झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 अपने दम पर लड़ने वाली बीजेपी ने ज़मीनी हक़ीकत को शायद स्वीकार कर लिया है. इसलिए अब वह राज्य में आगामी चुनावी लड़ाई में एनडीए का नेतृत्व करने के लिए तैयार है.
झारखंड चुनाव में एनडीए गठबंधन बनाने के अलावा भाजपा झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व वाली सरकार की विफलता, आदिवासी वोटों में विभाजन और झामुमो में विद्रोह का फ़ायदा उठाने की रणनीति पर काम करेगी.
झामुमो के दिग्गज नेता चंपई सोरेन 30 अगस्त को भाजपा में शामिल हो गए हैं.
उन्होंने हेमंत सोरेन के खिलाफ बगावत करते हुए आरोप लगाया है कि दो महीने पहले जमानत पर जेल से रिहा होने के बाद झामुमो नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और सरकार की बागडोर वापस सौंपने के लिए “अपमानित” किया.
भाजपा नेताओं का कहना है कि चंपई सोरेन को पार्टी में शामिल करने से पार्टी को कोल्हान क्षेत्र में वापसी करने में मदद मिलेगी, जो चंपई का गढ़ है.
इसके साथ ही इससे झामुमो नेतृत्व की पोल भी खुल जाएगी. क्योंकि इससे यह पता चलेगा कि हेमंत सोरेन जेल से सरकार चलाने की कोशिश कर रहे थे.
भाजपा के एक अंदरूनी सूत्रों ने MBB से बात करते हुए कहा, “अतीत में हमने अकेले चुनाव लड़ने की गलती की थी. लेकिन इस बार हम एनडीए के रूप में चुनाव लड़ेंगे. जेडी(यू) और एलजेपी (रामविलास) के साथ चर्चा लगभग पूरी हो चुकी है और जल्द ही इसकी घोषणा की जाएगी.”
हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए झारखंड से वरिष्ठ भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी कहा, “भाजपा लंबे अंतराल के बाद सहयोगियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रही है. जो लोग भाजपा छोड़कर चले गए थे, वे पार्टी में वापस आ गए हैं. पहली बार एक तीसरा मोर्चा भी सामने आ रहा है, जो आदिवासी मुद्दों को उठा रहा है, जिससे आदिवासी वोटों में विभाजन की संभावना है.”
उन्होंने आगे कहा, “इसके अलावा झामुमो में भी उथल-पुथल मची हुई है क्योंकि उसके वरिष्ठ नेता नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं. चंपई सोरेन हमारे साथ आ रहे हैं, वे लोगों को बताएंगे कि हेमंत सोरेन ने जेल से कैसे सरकार चलाई.”
इस साल तीन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं – हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में सितंबर-अक्टूबर में चुनाव हैं, जबकि झारखंड और महाराष्ट्र में साल के अंत तक चुनाव होने हैं.
इन चुनावों में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर लगा है क्योंकि इन्हें जीतकर वह लोकसभा चुनावों में अपने निराशाजनक प्रदर्शन के मद्देनजर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी प्रमुख स्थिति को मजबूत कर सकती है.
ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) के प्रमुख सुदेश महतो ने कहा है कि वह विधानसभा चुनावों में NDA का हिस्सा होंगे.
चंपई और महतो दोनों ने असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के साथ झारखंड चुनाव के भाजपा सह-प्रभारी, इस सप्ताह की शुरुआत में दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की.
भाजपा के अंदरूनी सूत्र ने कहा कि पार्टी सीट बंटवारे को लेकर जेडी(यू) और एलजेपी (आरवी) दोनों के साथ चर्चा कर रही है.
लोजपा (आरवी) प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा है कि उनकी पार्टी तभी अकेले चुनाव लड़ेगी जब सीट बंटवारे पर आम सहमति नहीं बनेगी.
हालांकि जद (यू) ने शुरू में राज्य की 81 सीटों में से करीब एक दर्जन सीटों पर अपना दावा पेश किया था लेकिन भाजपा के साथ उसकी बातचीत अभी भी जारी है.
भाजपा सूत्रों ने स्वीकार किया कि राज्य में पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती आदिवासी वोट हैं.
2019 में एक गैर-आदिवासी सीएम रघुबर दास के नेतृत्व में पांच साल तक सत्ता में रहने के बाद भाजपा झामुमो के नेतृत्व वाले कांग्रेस और राजद गठबंधन से चुनाव हार गई. अब इस गठबंधन को इंडिया ब्लॉक के नाम से जाना जा रहा है.
लोकसभा चुनाव 2024 में राज्य की 14 सीटों में से भाजपा ने 8 और आजसू को एक सीट मिली. लेकिन भाजपा ने आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी पांच सीटें इंडिया गठबंधन के हाथों खो दीं.
इनमें से भाजपा चार सीटें – खूंटी (जहां पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा मैदान में थे), लोहरदगा, सिंहभूम और राजमहल बड़े अंतर से हार गई.
भाजपा के खराब प्रदर्शन के लिए कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी द्वारा हेमंत की गिरफ्तारी के खिलाफ “आदिवासी प्रतिक्रिया” को जिम्मेदार ठहराया गया. भाजपा नेता इसे संविधान और आरक्षण को लेकर पार्टी के खिलाफ इंडिया अलायंस के “भ्रामक अभियान” के कारण दलित और आदिवासी समुदायों में पार्टी के खिलाफ “नाराजगी” का भी कारण मानते हैं.
भाजपा नेताओं ने बताया कि पार्टी को 1980 के दशक से अपने गढ़ कोल्हान में 2019 के चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा था, जब सरयू रॉय की बगावत के कारण उसे इस बेल्ट की सभी 14 सीटें हारनी पड़ी थीं, जिन्होंने पार्टी छोड़ दी थी और जमशेदपुर पूर्वी निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय के रूप में तत्कालीन सीएम रघुबर दास को हराया था.
पार्टी के एक नेता ने कहा, “लेकिन अब चंपई सोरेन और गीता कोड़ा जैसे वरिष्ठ नेताओं को शामिल करने के बाद भाजपा कोल्हान में कम से कम 8-9 सीटें जीत सकती है.”
सरयू रॉय इस महीने की शुरुआत में जेडी(यू) में शामिल हुए थे.
चंपई सोरेन ने कहा है कि उन्होंने “आदिवासी पहचान और अस्तित्व की रक्षा” के लिए भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है. उन्होंने दावा किया कि यह “एकमात्र पार्टी है जो आदिवासी मुद्दों के बारे में गंभीर है.”
वहीं भाजपा “अवैध घुसपैठ” और “आदिवासी लड़कियों की घुसपैठियों के साथ शादी” जैसे मुद्दों को उठाकर हेमंत सरकार पर निशाना साध रही है.
बजट सत्र में लोकसभा में इसे उठाते हुए निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया कि झारखंड की आदिवासी आबादी में 10 फीसदी की गिरावट आई है और राज्य में आदिवासी महिलाएं बांग्लादेशी पुरुषों से शादी कर रही हैं.
जबकि हिमंत बिस्व सरमा ने इस मुद्दे पर “चुप्पी बनाए रखने” के लिए झामुमो-कांग्रेस सरकार की भी आलोचना की है, जिसे उन्होंने उनकी “वोट बैंक की राजनीति” से जुड़ा बताया.
भाजपा नेताओं का दावा है कि घुसपैठ के मुद्दे ने संताल परगना क्षेत्र पर गहरा प्रभाव डाला है, जिसमें राज्य की कुल 28 एसटी-आरक्षित सीटों में से 18 सीटें हैं. वर्तमान में पार्टी के पास उनमें से केवल चार हैं.
दरअसल, झारखंड में सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने इस बार राज्य की आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों को जीतने पर जोर लगाया है. बीजेपी ने इस बार राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए अपने कद्दावर चेहरों पर दांव लगाने का फैसला किया है.
बीजेपी की कोशिश है कि कोल्हान क्षेत्र और संथाल परगना की सीटों पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित की जाए.
पार्टी का आकलन है कि अगर बीजेपी के बड़े आदिवासी चेहरे ST आरक्षित सीटों से लड़ते हैं तो जीत की संभावना ज्यादा होगी और पार्टी ST आरक्षित 28 में से लगभग आधी सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है.
वैसे भी बाबूलाल मरांडी ने हाल ही में कहा था कि हमने आरक्षित सीटों के लिए विशेष तैयारी की है.
भाजपा के पुराने चेहरों में अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी , सुदर्शन भगत, गीता कोड़ा, लुईस मरांडी, सीता सोरेन, सुनील सोरेन, दिनेश ओरांव, समीर ओरांव इन ST आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ते नजर आ सकते हैं.
इसके अलावा इस बार बीजेपी लैंड जिहाद और दामाद जिहाद जैसे मसले को भी जोर शोर से उठा रही है ताकि बांग्लादेशी घुसपैठ और इस्लामी चरमपंथियों से परेशान आदिवासी समुदाय को यह राजनीतिक संदेश दिया जा सके कि उनके समुदाय की रक्षा हेमंत सोरेन नहीं बल्कि बीजेपी की सरकार की सकती है.
हालांकि, दूसरी तरफ झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने भी अपनी तैयारी कर रखी है. जहां एक तरफ हेमंत उनको जेल भेजने के पीछे आदिवासियों के खिलाफ बीजेपी की साजिश बताते रहे हैं तो दूसरी तरफ जेएमएम को तोड़ने के पीछे भी लगातार बीजेपी को जिम्मेदार बताते रहे हैं.
अब ऐसे में देखना है कि कौन किस पर कितना भारी पड़ता है.