पर्यावरण संक्षरण को लेकर छत्तीसगढ़ में ग्रीन समिट का आयोजन किया गया. समिट में शामिल होने के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित जागेश्वर यादव भी पहुंचे. इस दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए जागेश्वर यादव ने कहा कि बाघ अभयारण्यों से आदिवासियों के विस्थापन पर सावधानी पूर्वक विचार किया जाना चाहिए.
जागेश्वर यादव ने सरकार से आग्रह किया है कि वह उन चुनौतियों पर विचार करे, जिनका सामना आदिवासियों को करना पड़ेगा. उनके गांवों को बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाता है तो उनकी दिक्कतें बढ़ेंगी.
1980 से बिरहोर जनजाति के लिए काम करते आ रहे हैं जोगेश्वर यादव ने कहा कि आदिवासी हमेशा ही विकास के कामों को स्वीकार करते आए हैं और उसका स्वागत करते हैं. लेकिन यह विकास जंगलों की कीमत पर नहीं होना चाहिए, जिनमें वे पीढ़ियों से रह रहे हैं. आदिवासियों का सब कुछ जंगल ही है. उनकी पूरी जिंदगी जंगल पर ही निर्भर है. जंगल नहीं होगा तो वो जीवित नहीं रह पाएंगे.
दरअसल, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने 19 जून को एक आदेश जारी किया, जिसमें वन अधिकारियों को 54 बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों में स्थित 591 गांवों से 64,801 परिवारों के पुनर्वास में तेजी लाने का निर्देश दिए हैं.
छत्तीसगढ़ के अचानकमार और उदंती-सीतानदी सहित कई बाघ अभयारण्यों में आदिवासी समुदायों ने वन अधिकार अधिनियम के तहत अपने अधिकारों का दावा करते हुए निर्देश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया है.
प्रदर्शनकारी अब आजीविका और परंपराओं के लिए न्याय की मांग करने के लिए दिल्ली में इकट्ठा होने की योजना बना रहे हैं.
हालांकि, केंद्र सरकार के अधिकारियों का कहना है कि निर्देश कानून के मुताबिक जारी किए गए थे और इस बात पर जोर दिया कि बाघ अभयारण्यों से गांवों का स्थानांतरण “पूरी तरह से स्वैच्छिक” है.
राज्य के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ आदिवासियों द्वारा किए जा रहे विरोध के बारे में पूछे जाने पर जागेश्वर यादव ने सरकार से विरोध करने वाले आदिवासियों की मांगों को विचार और उचित कार्रवाई करने का भी आग्रह किया.
उन्होंने कहा, “मेरा मानना
69 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि उद्योग और परियोजनाएं महत्वपूर्ण हैं लेकिन किसी भी विकास से वास्तव में समुदायों को लाभ होना चाहिए.
उन्होंने कहा, “आदिवासी विकास और उसके लाभ चाहते हैं. वे प्रगति करना चाहते हैं. हालांकि, वे ऐसा विकास चाहते हैं जिससे उन्हें वन क्षेत्रों में अपने पैतृक गांवों से विस्थापित न होना पड़े. वे चाहते हैं कि उनकी आजीविका का स्रोत – लघु वन उपज बरकरार रहे.”
यादव ने वन और पर्यावरण की रक्षा के लिए केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार दोनों के प्रयासों की भी प्रशंसा की.
जागेश्वर यादव ने कहा कि वन और पर्यावरण की रक्षा के लिए केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार दोनों के प्रयास ठीक हैं. पर्यावरण की स्थिरता को बढ़ावा देने और लोक परंपराओं को विकास विमर्श में एकीकृत करने के लिए पहला छत्तीसगढ़ ग्रीन समिट 2024 बेहतरीन साबित होगा.
वैश्विक स्तर पर मूलनिवासी समुदायों को संरक्षण के नाम पर विस्थापन का सामना करना पड़ता है लेकिन रिसर्च से लगातार पता चलता है कि जब मूलनिवासी लोगों द्वारा प्रबंधन किया जाता है तो वन अधिक स्वस्थ होते हैं और वन्यजीवन अधिक फलता-फूलता है. बावजूद इसके देश के अलग अलग हिस्सों में आदिवासियों को टाइगर रिजर्व से जबरन बेदखली का सामना करना पड़ रहा है.