासी नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने बृहस्पतिवार को आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा की जोरदार वकालत करते हुए आरोप लगाया कि उन्हें प्रगति का बोझ उठाने पर मजबूर किया जा रहा है और उनके ‘जल, जंगल और जमीन’ ख़तरे में हैं.
नेताम ने ये बाते नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 25 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर- ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग- द्वितीया’ को संबोधित करते हुए कहा.
इस कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत भी मौजूद थे.
उन्होंने छत्तीसगढ़ के हसदेव वन में कोयला खनन पर चिंता जताई और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम के कथित उल्लंघन का भी मुद्दा उठाया.
नेताम ने कहा, ‘‘अदालत के आदेश के बावजूद सरकार ने हमारे सरगुजा हसदेव जंगल में कोयला खनन के मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं दिया है. मैं आरएसएस से पूछना चाहता हूं कि अगर कानून और न्यायपालिका का सम्मान नहीं किया जाता है तो क्या होना चाहिए? 150 साल पहले, इस देश के लोगों ने इसी कारण से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी.’’
1,701 वर्ग किलोमीटर में फैले हसदेव अरण्य वन भारत के सबसे बड़े वन क्षेत्रों में से एक हैं, जो 25 लुप्तप्राय प्रजातियों, 92 पक्षी प्रजातियों और 167 दुर्लभ और औषधीय पौधों की प्रजातियों का घर हैं.
करीब 15,000 आदिवासी लोग अपनी आजीविका और सांस्कृतिक पहचान के लिए इन जंगलों पर निर्भर हैं और उनकी ग्राम सभाओं ने लगातार कोयला खनन परियोजनाओं का विरोध किया है.
इस क्षेत्र में 23 कोयला ब्लॉक हैं, जिनमें से तीन – परसा, परसा ईस्ट केंटे बसन (PEKB) और केंटे एक्सटेंशन कोल ब्लॉक (KECB) – राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित हैं और अडानी समूह द्वारा संचालित हैं.
औद्योगिक विकास परियोजनाओं के कारण बड़े पैमाने पर आदिवासी समुदायों का विस्थापन हो रहा है, इस पर नेताम ने कहा कि आदिवासियों को विकास का बोझ उठाना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘औद्योगिकीकरण एक बड़ी चुनौती है. हालांकि यह जरूरी है लेकिन ऐसा लगता है कि केवल आदिवासियों को ही स्थानांतरित होने के लिए कहा जा रहा है. वनों और आदिवासी भूमि की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के बावजूद, ‘जल, जंगल, जमीन’ ख़तरे में हैं.”
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पी वी नरसिंह राव के मंत्रिमंडल में रह चुके नेताम ने कहा कि औद्योगीकरण के कारण विस्थापन ने तीन दशकों से लोगों को परेशान कर रखा है.
उन्होंने आरोप लगाया कि आदिवासी स्वायत्तता और भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए पेसा कानून का नियमित रूप से उल्लंघन किया जाता है.
उन्होंने कहा, “एक भी राज्य सरकार ने पेसा कानून का पालन नहीं किया है और केंद्र सरकार चुप नहीं है बल्कि उद्योगपतियों की सक्रिय रूप से मदद कर रही है. मैं विकास के खिलाफ नहीं हूं लेकिन समाज की इसमें हिस्सेदारी होनी चाहिए. आरएसएस को आदिवासी मुद्दों पर गहराई से विचार करने की जरूरत है.”
उन्होंने कहा कि आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जाना चाहिए बल्कि समुदाय के जमीन से गहरे जुड़ाव का सम्मान करते हुए उसे पट्टे पर लिया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, “मजदूर मालिक बनना चाहता है, लेकिन जमीन का मालिक मजदूर नहीं बनना चाहता.”
पिछले 25 वर्षों में छत्तीसगढ़ में जारी किए गए किसी भी औद्योगिक लाइसेंस में पेसा का पालन नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि सभी लाइसेंस फर्जी तरीके से जारी किए गए.
उन्होंने कहा, “अगर आदिवासी इस स्थिति से जूझ रहे हैं तो यह बहुत ज्यादा है. मैं आरएसएस से आग्रह करता हूं कि वह इस मामले को गंभीरता से ले और इसका समाधान निकालने की कोशिश करे.”
नेताम ने धर्मांतरण और नक्सलवाद पर भी चिंता जताई और इन्हें बड़ी चुनौती बताया.
उन्होंने बस्तर में नक्सल आंदोलन को बेअसर करने के लिए केंद्र सरकार के अभियान की सराहना की, लेकिन लापरवाही बरतने की चेतावनी भी दी.
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “अगर भारत सरकार सोती रही तो यही समस्या फिर से सामने आएगी.”
राष्ट्रीय एकता और सामाजिक एकीकरण के लिए आरएसएस की सराहना करते हुए नेताम ने कहा, “आदिवासियों और आरएसएस को कुछ कदम उठाने चाहिए. आदिवासी समाज और आरएसएस के बीच की दूरी कम होनी चाहिए.”
अरविंद नेताम छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र से आने वाले देश के प्रतिष्ठित आदिवासी नेताओं में से एक हैं. वे पूर्व में इंदिरा गांधी और नरसिम्हा राव सरकारों में मंत्री भी रह चुके हैं.
बस्तर से ताल्लुक रखने वाले नेताम ने 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी और आदिवासी संगठनों के एक छत्र समूह सर्व आदिवासी समाज (SAS) से अलग होकर हमार राज पार्टी बनाई थी.
उन्होंने आदिवासी अधिकारों की पैरवी करते हुए जंगल, ज़मीन, और संविधान की पांचवीं अनुसूची से जुड़े मुद्दों पर हमेशा खुलकर आवाज़ उठाई है.
वहीं RSS के महत्वपूर्ण वार्षिक कार्यक्रम में अरविंद नेताम का शामिल होना सिर्फ एक सामाजिक पहल नहीं बल्कि एक गहरी राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा सकता है.
इस आयोजन में नेताम की भागीदारी आरएसएस के उस निरंतर प्रयास का हिस्सा मानी जा रही है जिसमें वह आदिवासी समुदाय के साथ अपने रिश्तों को गहरा करना चाहता है.