HomeElections 2024झारखंड में बीजेपी के सभी बड़े आदिवासी नेताओं को विधान सभा चुनाव...

झारखंड में बीजेपी के सभी बड़े आदिवासी नेताओं को विधान सभा चुनाव लड़ाया जाएगा

82 सदस्यीय झारखंड विधानसभा (एक मनोनीत सदस्य सहित) में वर्तमान में भाजपा के 26 विधायक हैं. जबकि उसके सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) के तीन और विधायक हैं. JMM, कांग्रेस और राजद के सत्तारूढ़ गठबंधन के पास कुल मिलाकर 47 विधायक हैं

झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election) को लेकर राजनीतिक हलचल शुरू हो चुकी है. राज्य में बीजेपी ने हिमंत बिस्व सरमा (Himanta Biswa Sarma) के नेतृत्व में चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है.

जिसमें झारखंड की 28 अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) सीटों में से कम से कम 10 पर जीत सुनिश्चित करने के लिए सभी बड़े भाजपा नेताओं को मैदान में उतारना, उन 52 निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना जहां पार्टी ने हाल के लोकसभा चुनावों में बढ़त हासिल की थी.

साथ ही संताल परगना क्षेत्र में घुसपैठ और जनसांख्यिकीय परिवर्तन के ईर्द-गिर्द एक कहानी गढना और उच्च जातियों पर अपनी पकड़ के अलावा ओबीसी और दलित मतदाताओं को एकजुट करना शामिल है. 

सूत्रों के मुताबिक, झारखंड में चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपने नेताओं के लिए ये कार्य निर्धारित किए हैं.

असम के मुख्यमंत्री और पार्टी के राज्य प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा रणनीति का निर्देशन कर रहे हैं. नेताओं ने कहा कि राज्य के लिए भाजपा के दूसरे प्रभारी, केंद्रीय कृषि मंत्री और मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की भूमिका “सलाहकार” की है.

82 सदस्यीय झारखंड विधानसभा (एक मनोनीत सदस्य सहित) में वर्तमान में भाजपा के 26 विधायक हैं. जबकि उसके सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) के तीन और विधायक हैं. JMM, कांग्रेस और राजद के सत्तारूढ़ गठबंधन के पास कुल मिलाकर 47 विधायक हैं.

लोकसभा चुनावों में भाजपा झारखंड में सबसे ज़्यादा सीटें यानि 14 में से 8 जीतने में कामयाब रही. लेकिन वह आदिवासियों के लिए आरक्षित पांच संसदीय क्षेत्रों में से किसी पर भी जीत हासिल नहीं कर सकी.

वहीं झामुमो नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विधानसभा चुनावों में अपने लिए आदिवासी समर्थन जुटाने के लिए बीजेपी पार्टी द्वारा अपनी गिरफ़्तारी पर भरोसा कर रहे हैं. फिलहाल वे ज़मानत पर बाहर हैं.

एक सूत्र के मुताबिक, सरमा के साथ उनकी बातचीत से पता चलता है कि वह विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीर हैं. और वह पार्टी से कह रहे हैं कि अगर वह झारखंड जीतने के लिए अभी पर्याप्त काम नहीं करती है तो “वह अगले 15 साल तक राज्य में सत्ता में नहीं आएगी.”

वहीं भाजपा के एक अंदरूनी सूत्र जो पार्टी की चुनावी रणनीति तय करने के लिए बैठकों का हिस्सा हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि एक बात जो जोर-शोर से कही जा रही है, वह यह है कि पार्टी के सभी बड़े नेताओं, खासकर आदिवासी चेहरों को चुनाव लड़ना होगा. पार्टी ने लोकसभा चुनावों में भी कई राज्यों में दिग्गजों को मैदान में उतारा था.

झारखंड में अभी भाजपा के पास केवल दो एसटी-आरक्षित विधानसभा सीटें हैं.

सूत्र के मुताबिक, पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, गीता कोड़ा, सुनील सोरेन और सुदर्शन भगत जैसे पूर्व सांसद और साथ ही शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन, सभी विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं.

साथ ही रांची की पूर्व मेयर आशा लाकड़ा और भाजपा के राज्य प्रमुख बाबूलाल मरांडी भी चुनाव लड़ सकते हैं. क्योंकि आदिवासी सीटों पर भाजपा विरोधी भावना है इसलिए विचार बड़े नामों के साथ जाने और कम से कम 10 सीटें जीतने का है. उन्हें टिकट मिलने से आस-पास के निर्वाचन क्षेत्रों पर भी असर पड़ सकता है, जिससे भाजपा को फायदा होगा.

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए बहुत ज्यादा इच्छुक नहीं लोगों में से एक अर्जुन मुंडा हैं. जिन्हें कथित तौर पर उनके पारंपरिक खूंटी के बजाय कोल्हान क्षेत्र में सीट की पेशकश की गई है. हाल के लोकसभा चुनावों में मुंडा को खूंटी से कांग्रेस उम्मीदवार के हाथों 1.49 लाख से बड़ी हार का सामना करना पड़ा था.

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आदिवासी वोटों पर भरोसा कर रही है. क्योंकि उनके लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं और आदिवासी आइकन बिरसा मुंडा के जन्मदिन को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने की शुरुआत की है.

भाजपा का आदिवासियों को अपने पक्ष में करने का एक और तरीका यह है कि वह यह आशंका जता रही है कि आदिवासी बहुल संथाल परगना क्षेत्र में अनियंत्रित “मुस्लिम घुसपैठ” के कारण उनकी जीवन शैली ख़तरे में है, जिसे कथित तौर पर सत्तारूढ़ झारखंड गठबंधन द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक सार्वजनिक सभा में दावा किया कि “घुसपैठिए” आदिवासी महिलाओं से शादी कर उनकी ज़मीन और नौकरियां हड़प रहे हैं.

इसके तुरंत बाद झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, जो अक्सर विवादित बयान देते रहते हैं. उन्होंने “ख़तरे” को रोकने के लिए संथाल परगना और बंगाल के इलाकों को मिलाकर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग की.

दुबे ने यह भी वादा किया कि अगर झारखंड में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आती है, तो वह राज्य की जनसांख्यिकी पर एक श्वेत पत्र पेश करेगी.

वहीं 19 जुलाई को बाबूलाल मरांडी ने सीएम हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर “संथाल परगना में आदिवासियों की घटती आबादी” की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित करने की मांग की.

मरांडी ने लिखा, “वह दिन दूर नहीं जब संथाली अल्पसंख्यक हो जाएंगे और संथाल परगना अपनी पहचान खो देगा.”

बीजेपी के एक सूत्र ने कहा कि उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, भले ही संदेश आदिवासियों को प्रभावित किए बिना मुसलमानों को और अलग-थलग कर दे.

उन्होंने कहा कि वैसे भी दोनों समूह सामूहिक रूप से हमें वोट नहीं देते हैं, जबकि भूमि के अवैध हस्तांतरण, विवाह के इर्द-गिर्द घूमती एक कहानी हमारी मदद करती है.

इस भाजपा नेता के मुताबिक, पार्टी चुनावी अभियान में “घुसपैठियों” और आदिवासियों के बीच विवाह और भूमि हस्तांतरण को रोकने के लिए कानून बनाने का वादा किया जा सकता है.

लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी सरकार के खिलाफ इंडिया ब्लॉक के “संविधान बचाओ” नारे पर कटाक्ष करते हुए, भाजपा नेता ने कहा, ‘हम कांग्रेस के ‘संविधान ख़तरे में है’ नारे की बराबरी कर लोगों को बताएंगे कि ‘आदिवासी और उनकी ज़मीन, औरतें ख़तरे में हैं.’

भाजपा का मानना ​​है कि अब उसका सबसे आसान काम उन 52 विधानसभा क्षेत्रों पर कब्जा बनाए रखना है, जहां वह लोकसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.

सूत्रों का कहना है कि लोग लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अलग-अलग तरीके से वोट करते हैं, जैसा कि पहले भी देखा गया है.

एक सूत्र ने कहा कि अगर भाजपा 52 सीटों पर लोकसभा का प्रदर्शन दोहराने में विफल रहती है तो 10 आदिवासी निर्वाचन क्षेत्र, जिन्हें वह जीतने के लिए दृढ़ है, उसके लिए फायदेमंद साबित होंगे.

सूत्र ने कहा कि हमें अपने मूल वोट आधार जैसे कि उच्च जातियों और ओबीसी के साथ-साथ एससी को भी साधने की जरूरत है और इसके लिए हम एक अभियान चलाएंगे, जिसमें दिखाया जाएगा कि हेमंत सरकार ‘पिछड़े-विरोधी और दलित-विरोधी’ रही है.

हालांकि, भाजपा को वहां थोड़ी परेशानी हो सकती है क्योंकि ओबीसी मतदाताओं का एक वर्ग, खास तौर पर कुड़मी महतो, जो झारखंड में मतदाताओं का 15 फीसदी से अधिक हिस्सा हैं. पार्टी से नाराज हैं क्योंकि पार्टी उनके आदिवासी दर्जे की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने में विफल रही है.

कुड़मी मतदाता कम से कम 32-35 विधानसभा सीटों को प्रभावित करने के लिए जाने जाते हैं. जबकि उनमें से कुछ जैसे – सिल्ली, रामगढ़, मांडू, गोमिया, डुमरी और ईचागढ़ में वे कुल आबादी के 75 प्रतिशत तक हैं.

अब तक भाजपा ने आजसू पर भरोसा किया है क्योंकि पार्टी को कुड़मी महतो का पारंपरिक घर माना जाता है.

हालांकि, जयराम महतो के रूप में एक नए नेता का उदय पार्टी को चिंतित कर रहा है.

भाजपा के एक सूत्र ने कहा कि पिछली बार के विपरीत, आजसू के पास ज्यादा सीटों के लिए सौदेबाजी करने या अपने दम पर चुनाव लड़ने के लिए बहुत अधिक आधार नहीं है.

सूत्र ने कहा कि असम के सीएम सरमा ने उन्हें यह भी संदेश दिया है कि आने वाले चार महीने पूरी तरह से पार्टी और चुनावों के लिए समर्पित करें. यहां तक ​​कि मध्यस्थ के रूप में काम करने के लिए सहयोगियों का उपयोग करना भी बंद कर दें. हमें बताया गया है, ‘हमें लोगों की समस्याओं पर खुद ध्यान देना चाहिए. इससे मतदाताओं के बीच विश्वास बढ़ेगा.’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments