मध्य प्रदेश के बैतूल में 23 आदिवासी परिवारों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इच्छामृत्यु की मांग की है. हालांकि उन्होंने यह पत्र सीधे राष्ट्रपति तक नहीं पहुंचाया है बल्कि राष्ट्रपति के नाम इच्छामृत्यु का आवेदन ज़िला कलेक्टर को दिया है.
उनका आरोप है कि उन्हें हरियाली खुशहाली योजना के तहत 2003 में दी गई जमीन अब प्रशासन ने वापस ले ली है जिसके कारण उनसे उनकी आजीविका का साधन छिन गया है और वे जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
ज़मीन पर निर्भरता के कारण इच्छामृत्यु की मांग
आदिवासी परिवारों का कहना है कि जमीन ही उनकी आय का मुख्य साधन है. आदिवासियों ने बताया कि साल 2003 में हरियाली खुशहाली योजना के तहत उन्हें ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर दो-दो हेक्टेयर जमीन दी गई थी.
ये ज़मीन मिलने के बाद उन्होंने यहां फलदार पेड़-पौधे लगाए. आज के समय में ये पेड़ और इनपर लगने वाले फल-फ़ूल ही इन आदिवासियों की आय का स्रोत हैं. लेकिन प्रशासन ने इस जमीन पर वुड क्लस्टर (लकड़ी उद्योग केंद्र) बनाने का फैसला कर लिया.
प्रशासन के इस फैसले के कारण ये परिवार जमीन से बेदखल हो गए हैं और अब उनके पास जीवन यापन का कोई साधन नहीं बचा है.
वुड क्लस्टर के लिए जमीन की वापसी
ज़िले के कढ़ाई गांव की 20 हेक्टेयर जमीन पर प्रशासन वुड क्लस्टर बना रहा है. इसके तहत फर्नीचर उद्योग की कई छोटी-बड़ी इकाइयाँ स्थापित की जानी हैं.
प्रशासन का मानना है कि वुड क्लस्टर से क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और इससे क्षेत्र में आर्थिक विकास होगा.
प्रशासन का पक्ष – जमीन के कागजात और कोर्ट का फैसला
प्रशासन का कहना है कि आदिवासी परिवारों के पास ज़मीन का कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं है और वे कोर्ट में भी केस हार चुके हैं.
अधिकारियों का कहना है कि कुछ संगठन इन आदिवासियों को भड़का रहे हैं.
प्रशासन का दावा है कि वुड क्लस्टर से स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे और इसका क्षेत्र के विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
आदिवासी परिवारों का तर्क – ग्राम सभा का प्रस्ताव ही हमारा अधिकार
पीड़ित परिवारों के पास केवल ग्राम पंचायत द्वारा 2003 में जारी किया गया प्रस्ताव है.
उनका कहना है कि अगर इस प्रस्ताव का कोई महत्व नहीं है, तो ग्राम सभा का अस्तित्व ही सवालों के घेरे में आता है.
वे कहते हैं कि जब आज तक उन्हें शासन द्वारा रोजगार नहीं मिला, तो अब भविष्य की गारंटी किस आधार पर दी जा रही है?
ज़िला कलेक्टर का दावा है कि वुड क्लस्टर से प्रभावित परिवारों को रोज़गार से जोड़ा जाएगा.
एक बार को मान भी लेते हैं कि जो आदिवासी परिवार इससे प्रभावित हुए हैं, सरकार उनके लिए यहां रोज़गार सुनुश्चित करेगी लेकिन जब तक वुड क्लस्टर का काम पूरा नहीं होता तब तक ये अपना जीवन कैसे बिताएंगे.
राष्ट्रपति समेत सरकार के उच्च अधिकारियों को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और आदिवासी परिवारों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए.