HomeAdivasi Dailyवायनाड के आदिवासियों की आवाज़ माने जाने वाले लेखक-कार्यकर्ता के जे बेबी...

वायनाड के आदिवासियों की आवाज़ माने जाने वाले लेखक-कार्यकर्ता के जे बेबी का निधन

बेबी को एक लेखक, नाटककार और फिल्म निर्माता के रूप में भी अपनी पहचान बनाई थी. बेबी उन कुछ मलयालम लेखकों में से एक के तौर पर जाने जाते हैं जिन्होंने हाशिए पर पड़े आदिवासियों की आवाज़ को बुलंद किया.

केरल के वायनाड में आदिवासियों के उत्थान के लिए काम करने वाले लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता के.जे. बेबी का रविवार को निधन हो गया. वो 70 वर्ष के थे.

उनका शव जिले के नादवयाल गांव में उनके आवास के पास मिला. जिसके बाद पुलिस ने कहा कि यह आत्महत्या का मामला है और परिसर से बरामद एक सुसाइड नोट से पता चलता है कि वह अपना जीवन समाप्त करना चाहते थे क्योंकि वह 2021 में पत्नी शेरली की मृत्यु के बाद अकेलेपन से जूझ रहे थे.

के.जे. बेबी की दो बेटियां शांतिप्रिया और गीति प्रिया हैं.

बेबी को आदिवासी शिक्षा में क्रांति लाने वाले ‘कनव’ (Kanav) के लिए बेहतर जाना जाता है, जिसे उन्होंने 1991 में आदिवासी छात्रों के लिए स्थापित किया था.

उन्होंने एक लेखक, नाटककार और फिल्म निर्माता के रूप में भी अपनी पहचान बनाई थी. बेबी उन कुछ मलयालम लेखकों में से एक के तौर पर जाने जाते हैं जिन्होंने हाशिए पर पड़े आदिवासियों की आवाज़ को बुलंद किया.

उनके लेखन को उस क्रूरता का आईना माना जाता है जिसका सामना समुदाय ने पीढ़ियों से किया है.

उनके प्रमुख साहित्यिक योगदानों में ‘नादुगधिका’, ‘मावेलीमन्त्रम’, ‘बेसपुरक्काना’ और ‘गुडबाय मालाबार’ शामिल हैं. 1994 में केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार जीतने वाले मावेलीमन्त्रम को मलयालम दलित साहित्य में एक मील का पत्थर माना जाता है.

2021 में उन्होंने अपने नाटक ‘नादुगधिका’ के लिए सर्वश्रेष्ठ ग्रामीण नाटक के लिए पहला भारत भवन पुरस्कार जीता.

अपने दोनों ही लेखन में बेबी ने आदिवासियों द्वारा सामना की जाने वाली क्रूरता, अपमान और बहिष्कार को दर्शाया था.

वहीं 2019 में प्रकाशित उनके उपन्यास ‘गुडबाय मालाबार’ ने लोगन की पत्नी अन्ना के दृष्टिकोण से विलियम लोगन (जिन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान मालाबार क्षेत्र में सेवा की थी) के अशांत दिनों का वर्णन किया.

उपन्यास उन सामाजिक जटिलताओं में जाता है जो ब्रिटिश काल के दौरान अब उत्तरी केरल में मौजूद थीं.

इसके अलावा उन्होंने एक फिल्म गुडा (2003) भी लिखी और निर्देशित की, जो एक आदिवासी लड़की के ‘थिरंधु कल्याणम’ (यौवन प्राप्ति से संबंधित समारोह) के इर्द-गिर्द घूमती है. 

बेबी की बेटी शांति, जो कनव में पली-बढ़ी थी. उन्होंने एक किशोर आदिवासी लड़की की दुर्दशा को बताते हुए नायक की भूमिका निभाई थी.

कनवुआदिवासी बच्चों को शिक्षित करने का एक सपना

बेबी 1970 के दशक की शुरुआत में कन्नूर से वायनाड चले गए थे. यह आदिवासी जीवन, उनकी समृद्ध परंपराएं, लोकगीत, गीत, मिथक और कला के रूप थे जिन्होंने उनके अंदर के लेखक को जगाया.

इसके बाद 1991 में बेबी ने आदिवासी छात्रों के साथ ‘कनव’ की शुरुआत की. जिसमें ज्यादातर वायनाड के मुख्यधारा के स्कूलों से ड्रॉपआउट थे.

‘कनव’ जिसका अनुवाद ‘सपना’ होता है, उसका बेबी की पत्नी शेरली ने समर्थन दिया, जो एक कॉलेज प्रोफेसर के रूप में काम कर चुकी थीं.

कनवु का उद्देश्य ही दूरदराज के आदिवासी बस्तियों में पढ़ाई छोड़ चुके आदिवासी बच्चों की मदद करना था. इसके अलावा बेबी ने अपने दोनों बच्चों गीति और शांति को इसी स्कूल से शिक्षा दिलवायी.

वहीं समुदाय में पहचान की भावना को मजबूत करने में मदद करने के लिए ट्रेनिंग सेशन में आदिवासी लोकगीत और अनुष्ठान शामिल किए गए थे. इस अपारंपरिक शैक्षिक प्रयोग ने विश्व के कई हिस्सों के विद्वानों और शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित किया था.

4 एकड़ की ज़मीन पर एक लाइब्रेरी कम डॉरमेट्री, विजिटर के लिए आदिवासी झोपड़ियां और एक धान का खेत था, जहां खेती के साथ-साथ साल भर के लिए चावल भी मिलता था.

स्कूली शिक्षा के दौरान तीरंदाजी, मिट्टी के बर्तन और बांस की शिल्पकला की शिक्षा भी दी जाती थी. यहां छात्रों को योग, कलारी और फिल्म निर्देशन और संपादन भी सिखाया जाता था.

साल 2004 में बेबी ने कनव को छोड़ दिया और इस प्रोजेक्ट को एक ट्रस्ट को सौंप दिया, जिसके सदस्यों में स्कूल के पूर्व छात्र भी शामिल थे. हालांकि, वैकल्पिक स्कूल के रूप में कनव की धीरे-धीरे मृत्यु हो गई क्योंकि नई पीढ़ी के आदिवासी छात्र मेनस्ट्रीम सिलेबस वाले स्कूलों को चुन रहे थे.

एक ईसाई परिवार में जन्मे बेबी 1970 के दशक में नक्सली आंदोलन का सांस्कृतिक चेहरा थे. आदिवासी भाषा, संगीत, लय और लोकगीतों के प्रभाव में आकर उन्होंने अपना जीवन आदिवासियों के पालन-पोषण के लिए समर्पित कर दिया था.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments