तमिलनाडु में तिरुपोरुर विधायक बालाजी ने सोमवार को ममल्लापुरम में चक्रवात ‘फेंगल’ से प्रभावित 85 इरुलर समुदाय के परिवारों से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने अस्थायी राहत के तौर पर परिवारों को त्रिपाल (टारपॉलिन) वितरित किए.
विधायक बालाजी ने प्रभावित परिवारों की कठिनाइयों को समझते हुए उनकी समस्याओं को जल्द से जल्द हल करने का आश्वासन दिया है.
चक्रवात ‘फेंगल’ ने इरुलर समुदाय के इन परिवारों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है. कई परिवार बेघर हो गए हैं और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में संघर्ष कर रहे हैं. विधायक ने इन परिवारों को राहत सामग्री प्रदान करने के साथ-साथ प्रशासन से भी समन्वय बनाकर उनकी स्थिति सुधारने की अपील की.
यहां के स्थानीय निवासियों ने विधायक के इस कदम की सराहना की है, लेकिन स्थायी समाधान की मांग को लेकर अपनी चिंताओं को भी व्यक्त किया है. इरुलर समुदाय के लोग मुख्यतः कमजोर वर्ग से आते हैं और उनकी स्थिति में सुधार के लिए दीर्घकालिक योजनाओं की आवश्यकता है.
इस मामले में सबसे ज़रूरी सवाल ये है कि इरुलर समुदाय के प्रभावित 85 परिवार अभी भी बेघऱ क्यों हैं. क्यों उनको अभी तक पक्के मकान नहीं दिये गए हैं. जबकि राज्य सरकार की “आदिवासी समुदायों के लिए नि:शुल्क आवास निर्माण” योजना मौजूद है.
तमिलनाडु के आदिद्रविड़ और जनजातीय कल्याण विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य आदिवासी समुदायों को सुरक्षित और स्थायी आवास प्रदान करना है.
इस योजना के तहत, जिन आदिवासी परिवारों को पट्टे की भूमि पर घरों का निर्माण किया जाता है. यह योजना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के समुदायों के जीवन स्तर को सुधारने और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से चलाई जा रही है.
इसके अलावा केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना को ख़ासतौर से आदिवासी इलाकों में विस्तार देने के दावे भी किये जाते हैं. इस साल सिंतबर महीने में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री उन्नत जनजातीय ग्राम अभियान के तहत 79156 करोड़ रुपए की व्यवस्था करने का फ़ैसला किया था.
इस योजना के बारे में बताया गया है कि सरकार एक ख़ास अभियान के तहत 63000 आदिवासी बहुल गांवों में विकास का काम करेगी. इस अभियान का उद्देश्य आदिवासी जनसंख्या का आर्थिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करना है.
लेकिन अफ़सोस की इन सभी योजनाओं और अभियानों के दावों के विपरीत तमिलनाडु जैसे विकसित राज्य में इरुला जनजाति के लोग खुले आसमान के नीचे जीने को मजबूर हैं.