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ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट से शोम्पेन जनजाति और पर्यावरण को ख़तरा क्यों है

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) जैसे शोम्पेन, जारवा (आंग), ओंगेस और ग्रेट अंडमानीज अपने लिए आरक्षित घने जंगलों में रहते हैं. इन जंगलों में गैर-आदिवासियों का प्रवेश वर्जित है.

निकोबार द्वीप समूह में निकोबारी जनजाति एक बड़ा समूह है. इस समूह की अपनी संस्कृति, भाषा और कस्टमरी लॉ हैं. लेकिन इस द्वीप समूह में एक द्वीप ग्रेट निकोबार में एक ऐसी जनजाति रहती है जिसकी घटती जनसंख्या चिंता का विषय रहा है.

यह चिंता अब और बढ़ गई है क्योंकि जिस द्वीप पर वे रहते हैं वहां पर केंद्र सरकार ने एक मेगा प्रोजेक्ट का काम शुरु कर दिया है.

2011 की जनगणना के अनुसार अब सिर्फ़ 229 शोम्पेन ही बचे हैं.

शोम्पेन, एक अर्ध-खानाबदोश जनजाति है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह कम से कम 60 हज़ार वर्षों से ग्रेट निकोबार द्वीप में निवास कर रही है. ये लोग अपने समूहों के बाहर सीमित संपर्क पसंद करती है.

सरकार की ग्रेट निकोबार द्वीप में एक ट्रांस-शिपमेंट कंटेनर टर्मिनल, एक एयरपोर्ट – जिसे नागरिक और सैन्य दोनों उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सके, सोलर पावर प्लांट विकसित करने की योजना है.

सरकार ने खुद इस बारे में जानकारी देते हुए संसद में बताया है कि इस मेगा प्रोजेक्ट में करीब 130 वर्ग किलोमीटर के वर्षावन में लगभग दस लाख पेड़ों को काटना होगा.

अंडमान निकोबार की जनजातियों के बारे में जानकारी रखने वाले कहते हैं कि ये जंगल में रहने वाले शोम्पेन के जीविका का प्राथमिक स्रोत हैं.

इस सबके के बावजूद इस परियोजना को पर्यावरणीय मंज़ूरी दे दी गई है. कांग्रेस पार्टी, पर्यावरण समूहों और मानवविज्ञानियों के समूहों ने परियोजना के पर्यावरणीय परिणामों पर सार्वजनिक रूप से चिंता व्यक्त की है.

वहीं भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India) के पूर्व निदेशक त्रिलोकनाथ पंडित, जो लगभग दो दशकों तक अंडमान द्वीप समूह में तैनात रहे… वो चेतावनी देते हैं कि ऐसी परियोजनाओं से शोम्पेन के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं.

उन्होंने हाल ही में हिन्दुसान अख़बार को दिए एक इंटरव्यू में कहा ​​है शोम्पेन जनजाति के लिए हमेशा जंगल में घूमने की आज़ादी सबसे महत्वपुर्ण रही है,

वे कहते हैं कि अगर शोम्पेन जनजाति के लोग मुख्यधारा में आना चाहते हैं तो यह उनका फैसला होना चाहिए.

एएसआई के साथ मानवविज्ञानी के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान त्रिलोकनाथ पंडित ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सभी मौजूदा जनजातियों के साथ बातचीत की. वह विशेष रूप से एकांतप्रिय सेंटिनली लोगों से संपर्क करने वाले पहले शोधकर्ता थे, जो सेंटिनल द्वीप समूह में रहते हैं.

पंडित कहते हैं, “मेरे अनुभव में शोम्पेन आम तौर पर अपनी दूरी बनाए रखते हैं. कुछ शताब्दियों पहले, शोम्पेन फ्रांसीसी मिशनरियों के संपर्क में आए थे. उन्होंने इन मिशनरियों की हत्या कर दी थी. द्वीप के तटीय इलाकों में रहने वाले निकोबारी लोगों के विपरीत, शोम्पेन अंदरूनी इलाकों में रहते हैं, वे नदियों में शिकार करते हैं और मछली पकड़ते हैं. उन्हें चिंता रहती है कि उनकी लड़कियों और महिलाओं का अपहरण कर लिया जाएगा और शोम्पेन के एक समूह द्वारा दूसरे समूह या कबीले पर उनकी महिलाओं के लिए हमला करने के मामले सामने आए हैं. वे एक समुदाय के रूप में अपनी स्वतंत्रता को बहुत महत्व देते हैं और उन्हें बंधन पसंद नहीं है.”

त्रिलोकनाथ पंडित ने कहा, “शोम्पेन संख्या में भले ही संख्या में कम हों लेकिन उनके द्वीपों के जंगलों के बारे में उनका ज्ञान सर्वोच्च है. वे खुश और आनंदित हैं. ब्रह्मांड के बारे में उनकी अपनी समझ है. उन्हें वैसे ही रहने दें जैसे वे हैं. अगर हम उनके निवास में प्रवेश करते हैं तो उनका अंत बहुत तेज़ी से होगा. अगर उन्हें हमारी जरूरत होगी तो वे हमसे संपर्क करेंगे.”

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ग्रेट निकोबार द्वीप में नौ अरब डॉलर के निवेश की योजना बना रही है. जिससे इस द्वीप को विशाल सैन्य और व्यापार केंद्र के रूप में बदला जा सके.

लेकिन इन योजनाओं ने पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों और नागरिक संस्थाओं की चिंता बढ़ा दी है. इनका मानना है कि इस मेगा प्रोजेक्ट से द्वीप की अनूठी जैव विविधता और पर्यावरण के साथ साथ शोम्पेन भी बर्बाद हो सकते हैं.

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