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भाजपा में शामिल हुए चंपई सोरेन कर रहे खुद का गढ़ बचाने की कोशिश!

कोल्हान क्षेत्र से आने वाले संथाल आदिवासी नेता चंपाई सोरेन की छवि बेदाग रही है और उन्हें राज्य के शीर्ष आदिवासी नेताओं में शुमार किया जाता है.

झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में अब सिर्फ एक हफ्ता बचा है. ऐसे में दक्षिणी कोल्हान क्षेत्र राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए निर्णायक साबित हो सकता है, जहां पहले चरण में 13 नवंबर को मतदान होगा.

जहां एक तरफ सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) अपनी 2019 की सफलता को दोहराने के लिए उत्सुक है. वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) उस क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने की पूरी कोशिश कर रही है, जहां पिछले विधानसभा चुनाव में उसका पूरी तरह सफाया हो गया था.

लेकिन इस बार पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व JMM नेता चंपई सोरेन बदलाव के वाहक साबित हो सकते हैं.

जेएमएम के दिग्गज नेता के तौर पर वे सरायकेला सीट से छह बार जीत चुके हैं. लेकिन चुनाव से पहले जुलाई में वे भाजपा में शामिल हो गए, जिससे क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण बदले हैं.

पूर्व JMM नेता चंपई सोरेन ने 68 साल की उम्र में अपने राजनीतिक गुरु शिबू सोरेन के खिलाफ जाने का फैसला किया है, जिनके साथ उन्होंने झारखंड राज्य के लिए आंदोलन के दौरान कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था.

अब वे राज्य के राजनीतिक क्षेत्र में खासकर कोल्हान क्षेत्र में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने और अपनी विरासत को बचाने के लिए लड़ेंगे.

सोरेन पिछले 30-35 साल से कोल्हान में झामुमों के लिए काम करते रहे हैं. लेकिन इस साल 30 अगस्त को खेल बदल गया, जिस दिन वे भाजपा में शामिल हुए.

चंपई अब अपनी नई पार्टी, भाजपा के लिए लड़ेंगे, जिसे उन्होंने पहले कोल्हान क्षेत्र से दूर रखने के लिए लड़ा था.

अब वह न केवल अपने गढ़ सरायकेला को सुरक्षित करने के लिए लड़ेंगे, जिसे उन्होंने 1991 से छह बार जीता है बल्कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह दिखाने के लिए भी लड़ेंगे कि कोल्हान पर उनका प्रभाव अभी भी क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों को जीत दिला सकता है.

कोल्हान संभाग में तीन जिले पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां और पश्चिमी सिंहभूम आते हैं. इन तीनों जिलों में 14 विधानसभा सीटें हैं और चंपई सोरेन का बहुत प्रभाव है.

इन 14 विधानसभा सीटों में से नौ अनुसूचित जनजाति (एसटी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं और एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. जबकि शेष चार सामान्य सीटें हैं.

2019 में जेएमएम ने कोल्हान क्षेत्र की 14 सीटों में से 11 पर जीत दर्ज की थी, कांग्रेस ने दो सीटें अपने नाम की थी.

कोल्हान टाइगर

चंपई सोरेन ने झामुमो के साथ 35 साल तक काम किया है और झारखंड राज्य आंदोलन में उनका योगदान रहा है, जिसके कारण उन्हें ‘कोल्हान टाइगर’ का उपनाम मिला है.

कोल्हान क्षेत्र से आने वाले संथाल आदिवासी नेता चंपई सोरेन की छवि बेदाग रही है और उन्हें राज्य के शीर्ष आदिवासी नेताओं में शुमार किया जाता है.

11 नवंबर 1956 को जन्मे चंपई सोरेन ने दसवीं तक की ही पढ़ाई की है. वे सरायकेला खरसांवा जिले के गम्हरिया प्रखंड के जिलिंगगोड़ा गांव के रहने वाले हैं.

झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सदस्य रहे चंपई चार दशक से भी अधिक समय तक शिबू सोरेन के करीबी रहे.

साल 1991 में सरायकेला सीट के लिए हुए उपचुनाव में उन्होंने पहली बार जीत हासिल की और तत्कालीन बिहार विधानसभा के सदस्य बने. तब वह उपचुनाव वहां के तत्कालीन विधायक कृष्णा मार्डी के इस्तीफे के कारण हुआ था. इसके बाद वे 1995 में फिर चुनाव जीते लेकिन साल 2000 का चुनाव हार गए.

साल 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिर से जीत हासिल की और उसके बाद कोई चुनाव नहीं हारे. तीसरी बार विधायक बनने पर चंपई सोरेन 11 सितंबर 2010 से 18 जनवरी 2013 तक विज्ञान-प्रौद्योगिकी, श्रम नियोजन और आवास विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई.

इसके बाद हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने पर चंपई सोरेन को परिवहन और खाद्य आपूर्ति मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई. 2014 और 2019 में भी चंपई सोरेन सरायकेला सीट से जीत हासिल करने में सफल रहे.

2019 में विधायक बनने पर हेमंत सोरेन सरकार में उन्हें अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बनाया गया.

31 जनवरी तक 2024 तक वो मंत्री रहे लेकिन हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद पार्टी ने उन्हें सीएम बनाने का फैसला लिया. जिसके बाद 2 फरवरी 2024 को चंपई सोरेन ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

लेकिन हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने सीएम पद से त्यागपत्र दे दिया और हेमंत सोरेन सरकार में फिर से उन्हें जलसंसाधन मंत्री बनाया गया.

लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाए जाने के बाद उन्होंने इसे अपना अपमान बताया और इस साल अगस्त में बीजेपी का हाथ थाम लिया.

“कोल्हान टाइगर” के रूप में जाने जाने वाले चंपई ने जेएमएम के खिलाफ विद्रोह करते हुए दावा किया कि उन्हें 3 जुलाई को “अनौपचारिक रूप से” सीएम पद से हटा दिया गया था ताकि हेमंत सोरेन के लिए रास्ता बनाया जा सके.

चंपई ने टाइम्स ऑफ इंडिया से अपनी चर्चा में कहा, “मैं अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोच रहा हूं, लेकिन मैंने प्रचार तेज़ कर दिया है. 30 से अधिक वर्षों से मतदाताओं के साथ मेरा जुड़ाव मुझे आगे बढ़ने में मदद करेगा.”

उन्होंने कहा, “जब मैंने पार्टी छोड़ने का मन बनाया तो मैंने जो कुछ भी कहा, वह मैंने कहा. लेकिन मैंने हमेशा कहा कि मैं उस पार्टी को नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा जिसका मैं इतने लंबे समय से हिस्सा रहा हूँ. मैंने भाजपा में शामिल होने के दौरान दूसरों के विपरीत उस पार्टी से एक ईंट भी नहीं ली है.”

उन्होंने आगे कहा कि अब मेरा ध्यान आगे की ओर है. अपने सार्वजनिक जीवन के इन सभी वर्षों में मैंने अपने निर्वाचन क्षेत्र और उससे परे के लोगों के साथ व्यक्तिगत संबंध विकसित किए हैं. मुझे यहां के लोगों पर पूरा भरोसा है.

कुल मिलाकर अब देखना ये है कि चंपई सोरेन के आने से बीजेपी को कोल्हान में कितना फायदा और जेएमएम को कितना नुकसान हो सकता है?

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