भारत के चुनाव आयोग ने मंगलवार को झारखंड के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है. इस चुनाव में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और उसकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच मुख्य मुक़ाबला तय है.
झारखंड में विधानसभा चुनाव 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में होंगे और नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे.
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल में बंद रहे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सत्ता में लौटने के बाद राज्य में होने वाले पहले विधानसभा चुनाव में JMM और भाजपा दोनों ही फ़िलहाल यह दावा नहीं कर सकते हैं कि चुनाव उनकी तरफ़ झुका हुआ है.

आदिवासी पहचान और भरोसा
झारखंड में बड़ी संख्या में आदिवासी जनसंख्या का निवास है. इस राज्य में आदिवासी मतदाताओं का चुनावी नतीजों पर निर्णायक प्रभाव माना जाता है.
राज्य की 81 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजातियों (Scheduled tribes) के लिए आरक्षित हैं. झारखंड में आदिवासी जनसंख्या कुल आबादी का करीब 28 प्रतिशत बताया जाता है.
2019 के चुनावों में झामुमो ने 30 सीटें जीती थी, भाजपा ने 25, कांग्रेस ने 16, JVM(P) ने 3 और आजसू ने 2 सीटें जीती थी. झामुमो ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके राज्य में सरकार बनाई और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने थे.
2019 के चुनावों में भाजपा की हार का मुख्य कारण आदिवासी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में उसका खराब प्रदर्शन था. आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में से भाजपा को केवल 2 सीटें मिली थी.
इस साल की शुरुआत में हुए लोकसभा चुनावों में 2019 के प्रदर्शन की पुनरावृत्ति हुई, जिसमें भाजपा ने राज्य की बाकी 9 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल करने के बावजूद एसटी-आरक्षित सभी पांच सीटें खो दीं.
राज्य में आदिवासियों के बीच भाजपा के प्रति विश्वास में कमी को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मोर्चा संभाला है और आदिवासी आबादी के साथ जुड़ाव बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की है.
2 अक्टूबर को हजारीबाग में एक रैली में ‘जय जोहार’ के साथ अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए, पीएम मोदी ने कहा कि यह “परिवर्तन की शुरुआत” है क्योंकि उन्होंने राज्य में आदिवासी आबादी को लुभाने के उद्देश्य से कई प्रमुख पहल शुरू कीं.

JMM फैक्टर
झारखंड में सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बीजेपी को आदिवासी विरोधी साबित करने में कामयाबी पाई है. इस प्रचार के सफल होने का एक सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री सोरेन की मनी-लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी और जेल भेजे जाना बना था. .
सोरेन को अपनी गिरफ्तारी के बाद पद छोड़ना पड़ा और वे एक और आदिवासी नेता बने जो मुख्यमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.
हेमंत सोरेन ने अपनी गिरफ्तारी को समुदाय का अपमान बताया. भाजपा इस नैरेटिव से बाहर निकलने में नाकाम रही और आदिवासी सीटों के परिणामों ने इस संघर्ष को प्रतिबिंबित किया.
मुख्यमंत्री रघुबरदास के कार्यकाल में सीएनटी एक्ट के साथ छेड़छाड़ और लैंड बैंक जैसे मुद्दों ने आदिवासियों को बीजेपी के ख़िलाफ़ कर दिया था.
उस वक़्त में जो आदिवासियों के मन में बीजेपी सरकार के प्रति जो आशंकाएँ पैदा हुईं वह काफ़ी हद तक अभी भी मौजूद हैं.
हालांकि, हेमंत को जमानत मिलने के बाद और पद पर वापस आने के बाद चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. चंपाई सोरेन ने इसे खुद का अपमान बताया है.
चंपाई सोरेन अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और पार्टी उनके सहारे JMM पर हमलावर होने की कोशिश कर रही है.
भाजपा ने “बांग्लादेशी घुसपैठियों” के मुद्दे पर भी सोरेन सरकार पर हमला बोला है और दावा किया है कि संथाल परगना और उसके आस-पास के क्षेत्रों में जनसांख्यिकी परिवर्तन के परिणामस्वरूप आदिवासियों के अधिकार छीने जा रहे हैं.
बीजेपी लगातार इस मुद्दे पर सोरेन सरकार को घेरने में लगी है. इतना ही नहीं राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है और आदिवासी मतदाताओं को साधने की कोशिश करेगी.


आदिवासी मतदाता
आदिवासी मतदाता किसे चुनते हैं, इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है इसलिए भाजपा और झामुमो इस महत्वपूर्ण समुदाय को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
चुनावों से पहले सीएम सोरेन ने गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की 21 से 50 वर्ष की पात्र महिलाओं को 1,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली झारखंड मुख्यमंत्री मैया सम्मान योजना (JMMSY) शुरू की.
हाल ही में सोरेन ने इस राशि को दोगुना करके 2,000 रुपये प्रति माह कर दिया है.
सोरेन ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के रूप में पैसे ट्रांसफर करके 1 लाख 76 हज़ार 977 किसानों के 400.66 करोड़ रुपये के कृषि लोन भी माफ किए.
इसके अलावा पिछले महीने ही उन्होंने 795 करोड़ रुपये की कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की, जिसमें सरना, मसना और जाहेर के पवित्र आदिवासी स्थलों की बाड़बंदी भी शामिल है.
वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री ने धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान की शुरुआत की, जो 79,150 करोड़ रुपये से अधिक के परिव्यय वाली एक प्रमुख पहल है. जिसका लक्ष्य भारत भर में पांच करोड़ से अधिक आदिवासियों के जीवन को बेहतर बनाना है. इस योजना का नाम झारखंड के आदिवासी आइकन बिरसा मुंडा के नाम पर रखा गया है.
इसके अलावा अपने घोषणापत्र में पार्टी ने सत्ता में आने पर महिलाओं को हर महीने 2,100 रुपये की वित्तीय सहायता, युवाओं को पांच लाख नौकरियां और सभी के लिए आवास देने का वादा किया है.


आदिवासी बनाम अन्य
हाल ही में संपन्न हरियाणा विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने सफलता से जाट बनाम अन्य की रणनीति से कांग्रेस को मात दी है. झारखंड में भी उसकी रणनीति कुछ इसी तरह की नज़र आ रही है.
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक बेहद क़रीबी व्यक्ति ने मैं भी भारत को अनऔपचारिक बातचीत में इस रणनीति का इशारा देते हुए बताया कि बीजेपी यह जानती है कि बहुत कोशिश के बाद भी जनजातीय इलाकों में बीजेपी को बहुत अधिक सफलता मिलने के आसार नहीं बन रहे हैं.
इस सूरत में बीजेपी ने ग़ैर आदिवासी क्षेत्रों पर फोकस करने का प्लान बनाया है. इसके साथ ही आदिवासी इलाकों में कुछ बड़े नेताओं को विधान सभा चुनाव के मैदान में उतारा जाएगा.
इसके अलावा पार्टी आदिवासी इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठ, लव जिहाद और भूमि कब्ज़ा जैसे मुद्दे उठा कर लगातार JMM को बचाव की मुद्रा में धकलने की कोशिश करेगी.
लेकिन झारखंड के ज़्यादातर पत्रकार बातचीत में यह बताते हैं कि हेमंत सोरेन की ग़ैर हाज़री में राजनीति में आने को मजबूरी हुईं कल्पना सोरेन अब JMM की ताक़त बन चुकी हैं.
अब हेमंत सोरेन अकेले नहीं हैं और कल्पना सोरेन के साथ मिल कर वे बीजेपी के हर वार पर पलटवार कर रहे हैं.