उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के शक्ति नगर थाना क्षेत्र की एक बेहद अमानवीय और शर्मनाक घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वायरल वीडियो में कुछ लोग एक आदिवासी युवक के ऊपर पेशाब करते हैं और उसकी बेरहमी से पिटाई करते हुए नजर आ रहे हैं.
जैसी ही वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर वायरल हुआ, पुलिस ने संज्ञान लिया.
सोनभद्र पुलिस ने बताया कि उन्होंने बुधवार को आदिवासी युवक की पिटाई करने और उस पर पेशाब करने के आरोप में अंकित भारती नाम के शख्स को गिरफ्तार किया है.
सोनभद्र के एडिशनल एसपी (मुख्यालय) कालू सिंह ने बताया कि शिव कुमार खरवार नाम के शख्स ने शिकायत दर्ज कराई है कि उसके भाई पवन करवार को अंकित भारती और आठ अन्य लोगों ने 26 सितंबर की शाम करीब सात बजे शक्तिनगर क्षेत्र में बैरियर नंबर एक के पास पीटा गया.
उन्होंने न सिर्फ उसके साथ मारपीट की बल्कि घटना का वीडियो भी रिकॉर्ड कर लिया और उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया.
शिकायत पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने अंकित को हिरासत में ले लिया और उससे उसके साथियों के बारे में पूछताछ कर रही है, जिन्हें भी जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा.
एसपी ने बताया कि इस संबंध में संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जा रहा है.
पुलिस ने पीड़ित और उसके भाई से भी संपर्क किया. उन्होंने बताया कि चोट लगने के कारण वे तुरंत इलाज के लिए मध्य प्रदेश के बैढन चले गए, जिसके कारण वे घटना की सूचना पहले पुलिस को नहीं दे सके.
वायरल वीडियो..
वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि कुछ मनबढ़ युवक एक युवक के साथ न सिर्फ मारपीट कर रहे हैं, बल्कि उसके सिर और मुंह पर पेशाब भी कर रहे हैं. इस घटना से पूरे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया है.
पुलिस ने लोगों से अपील की है कि वे सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट और गलत जानकारी साझा न करें, जिससे कानून-व्यवस्था प्रभावित हो. पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से मामले की जांच कर रहा है और जल्द ही दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
वीडियो वायरल होने के बाद अब इस मामले में सियासत भी शुरू हो गई है. समाजवादी पार्टी ने योगी सरकार पर निशाना साधा है.
सपा नेता आईपी सिंह ने एक्स पर वीडियो शेयर करते हुए लिखा, “दृश्य देखकर दिल दहल जाए. लहूलुहान पवन खरवार आदिवासी हैं. गालियों की बौछार करते हुए उनके ऊपर पेशाब करता यह व्यक्ति अंकित कितना बेख़ौफ़ और निडर है. लोगों के मुताबिक उसे बीजेपी सरकार का समर्थन प्राप्त है. CM योगी आदित्यनाथ के रामराज्य में एससी एसटी के लिए अमृतकाल है.”
यह पहला मामला नहीं
इस तरह का यह पहला मामला नहीं है. इसी साल जुलाई महीने में सोनभद्र जिले के घटिहटा गांव से भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था. जहां एक व्यक्ति ने आदिवासी युवक के कान और चेहरे पर पेशाब कर दिया था.
इस मामले में भी वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने संज्ञान लिया था और आरोपी को एससी/एसटी अधिनियम और दंड संहिता की कई धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था.
इसके अलावा इस साल जुलाई महीने की शुरुआत में एक वीडियो वायरल हुआ था, जो मध्य प्रदेश के सीधी जिले का था. जिसमें प्रवेश शुक्ला नाम का युवक शराब के नशे में सिगरेट पीते हुए आदिवासी युवक के चेहरे पर पेशाब करते देखा गया था. प्रवेश शुक्ला सीधी विधायक केदारनाथ शुक्ला का करीबी बताया गया. हालांकि केदारनाथ शुक्ला ने प्रवेश शुक्ला के प्रतिनिधि होने की खबरों का खंडन किया था.
इस वीडियो के वायरल होने के साथ ही पुलिस ने तेज़ी से कार्रवाई करते हुए आरोपी को हिरासत में लिया था.
इतना ही नहीं इस मामले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने पीड़ित दशमत रावत के पैर धोए थे और उन्हें कुछ उपहार दिए थे. उन्होंने दशमत रावत से माफ़ी मांगी थी और कहा कि वे उनकी पीड़ा का सांझा करना चाहते हैं.
आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार
हाल ही आई एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, एसटी के खिलाफ अत्याचार के अधिकांश मामले भी 13 राज्यों में हुए। एसटी से जुड़े 9,735 मामलों में से मध्य प्रदेश में 2,979 मामले (30.61 प्रतिशत), राजस्थान में 2,498 मामले (25.66 प्रतिशत) और ओडिशा में 773 मामले (7.94 प्रतिशत) दर्ज किए गए.
एसटी से संबंधित अन्य मामलों में महाराष्ट्र में 691 मामले (7.10 प्रतिशत) और आंध्र प्रदेश में 499 मामले (5.13 प्रतिशत) शामिल हैं.
इस रिपोर्ट में जांच और चार्जशीट से संबंधित डेटा भी प्रस्तुत किया गया है. अनुसूचित जनजाति से संबंधित मामलों में 63.32 प्रतिशत मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए गए, जबकि 14.71 प्रतिशत मामलों में अंतिम रिपोर्ट दी गई. 2022 के अंत तक 2,702 मामलों की जांच जारी थी.
रिपोर्ट में एक प्रमुख चिंता अधिनियम के तहत दोषसिद्धि दर में गिरावट है; साल 2022 में यह दर 2020 के 39.2 प्रतिशत से घटकर 32.4 प्रतिशत हो गई.
रिपोर्ट में इन मामलों के निपटारे के लिए विशेष अदालतों की अपर्याप्त संख्या पर भी चिंता व्यक्त की गई है. 14 राज्यों के 498 जिलों में से सिर्फ 194 जिलों ने विशेष अदालतें स्थापित की हैं ताकि मामलों की तेजी से सुनवाई हो सके.