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आदिवासी कल्याण घोटाले में पहले खारिज हुई याचिका पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने बदला फैसला

कर्नाटक हाईकोर्ट ने वाल्मीकि आदिवासी घोटाले की जांच SIT से हटाकर CBI को सौंप दी है. जून 2024 से चल रही हैं जांच, लेकिन अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है. कब पूरी होगी ये जांच?

कर्नाटक के बहुचर्चित वाल्मीकि आदिवासी कल्याण घोटाले की जांच अब केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) करेगी.

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए, इस जांच से राज्य सरकार की विशेष जांच टीम (Special Investigation Team) को हटाकर, CBI को सौंपने के निर्देश दिए हैं.

पहले इस मामले में जब यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने CBI जांच की मांग करते हुए याचिका दायर की थी, तब अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया था.

अब जब भाजपा के चार वरिष्ठ नेताओं बसनगौड़ा पाटिल यतनाल, रमेश जारकीहोली, अरविंद लिम्बावली और कुमार बंगारप्पा ने फ़िर से इस मामले में व्यापक CBI जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की तब अदालत ने इस पर हाईकोर्ट ने अपना फैसला बदल दिया.

SIT की चार्जशीट में नहीं दिखा सियासी पक्ष

राज्य सरकार के अधीन काम करने वाली CID की विशेष शाखा ने इस मामले में 300 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की थी. लेकिन उसमें किसी भी कांग्रेस नेता का नाम नहीं था.

यहां तक कि उन नेताओं का नाम भी चार्जशीट में नहीं जोड़ा गया जिनका नाम सुसाइड नोट में सीधे तौर पर आया था.

चंद्रशेखरन की आत्महत्या से उजागर हुआ था घोटाला

यह घोटाला 52 वर्षीय पी. चंद्रशेखरन की आत्महत्या के बाद सामने आया था. चंद्रशेखरन राज्य आदिवासी कल्याण बोर्ड में लेखा अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे.

उनकी मौत के बाद मिले सुसाइड नोट में उन्होंने घोटाले के बारे में जानकारी दी थी और लिखा था कि उन पर राजनीतिक दबाव डाला जा रहा है और सच्चाई छिपाने के लिए उन्हें मजबूर किया जा रहा है.

प्रवर्तन निदेशालय ने क्या कहा?

प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच में खुलासा हुआ था कि आदिवासी विकास निगम से करीब ₹89.62 करोड़ की राशि अवैध तरीके से निकालकर फर्जी खातों में ट्रांसफर की गई.

बताया गया कि ये खाते मुख्यतः आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के थे और बाद में पैसों को शेल कंपनियों के जरिए घुमाया गया.

ईडी ने इस पूरे घोटाले का मास्टरमाइंड तत्कालीन आदिवासी कल्याण मंत्री बी. नागेन्द्र को बताया.

उनके साथ 24 अन्य लोगों की भूमिका भी जांच में सामने आई, जिनमें उनके करीबी सहयोगी और बैंकिंग चैनल से जुड़े लोग शामिल थे.

राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप

ईडी द्वारा गिरफ़्तारी के बाद बी. नागेन्द्र को तीन महीने जेल में रहना पड़ा और उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि विशेष जांच दल की रिपोर्ट में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई.

इस पूरे मामले में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री सिद्दरामैया पर भी विपक्ष ने सवाल खड़े किए.

भाजपा ने आरोप लगाया कि ₹89.6 करोड़ की गड़बड़ी को मुख्यमंत्री ने बतौर वित्त मंत्री स्वीकृति दी थी. भाजपा ने ये आशंका भी जताई थी कि कुल घोटाले की राशि ₹187 करोड़ तक जा सकती है.

घोटाले की जांच अब CBI के पास है. जून 2024 से लंबित ये मामला सत्ता और विपक्ष की सियासी लड़ाई का हिस्सा बन चुका है. लेकिन इस सियासत के बीच ये सवाल अब भी कायम है कि आदिवासी विकास के पैसे की जवाबदेही कौन तय करेगा और ये मामला कब तक चलेगा.

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