सरकारी जनगणना के आंकड़ों पर अविश्वास और आदिवासी समुदायों के हाशिये पर धकेले जाने की बढ़ती चिंता के चलते छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में सर्व आदिवासी समाज के सदस्यों ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है… उन्होंने खुद अपनी जनगणना करने का बीड़ा उठाया है.
आदिवासी युवाओं और बुजुर्गों द्वारा संचालित यह समुदाय-नेतृत्व वाली पहल अब बस्तर संभाग और धमतरी और बालोद जिलों के आस-पास के इलाकों के 1,000 से अधिक गांवों में चल रही है.
सर्व आदिवासी समाज के बस्तर संभाग अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने इस स्व-जनगणना को जन्म, मृत्यु, विवाह, ज़मीन के मालिकाना हक़, लोगों के आने-जाने के तरीक़े और ‘टोटम’ और देवी-देवताओं जैसे सांस्कृतिक पहलुओं को दर्ज करने के लिए बेहद ज़रूरी बताया.
उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से अपनी बातचीत में कहा, कहा, “दशकों से हमारे पास अपनी जनसंख्या या सामाजिक स्थितियों का स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं था. इसलिए हमने अपना खुद का सर्वेक्षण करने का फैसला किया और यह जारी रहेगा. हम हर चीज का दस्तावेजीकरण करने के लिए एक मोबाइल ऐप का उपयोग कर रहे हैं.”
प्रकाश ठाकुर ने कहा कि इकट्ठा किए गए आंकड़े न केवल आदिवासी अधिकारों और पहचान की रक्षा में मदद करेंगे, बल्कि सरकार द्वारा जारी जनगणना के आंकड़ों की सत्यता जांचने में भी काम आएंगे, जिन पर पहले अविश्वास किया जाता रहा है.
उन्होंने 2027 की जनगणना और सीमांकन प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि यह पहल, सरकार द्वारा आदिवासी आबादी की सही गणना न कर पाने की नाकामी के कारण उठाई गई है. इस नाकामी के चलते कई गाँवों को गलत तरीके से निर्जन घोषित कर दिया गया है, जिससे लाभ, प्रतिनिधित्व और संसाधनों के आवंटन पर बुरा असर पड़ रहा है.
ठाकुर ने कहा, “हालांकि यह सर्वेक्षण आदिवासी समुदायों द्वारा किया जा रहा है लेकिन इसमें इन गांवों के सभी सामाजिक समूह शामिल हैं. जैसे अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के लोग. इसमें उन आदिवासियों का भी रिकॉर्ड रहेगा जिन्होंने धर्म परिवर्तन कर ईसाई धर्म अपनाया है. हमारा मानना है कि आदिवासी पहचान किसी एक धर्म से जुड़ी नहीं है, और यह रिकॉर्ड हमें इसे कानूनी तौर पर सिद्ध करने में मदद करेगा.”
छत्तीसगढ़ के आदिवासी मामलों के मंत्री रामविचार नेताम ने TOI से बात करते हुए कहा, ”समुदाय के प्रतिनिधि और समितियां लोगों का सही रिकॉर्ड रखते हैं और उसे नियमित रूप से अपडेट करते रहते हैं. अगर सर्व आदिवासी समाज अपना सर्वे कर रहा है, तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन अगर उन्होंने जनगणना की सच्चाई पर सवाल उठाया है तो मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह काम बहुत ही जिम्मेदारी से और कई स्तरों पर जांच-पड़ताल के बाद किया जाता है.”
वहीं इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए बस्तर के वरिष्ठ आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा, “मुझे इस पहल के बारे में पता चला है और यह कई पहलूओं को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है. मैं इसका समर्थन करता हूं, खासकर इसलिए क्योंकि यह आदिवासी लोगों में जागरूकता को दर्शाता है. सर्वेक्षण पूरी गंभीरता से किया जाना चाहिए.”
प्रशिक्षित आदिवासी युवा करेंगे सर्वे
बस्तर का स्व-जनगणना जन-आंदोलन का एक अनोखा उदाहरण है, जहां आदिवासी समुदाय अपनी कहानी, पहचान और आंकड़ों पर नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं, न केवल अपने अधिकारों की मांग करने के लिए बल्कि उनकी रक्षा के लिए भी.
मार्च 2025 में शुरू हुए इस सर्वेक्षण का उद्देश्य सटीक और समुदाय के स्वामित्व वाले रिकॉर्ड बनाए रखना है, जिसमें 18 प्रमुख पैरामीटर शामिल हैं – जैसे नाम, शिक्षा, गोत्र, ज़मीन-जायदाद, सरकारी योजनाओं का तक पहुंच, परम्परागत मान्यताएं और बहुत कुछ शामिल है.
ठाकुर ने कहा, “यहां तक कि जंगल में कोई जनजाति किस पेड़ की पूजा करती है या वे किस आत्मा की पूजा करते हैं, इसका भी दस्तावेजीकरण किया जाएगा.”
उन्हीं गांवों के प्रशिक्षित आदिवासी युवा सर्वेक्षण का काम कर रहे हैं. ब्लॉक और जिला स्तर पर निगरानी रखने वाले प्रत्येक गांव के दो स्वयंसेवक डिजिटल और मैन्युअल तरीके से डेटा एकत्र कर रहे हैं.
लगभग 50 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है बाकी का काम आने वाले महीनों में पूरा होने की उम्मीद है. लेकिन चालू खेती के मौसम के कारण इसमें थोड़ी देरी हो सकती है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि इस विशाल डेटा को रखने के लिए 17 प्रकार के रजिस्टर बनाए जा रहे हैं. साथ ही ‘गोत्र’ जैसे सांस्कृतिक पहचान चिन्हों को भी जोड़ा जा रहा है ताकि आदिवासी पहचान को पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित रखा और आगे बढ़ाया जा सके.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने इस पहल का समर्थन किया है और कहा है, ”आदिवासी युवाओं ने बिलकुल सही कदम उठाया है क्योंकि सरकार पर हमारे आंकड़ों को लेकर भरोसा नहीं किया जा सकता. बस्तर के आदिवासियों की यह जागरूकता सराहनीय है और इससे जाति आधारित जनगणना में किसी भी तरह की छेड़छाड़ को रोका जा सकेगा.”
आदिवासी नेताओं का कहना है कि मुख्य उद्देश्य एक भरोसेमंद डेटाबेस बनाना है जिसकी पुष्टि समुदाय करे और जिसका इस्तेमाल कानूनी विवादों या सरकारों द्वारा अपनी जनसंख्या समीक्षा के दौरान किया जा सके, खासकर जब किसी को सूची से हटाया जाए या सीट आरक्षण की समीक्षा हो.
ठाकुर कहते हैं, ”यह सिर्फ़ आंकड़ों का मामला नहीं है बल्कि यह हमारे अस्तित्व, सम्मान और अपनी ज़मीन से मिटाए जाने से बचाव का सवाल है.”