इस महीने झारखंड में होने वाला विधानसभा चुनाव एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण होने जा रहा है.
हरियाणा में अपनी जीत से उत्साहित भाजपा झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार को हटाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है. भाजपा के वरिष्ठ नेता राज्य में डेरा डाले हुए हैं और रोजाना होने वाले प्रचार पर कड़ी नज़र रख रहे हैं.
झारखंड में भाजपा की जीत से यह संदेश जाएगा कि पार्टी ने लोकसभा में मिली हार के बाद फिर से गति पकड़ ली है.
इस बीच झारखंड के सीएम और जेएमएम नेता हेमंत सोरेन वह हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं जो राज्य में अब तक कोई अन्य पार्टी हासिल नहीं कर पाई है- सरकार को दोहराना यानि सत्ता में दोबारा आना.
इस विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं के बीच सोरेन की लोकप्रियता का भी परीक्षण होगा क्योंकि कुछ वरिष्ठ आदिवासी नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं.
वहीं कांग्रेस के लिए यह चुनाव हरियाणा में मिली हार के बाद प्रासंगिकता हासिल करने और 2019 के अपने प्रदर्शन को दोहराने के बारे में है, जब पार्टी ने 16 विधानसभा सीटें जीती थीं.
झारखंड चुनाव के बारे में यह माना जा रहा है कि बीजेपी के एनडीए और झारखंड मुक्ति मोर्चा के इंडिया गठबंधन दोनों के पास ही निश्चित ही अपना अपना वोट बैंक है, इस वोट बैंक के दायरे से बाहर मतदाता का किसी एक गठबंधन के पक्ष में छोटा सा भी झुकाव बड़ा परिवर्तन कर सकता है.
आगामी विधानसभा चुनावों में कुछ फैक्टर है जो किसी भी पार्टी की जीत हार के लिए अहम है…
आदिवासी फैक्टर
झारखंड की आबादी का 26.21 प्रतिशत आदिवासी हैं और 81 विधानसभा सीटों में से 28 अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित हैं. यहीं पर भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले विधानसभा चुनाव में 28 सीटों में से बीजेपी सिर्फ 2 सीटें जीती थी. जबकि JMM और कांग्रेस ने 25 (JMM 19 और कांग्रेस 6) जीतीं. एक सीट बाबूलाल मरांडी की JVM ने जीती थी, जिसका अब भाजपा में विलय हो गया है.
वहीं इस साल के लोकसभा चुनाव में भाजपा आदिवासियों के लिए आरक्षित पांच एसटी सीटों में से कोई भी नहीं जीत सकी.
भाजपा JMM के मजबूत आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है. पिछले कुछ दिनों में JMM के कई वरिष्ठ आदिवासी नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, जो कोल्हान क्षेत्र के एक मजबूत आदिवासी नेता हैं, वो भी भाजपा के साथ हैं.
शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन और पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा भी भाजपा के साथ हैं और ये दोनों विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं.
इसके अलावा भाजपा ने पार्टी के वरिष्ठ आदिवासी नेताओं को भी मैदान में उतारा है, जिनमें बाबूलाल मरांडी और पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा शामिल हैं.
भाजपा ने बांग्लादेश से कथित घुसपैठ के कारण जनसांख्यिकीय परिवर्तन का मुद्दा भी उठाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने रोजगार के अवसरों की कमी के कारण आदिवासियों की घटती आबादी और उनके बीच पलायन का मुद्दा उठाया है.
जेएमएम को पार्टी के संस्थापक शिबू सोरेन, जिन्हें ‘दिशोम गुरु’ के नाम से भी जाना जाता है, सीएम हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, जो पार्टी के स्टार प्रचारक हैं, इनके करिश्मे पर काफी हद तक भरोसा है.
अपनी चुनावी सभाओं में हेमंत सोरेन ‘मूलनिवासी बनाम बाहरी (आदिवासी बनाम बाहरी)’ का मुद्दा उठाते रहे हैं और भाजपा को “बाहरी” पार्टी बताते हुए एक नैरेटिव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
जेएमएम ने पूर्व भाजपा नेता लुइस मरांडी और कुछ अन्य लोगों को भी टिकट दिया है, जिन्होंने टिकट न मिलने के बाद भाजपा छोड़ दिया.
गठबंधन का गणित
2019 के चुनावों से मिली सीख ने एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों को वोटों के विभाजन से बचने के लिए छोटे सहयोगियों को भी साथ लाने के लिए मजबूर किया है.
2019 में सीट बंटवारे को लेकर मतभेदों के कारण भाजपा और आजसू अलग हो गए थे. वे छह सीटें हार गए थे – भाजपा ने चार और आजसू ने दो क्योंकि उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए थे.
दूसरी ओर जेएमएम ने कांग्रेस और आरजेडी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा और 47 सीटें जीतीं थी.
अब झारखंड में भाजपा ने न सिर्फ आजसू (उन्हें 10 सीटें देकर) के साथ गठबंधन किया है बल्कि पहली बार जेडीयू को दो सीटें और एलजेपी (रामविलास) को एक सीट दी है.
बिहार की इन दोनों पार्टियों की राज्य में ज्यादा मौजूदगी नहीं है। लेकिन भाजपा सहयोगियों के बीच वोटों के विभाजन के कारण सीटें नहीं खोना चाहती.
कांग्रेस और आरजेडी के अलावा जेएमएम ने विधानसभा चुनावों के लिए सीपीआई (एमएल) के साथ भी गठबंधन किया है. जेएमएम 42 सीटों पर, कांग्रेस 29 पर, आरजेडी 6 पर और सीपीआई (एमएल) 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
स्थानीय प्रचार अभियान
भाजपा और झामुमो दोनों ने अपने ज्यादातर विधायकों को रिपीट किया है. इसलिए यह क्षेत्रवार स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बारे में अधिक है.
झारखंड में पाँच डिवीज़न हैं- कोल्हान, संथाल परगना, उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू.
2019 में उत्तरी छोटानागपुर और पलामू को छोड़कर सभी क्षेत्रों में इंडिया ब्लॉक ने भाजपा पर बढ़त हासिल की थी. 25 सीटों के साथ उत्तरी छोटानागपुर में सबसे अधिक सीटें हैं. यहां झामुमो और कांग्रेस ने 10, भाजपा ने 10 और बाकी ‘अन्य’ के खाते में गईं.
पलामू की नौ सीटों में से भाजपा ने पांच और झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने तीन सीटें जीतीं, जबकि एक ‘अन्य’ के खाते में गई.
वहीं राज्य के दो आदिवासी बहुल क्षेत्रों कोल्हान और संथाल परगना की 32 सीटों में से भाजपा केवल चार जीत सकी, जबकि झामुमो-कांग्रेस ने 26 सीटें जीतीं.
इस बार पार्टियां क्षेत्रवार प्रचार पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. भाजपा संथाल क्षेत्र में जनजातीय आबादी में जनसांख्यिकीय परिवर्तन को चुनावी मुद्दा बना रही है.
कोल्हान में इसका अभियान चंपई सोरेन के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जबकि यह इस बात पर प्रकाश डाल रहा है कि उनका निष्कासन कोल्हान के लोगों का अपमान था.
अन्य क्षेत्रों में पलायन और नौकरियों जैसे मुद्दे प्रमुख हैं. जबकि शहरी इलाकों में पार्टी सोरेन सरकार के पांच वर्षों के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों को उजागर कर रही है.
दूसरी ओर झामुमो और कांग्रेस पिछले पांच वर्षों में शुरू की गई राज्य सरकार की योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. आदिवासी क्षेत्रों में हेमंत सोरेन राज्य के असली निवासियों को तय करने के लिए ‘सरना कोड’ और ‘खतियान’ की बात करते हैं.
आदिवासी बेल्ट के बाहर उनका अभियान मुख्य रूप से नकद लाभ योजनाओं और सरकारी नौकरियों पर केंद्रित है.
महिला मतदाता
झारखंड में यह शायद पहला विधानसभा चुनाव है जब महिलाएं प्रचार के केंद्र में हैं. महिला मतदाताओं का महत्व इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 81 सीटों में से 32 ऐसी हैं, जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है.
दिलचस्प बात यह है कि सभी 28 एसटी आरक्षित सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है.
18 से 19 वर्ष की आयु के करीब 56 फीसदी पहली बार मतदान करने वाले मतदाता महिलाएं हैं. इसमें कोई हैरानी नहीं कि यह वर्ग एनडीए और इंडिया ब्लॉक के लिए उनके इर्द-गिर्द अभियान की योजना बनाने के लिए पर्याप्त रुचि पैदा कर रहा है.
भाजपा और झामुमो के बीच इस बात को लेकर कड़ी प्रतिस्पर्धा है कि कौन सी पार्टी महिला मतदाताओं को बेहतर डील दे सकती है.
इस साल अगस्त में झामुमो सरकार ने ‘मैया सम्मान योजना’ शुरू की, जिसके तहत 18 से 60 वर्ष की आयु की लगभग 50 लाख महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये मिलते हैं.
इसके अलावा सरकार 60 साल से ऊपर की महिलाओं और पुरुषों को 1,000 रुपये प्रति माह पेंशन भी दे रही है.
वहीं भाजपा ने अपने घोषणापत्र में ‘गोगो दीदी’ योजना की घोषणा की है, जिसके तहत उसने राज्य की महिलाओं को 2,100 रुपये प्रति माह देने का वादा किया है.
भाजपा के वादे के बाद सोरेन ने अपनी पिछली कैबिनेट बैठक में दिसंबर से ‘मइयां सम्मान’ को 1,000 रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रति माह करने को मंजूरी दी. पिछले एक महीने से कल्पना सोरेन राज्य के सभी क्षेत्रों में अपनी ‘मइयां सम्मान यात्रा’ के जरिए महिला मतदाताओं को आकर्षित कर रही हैं.
NDA की मजबूती और कमजोरी
NDA की ओबीसी, उच्च जाति के मतदाताओं और कुछ एससी मतदाताओं के बीच मजबूत पकड़ है. साथ ही सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी भावना को भुनाने की सबसे अच्छी स्थिति है. इसके अलावा बीजेपी कई चुनावी वादों के साथ आक्रामक प्रचार अभियान कर रही है.
लेकिन आदिवासी इलाकों में पैठ बनाने के लिए एनडीए संघर्ष कर रहा है. वहीं चुनावी अभियान को गति देने के लिए राज्य स्तरीय नेतृत्व की कमी है. इसके अलावा टिकट वितरण के बाद कुछ जगहों पर बगावत हावी है.
इंडिया ब्लॉक की मजबूती और कमजोरी
इंडिया ब्लॉक की आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर पकड़ मजबूत है. साथ ही लोकप्रिय सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन भी इंडिया ब्लॉक की मजबूती है. इसके अलावा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी पत्नी के साथ चुनाव प्रचार अभियान की अगुआई कर रहे हैं.
लेकिन आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों के अलावा इंडिया ब्लॉक के पास कोई अन्य समर्थन समूह नहीं दिख रहा है. वहीं आदिवासी अल्पसंख्यकों के समर्थन के बावजूद गठबंधन को लोकसभा चुनावों में 39 फीसदी वोट मिले.
साथ ही कई नेताओं ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया, जिससे झामुमो के गढ़ों में चुनौती बढ़ गई है.
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के पहले चरण में 43 सीटों के लिए 13 नवंबर को मतदान होगा.वहीं 20 नवंबर को दूसरे चरण में 38 सीटों के लिए 20 नवंबर को मतदान होगा. वहीं वोटों की गिनती यानि नतीजे 23 नवंबर को आएंगे.