झारखंड में अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के बारे में चुप्पी साधे बैठी भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर आगामी विधानसभा चुनावों (Jharkhand Assembly Election 2024) में आदिवासी समुदाय से पार्टी का चेहरा चुनने के लिए विभिन्न आदिवासी समूहों का दबाव है.
2011 की जनगणना के मुताबिक, झारखंड के आदिवासी राजनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण समूह हैं, जिसकी आबादी 26.2 फीसदी है.
मामले से वाकिफ लोगों के मुताबिक, आगामी चुनावों को लेकर बीजेपी की राज्य इकाई में मतभेद है.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “2019 में पार्टी की हार का मुख्य कारण कई नीतिगत फैसलों को लेकर आदिवासियों के बीच नाराजगी थी और वे पार्टी द्वारा गैर-आदिवासी रघुबर दास को सीएम बनाए जाने से खुश नहीं थे.”
नेता ने कहा कि भाजपा आम तौर पर तब तक मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार की घोषणा नहीं करती जब तक कि वह मौजूदा सरकार का नेतृत्व न कर रहा हो.
उन्होंने कहा कि पार्टी झारखंड में खुद को मुश्किल में पाती है क्योंकि उसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का नेतृत्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कर रहे हैं जो एक आदिवासी हैं.
नेता ने कहा, “सोरेन को वित्तीय अनियमितताओं के लिए गिरफ्तार किया गया था लेकिन उन्होंने इसे एक अभियान में बदल दिया है जिसमें एक आदिवासी सीएम के खिलाफ अत्याचार का सुझाव दिया गया है. यह राज्य में एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है और हमें लोकसभा चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ा (भाजपा ने सभी पांच एसटी-आरक्षित सीटें खो दीं).”
हेमंत सोरेन को इस साल जनवरी में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने एक कथित अवैध भूमि मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था. उन्हें 28 जून को झारखंड हाई कोर्ट ने जमानत दे दी थी. झारखंड में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं.
भाजपा नेता ने कहा, “आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच मतभेद है. भाजपा में कुछ बड़े आदिवासी नेता हैं लेकिन ऐसी धारणा है कि राज्य में पार्टी इकाई में विभाजन है…कोई सामूहिक नेतृत्व नहीं है और आदिवासी नेताओं में से कौन चेहरा (सीएम उम्मीदवार) होगा, इस पर कोई आम सहमति नहीं है.”
नेता ने कहा कि राज्य इकाई के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा के बीच मतभेद की खबरों ने नेतृत्व की उलझन को और बढ़ा दिया है.
झारखंड को साल 2000 में बिहार से अलग करके 81 सदस्यीय विधानसभा के साथ बनाया गया था, जिसमें से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. भाजपा ने 2005 और 2014 में विधानसभा चुनाव जीते थे.
2019 में झामुमो ने 30 सीटें जीतीं और कांग्रेस के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई, जिसे 16 सीटें मिली थीं. पिछले राज्य चुनावों में भाजपा ने 25 सीटें जीती थीं.
वहीं इस लोकसभा चुनावों में सभी पांच एसटी-आरक्षित सीटों पर हार के बाद से भाजपा वादों और रियायतों के साथ आदिवासियों तक पहुंच रही है और अन्य दलों के आदिवासी नेताओं को भी पाला बदलने के लिए राजी कर रही है.
अगस्त में झामुमो के एक वरिष्ठ आदिवासी नेता चंपई सोरेन, जिन्होंने हेमंत सोरेन के जेल में रहने के दौरान राज्य की बागडोर संभाली थी और उनके पार्टी सहयोगी लोबिन हेम्ब्रोम भाजपा में शामिल हो गए.
2020 में पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी ने भी अपने झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय कर दिया. इस साल के आम चुनावों से पहले हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन और पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा सहित कई अन्य लोग भी भाजपा में शामिल हो गए.
पार्टी इन नए लोगों पर भरोसा कर रही है ताकि आदिवासी-बहुल क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति मजबूत कर सके. हालांकि सीता सोरेन और गीता कोड़ा दोनों ही लोकसभा चुनाव हार गईं, जबकि भाजपा ने राज्य में 14 में से आठ सीटें जीती थीं.
भाजपा को यह भी उम्मीद है कि चंपई सोरेन और गीता कोड़ा की मौजूदगी कोल्हान क्षेत्र में मदद करेगी, जिसे कभी पार्टी का गढ़ माना जाता था.
बीजेपी नेता ने कहा कि कोल्हान क्षेत्र में मुख्य रूप से संथाल, मुंडा और हो जनजातियां हैं और 28 एसटी सीटों में से अधिकांश यहां हैं, (शेष संथाल परगना और उत्तरी छोटानागपुर संभाग में हैं).
एक दूसरे नेता ने भी नाम न बताने की शर्त पर कहा कि आदिवासी नेता को सीएम-चेहरा घोषित करने का दबाव पार्टी नेतृत्व द्वारा हाशिए पर पड़े लोगों को सशक्त बनाने के अपने दावों से बढ़ गया है. छत्तीसगढ़ में जहां आदिवासी आबादी 30.6 फीसदी है और ओडिशा में 22.8 फीसदी हैं, वहां बीजेपी ने आदिवासी सीएम नियुक्त किए हैं इसलिए झारखंड को लेकर भी यही उम्मीद है.
पिछले साल के अंत में आदिवासी नेता विष्णु देव साई को छत्तीसगढ़ का सीएम बनाया गया था, जबकि मोहन चरण माझी इस साल जून में ओडिशा के सीएम बने.
भाजपा ने महिलाओं को 2,100 रुपये की मासिक नकद सहायता, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट को दो साल के लिए 2,000 रुपये का मासिक वजीफा, सभी घरों में 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर और त्योहारों पर हर साल दो मुफ्त सिलेंडर देने और अगले पांच सालों में बेरोजगारों को 5 लाख नौकरियां देने सहित कई घोषणाएं की हैं.
राज्य के एक पदाधिकारी ने कहा कि भाजपा राज्य में अपने चुनाव अभियान को “राज्य सरकार के खराब शासन रिकॉर्ड और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भ्रष्टाचार” पर केंद्रित करेगी.
ऐसे में अब आगामी चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि क्या भाजपा आदिवासी समुदायों का समर्थन वापस जीतने में कामयाब हो पाती है, जिनकी उदासीनता ने 2019 के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को झटका दिया था.