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आदिवासी समुदायों के लिए अनुसूचित जनजाति सूची में संशोधन का क्या मतलब है

राज्यों द्वारा भेजे गए प्रस्तावों के अनुसार अनुसूचित जनजाति सूची को संशोधित करने के लिए सरकार समय-समय पर ऐसे विधेयक लाती है.

केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कई राज्यों में अनुसूचित जनजातियों की सूची में संशोधन के लिए शुक्रवार को लोकसभा में चार अलग-अलग विधेयक पेश किए. संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य सूचियों को संशोधित करना चाहता है.

सूची के संबंध में विभिन्न राज्यों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को प्रभावी करने के लिए केंद्र सरकार समय-समय पर ऐसे विधेयक लाती है. यहां आपको यह जानने की जरूरत है कि एसटी सूचियां कैसे तैयार की जाती हैं और कैसे बदली जाती हैं.

दरअसल, इस साल सितंबर में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लिए एसटी सूची में कुछ आदिवासी समुदायों को शामिल करने की मंजूरी दी थी, जिससे इन राज्यों की लंबे समय से लंबित मांगों को पूरा किया जा सके. इसे प्रभावी करने के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय ने शुक्रवार को चार राज्यों के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है.

छत्तीसगढ़ में बिंझिया जनजातियों को संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक,  2022 के पारित होने के बाद राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी जाएगी. बिंझिया एक कृषक जनजाति हैं जिन्हें पहले ही ओडिशा और झारखंड में एसटी का दर्जा दिया जा चुका है.

वहीं तमिलनाडु नारिकोरवन और कुरीविक्करन जनजातियों को राज्य की एसटी सूची में जोड़ने का प्रस्ताव है. ये दोनों पारंपरिक खानाबदोश, शिकारी और संग्राहक जनजाति हैं. संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (द्वितीय संशोधन) विधेयक तमिलनाडु में अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित करना चाहता है.

जबकि कर्नाटक में एसटी सूची में बेट्टा-कुरुबा जिसे कडु कुरुबा जनजाति भी कहा जाता है, को शामिल करने का प्रस्ताव लंबे समय से चली आ रही मांग है. ये जनजातियां तीन दशकों से अनुसूचित जनजाति के रूप में अपनी मान्यता के लिए पैरवी कर रही हैं.

इसी तरह हिमाचल प्रदेश में हाटी जनजाति को एसटी सूची में शामिल किया जाना तय है. क्योंकि जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने को लेकर विधेयक को अर्जुन मुंडा ने लोकसभा में पेश किया गया. लोकसभा में यह बिल पारित होने के बाद राज्यसभा में प्रस्तुत किया जाएगा और दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से लागू हो जाएगा. बिल को संविधान संशोधन (जनजाति) आदेश (तृतीय संशोधन) 2022 नाम दिया गया है.

दिसंबर 2021 में एक महा ‘खुंबली’ में केंद्रीय हट्टी समुदाय ने जौनसार बावर क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बराबर एसटी का दर्जा देने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव भी पारित किया था. इस मांग को स्वीकार करने का प्रस्ताव राज्य विधानसभा चुनाव संपन्न होने के कुछ दिनों बाद आया है.

संविधान अनुसूचित जनजातियों को कैसे परिभाषित करता है?

भारत का संविधान अनुसूचित जनजातियों की पहचान अनुच्छेद 366 (25) के प्रावधानों के अनुसार “अनुच्छेद 342 (1) के तहत अनुसूचित जनजातियों के रूप में माना जाता है” के रूप में करता है.

इस संबंध में अनुच्छेद 342, अनुच्छेद 366 के साथ मिलकर केवल अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है, जिसमें “राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में हो सकता है और जहां यह एक राज्य है, एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा राज्यपाल से परामर्श करने के बाद उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में जनजातियों या जनजातीय समुदायों या जनजातियों या जनजातीय समुदायों के हिस्से या समूहों को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट करें.”

इसलिए अनिवार्य रूप से राष्ट्रपति भारत के संविधान के अनुसार जनजातीय समुदायों को अनुसूचित जनजातियों के रूप में अधिसूचित करने का एकमात्र अधिकार है, जिसमें राज्यपाल एक सिफारिशी भूमिका निभाते हैं.

हालांकि, अनुसूचित जनजाति समुदायों की पहचान के मानदंड पर संविधान मौन रहा है. किसी समुदाय को जनजाति की सूचि में शामिल करने का संविधान में कोई निश्चित मापदंड तय नहीं किया गया है. लेकिन 1965 में इस मसले पर लोकुर समिति का गठन अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के लिए किया गया था.

इस तरह इस समिति ने इस बारे में कुछ मानदंड सुझाए थे जिनके आधार पर किसी समुदाय को जनजाति का दर्जा देना का फैसला किया जा सकता है. लोकुर समिति ने किसी आदिवासी समुदाय को जनजाति में शामिल किये जाने के लिए पहचान के पांच मानदंड सुझाए थे – आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में संकोच और पिछड़ापन.

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 700 से अधिक मान्यता प्राप्त अनुसूचित जनजातियां हैं. पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और पुडुचेरी सहित पांच राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में वर्तमान में कोई सूचीबद्ध अनुसूचित जनजाति नहीं है.

एसटी सूचियों को संशोधित करने के लिए संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

अनुच्छेद 342 खंड (2) आगे प्रदान करता है कि संसद कानून द्वारा किसी जनजाति या आदिवासी समुदाय के भीतर या समूह के खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल या बाहर कर सकती है.

इसलिए अनिवार्य रूप से संसद सूचियों को संशोधित करने के लिए संविधान में संशोधन पारित करने का एकमात्र अधिकार है. इसके अतिरिक्त राज्य सरकारें एक सलाहकार की भूमिका निभाती हैं जिसमें जनजातियों को एसटी सूची में शामिल करने की प्रक्रिया संबंधित राज्य सरकारों की सिफारिशों के साथ शुरू होती है.

जिसे फिर जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेजा जाता है, जो उनकी समीक्षा करता है और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया को अनुमोदन के लिए भेजता है. अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग भी अंतिम रूप से आगे बढ़ने के लिए कैबिनेट को भेजे जाने से पहले सूचियों की निगरानी और अनुमोदन करता है.

अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त होने से क्या लाभ प्राप्त होते हैं?

संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूची अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन में जनजातीय समुदायों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करती है. पांचवीं अनुसूची जनजाति सलाहकार परिषद के लिए प्रदान करती है, जिसमें एसटी से इसके 3/4 सदस्य शामिल हैं, जबकि छठी अनुसूची स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषदों के प्रावधानों को सूचीबद्ध करती है. यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि आदिवासी समुदाय अपनी अनूठी संस्कृति को संरक्षित कर सकें.

इसके अलावा सरकार ने अनुसूचित जनजाति समुदायों के लाभ और उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं योजनाएं बनाई हैं. जिनमें पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति, विदेशी छात्रवृत्ति और राष्ट्रीय फैलोशिप, शिक्षा के अलावा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम से रियायती ऋण, और छात्रों के लिए छात्रावास शामिल है.

इसके अलावा, एसटी सूची में शामिल होने से आदिवासी समुदायों को सरकारी नीतियों के अनुसार नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ भी मिलता है.

राजनीतिक फ़ायदे और नुक़सान की भूमिका

देश के आदिवासी समुदायों की विशिष्ट पहचान और परिवेश को ध्यान में रख कर किसी समुदाय को संविधान में अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का प्रावधान किया गया है.

लेकिन किस समुदाय को इस श्रेणी में शामिल किया जाएगा, इसमें कई बार सरकारें राजनीतिक नफ़ा नुक़सान भी देखती है. हाल ही में सरकार ने कुछ समुदायों को जब अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने का फ़ैसला किया तो फिर यह चर्चा गर्म हुई थी.

ख़ासतौर से हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के कुछ समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने पर काफ़ी बहस हो रही है.

जबकि असम और कई दूसरे राज्यों के कई समुदाय हैं जो सरकार से नाराज़ हैं क्योंकि उन्हें आश्वासन देने के बाद भी सरकार ने अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल नहीं किया है.

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