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दो आदिवासी महिलाओं की मौत के बाद ओडिशा सरकार आलोचनाओं के घेरे में

NFSA द्वारा 2 नवंबर को अक्टूबर से दिसंबर तक का राशन दिया गया तब तक आम की गुठली से बना खाना खाने से दो आदिवासी महिलाओं की मौत हो चुकी थी और कई की हालत गंभीर थी. क्या 1 महीने देरी से दिए गया भोजन सिर्फ सरकार की लापरवाही है या इसके पीछे किसी घोटाले को छिपाने की कोशिश हो रही है.

पिछले हफ्ते ओडिशा के कंधमाल जिले में आम की गुठली से बने दलिया खाने से दो आदिवासी महिलाओं की मौत और और छह को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराने के मामले ने तूल पकड़ लिया है.

अब दो महिलाओं के मल्टी-ऑर्गन फेलियर की खबर सामने आई है. इन महिलाओं में हेपेटाइटिस की पुष्टि हुई है और वे कई अंगों के काम करना बंद करने की समस्या से भी जूझ रही हैं.

ऐसे में अब इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग ले लिया है और इस घटना को लेकर राज्य सरकार पर विपक्ष ने तीखे सवाल उठाए हैं.

दरअसल, यह मुद्दा इस बात को लेकर तूल पकड़ रहा है कि आदिवासियों को नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट (NFSA) के तहत समय पर खाद्य सामग्री नहीं मिली इसलिए उन्हें मजबूरन आम की गुठली खानी पड़ी.

राज्य सरकार ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है लेकिन विपक्षी नेता लगातार सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं.

इस मामले में पिछले हफ्ते हुई दो महिलाओं की मौत के बाद दो और महिलाओं की हालत बिगड़ने लगी थी जिसके बाद उन्हें कटक के SCB मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भेजा गया.

अस्पताल में जांच होने के बाद पता चला है कि तुनी माझी और जीता माझी को हेपेटाइटिस और मल्टी-ऑर्गन फेलियर हुआ है.

सार्वजनिक स्वास्थ्य निदेशक नीलकंठ मिश्रा ने संवाददाताओं को बताया कि एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती मरीजों ने आम की गुठली खा ली थी और खाने से पहले आम की गुठली को दो से तीन दिनों तक रखा गया था. यह ज़हरीली हो गई थी. आम की गुठली खाने से वे फंगल इंफेक्शन का शिकार हो गई. शरीर के कई अंग काम करना बंद कर चुके हैं और उनकी हालत गंभीर है.

एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रोफेसर जयंत कुमार पांडा ने दोनों मरीजों के लीवर और किडनी फेल होने की जानकारी दी है.

इस मामले ने राज्य में NFSA की खाद्य आपूर्ति प्रणाली की कमजोरियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

हालांकि राज्य सरकार ने इस घटना की जाँच के आदेश दिए हैं. लेकिन विपक्षी दल बीजेडी और कांग्रेस का आरोप है कि यह मामला NFSA के तहत समय पर चावल न देने का परिणाम है.

साथ ही स्थानीय लोगों का भी आरोप है कि पिछले तीन महीने से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत चावल नहीं मिलने के कारण लोगों ने आम की गुठली खा ली.

इस मामले में खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता कल्याण मंत्री कृष्ण चंद्र पात्रा ने कहा कि मंडीपांका गांव के सभी 69 परिवारों को NFSA के तहत चावल मिला है.

मंत्री ने कहा कि ग्रामीण जुलाई से सितंबर तक के लिए अपने चावल कोटे का लाभ उठा चुके हैं. उन्होंने दावा किया कि पीडितों ने अक्टूबर-दिसंबर का कोटा नहीं उठाया क्योंकि परिवारों के पास पर्याप्त चावल था.

वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीकांत जेना ने मृतकों के परिवारों के पास पर्याप्त भोजन होने के दावे को झूठ करार दिया. जेना ने कहा कि जुलाई में जुलाई से सितंबर के लिए दिया गया चावल, मुश्किल से एक महीने तक चला.

उन्होंने बताया कि अक्टूबर से दिसंबर का राशन 2 नवंबर को जारी किया गया था. उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर अक्टूबर का राशन एक महीने की देरी से क्यों दिया गया.

उन्होंने कहा कि खाद्य वितरण में एक महीने की देरी एनएफएसए के प्रावधानों का उल्लंघन है और यह एक अपराध है.

उनका कहना है कि यदि खाद्य सामग्री समय पर दी गई होती तो यह घटना टल सकती थी.

कांग्रेस ने यह भी मांग की है कि NFSA के तहत प्रति व्यक्ति चावल की मात्रा 5 किलो से बढ़ाकर 15 किलो की जाए ताकि ऐसी स्थिति फ़िर से पैदा न हो.

विपक्ष का आरोप है कि कंधमाल के आदिवासी क्षेत्रों में भूखमरी और खाद्य असुरक्षा की स्थिति सरकार की लापरवाही का नतीजा है.

बीजेडी प्रवक्ता संजय कुमार दास बर्मा ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि एनएफएसए के तहत चावल वितरण में विफलता मोहन माझी सरकार की अक्षमता को उजागर करती है. उन्होंने कहा कि सभी को यह जानने की जरूरत है कि राज्य सरकार जरूरतमंद परिवारों को खाद्य पदार्थ बांटने में क्यों विफल रही.

यहां ये भी गौरतलब है कि NFSA द्वारा 2 नवंबर को अक्टूबर से दिसंबर तक का राशन दिया गया तब तक आम की गुठली से बना खाना खाने से दो आदिवासी महिलाओं की मौत हो चुकी थी और कई की हालत गंभीर थी. यानि ये भी हो सकता है कि इस घटना के सामने आने के बाद इससे संबंधित किसी घोटाले को छिपाने के लिए 1 महीने बाद पहले का भी राशन जारी कर दिया गया हो.

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