पिछले पांच वर्षों में झारखंड में जनसांख्यिकी में कथित बदलाव को लेकर हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार पर भाजपा लगातार हमलावर हो रही है.
असम के मुख्यमंत्री और झारखंड भाजपा के चुनाव सह प्रभारी हिमंत बिस्व सरमा बार-बार इस मुद्दे पर सोरेन सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं.
वहीं गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने पिछले हफ्ते लोकसभा में संताल परगना की बदल रही डेमोग्राफी, आदिवासियों की घटती जनसंख्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया था.
अब पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस मामले को उठाया है और कहा कि “जनसांख्यिकी परिवर्तन” ने आदिवासी ‘अस्मिता’ को चोट पहुंचाई है क्योंकि समुदाय ने “लव जिहाद के माध्यम से न केवल जमीन खोई है बल्कि अपनी बेटियों को भी खो दिया है.”
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को अब आदिवासी भूमि स्वामित्व की स्थिति के विवरण के साथ एक “श्वेत पत्र” लाना चाहिए.
एक इंटरव्यु में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा, “सत्तारूढ़ हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार अपने वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए जनसांख्यिकी में तेजी से बदलाव के बारे में चुप है. जनसांख्यिकी में परिवर्तन आज केवल संथाल परगना संभाग के पाकुड़ और साहिबगंज जिलों तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे राज्य में जंगल की आग की तरह फैल रहा है. यहां तक कि कोल्हान संभाग भी सुरक्षित नहीं है.”
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उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी आबादी न केवल अपनी जमीन खो रही है बल्कि अपनी बेटियों को भी खो रही है क्योंकि लड़कियां लव जिहाद का शिकार बन गई हैं.
मुंडा ने दावा किया कि संथाल परगना के कई इलाकों में पांच साल पहले के आदिवासी भूमिधारक न केवल अब भूमिहीन हैं बल्कि उन्हें अपने पूर्वजों के गांवों में प्रवेश न करने की धमकी भी दी जा रही है.
मुंडा ने यह भी कहा, “सरकार को वर्तमान में आदिवासी भूमि के स्वामित्व को भी सार्वजनिक करना चाहिए. इससे जनसांख्यिकी और आदिवासी भूमि के स्वामित्व में परिवर्तन स्पष्ट रूप से सामने आ जाएगा, जिसे भाजपा उजागर कर रही है.”
उन्होंने कांग्रेस पदाधिकारी अजय कुमार के हालिया दावों को खारिज कर दिया, जिन्होंने आरोप लगाया था कि जनसांख्यिकीय परिवर्तन के लिए पूर्व की रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार जिम्मेदार है.
अर्जुन मुंडा ने कहा, “हेमंत सरकार में प्रमुख भागीदार कांग्रेस की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति को छिपाने के लिए अजय ने पिछले कुछ वर्षों में झारखंड में जनसांख्यिकी स्थिति में हुए बदलाव को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार कर लिया है, जिसे अब तक झामुमो, कांग्रेस या राजद स्वीकार नहीं कर रहे थे. पहले बंगाल में ममता सरकार द्वारा आदिवासियों को संरक्षण दिया जा रहा था, अब हेमंत सरकार भी उसी तर्ज पर चल रही है. यहां तक कि जमशेदपुर और कोल्हान के अन्य इलाकों में भी अनुसूचित भूमि का अवैध हस्तांतरण हर दिन हो रहा है.”
झारखंड की जनसांख्यिकी में बदलाव के भाजपा के दावों में कितनी सच्चाई है?
हाल के दिनों में भाजपा के प्रमुख नेताओं द्वारा झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ होने, आदिवासियों की जनसंख्या कम होने, लव जिहाद और लैंड जिहाद होने जैसे बयान दिए गए हैं.
भाजपा नेताओं के इन दावों पर सवाल उठाते हुए झारखंड जनाधिकार महासभा ने ‘लोकतंत्र बचाओं अभियान’ के तहत एक बयान जारी किया है. यह अभियान झारखंड के कई जन संगठनों और सामाजित कार्यकर्ताओं का लोकतंत्र व संविधान को बचाने का साझा प्रयास है.
इस बयान में भाजपा नेताओं के दावों को तथ्यों से परे बताते हुए कहा गया है, ‘यह बोला जा रहा है कि झारखंड बनने के बाद संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 16 फीसदी कम हुई है और मुसलमानों की 13 फीसदी बढ़ी है. सांसद निशिकांत दुबे ने तो संसद में बयान दिया कि वर्ष 2000 में संथाल परगना में आदिवासी 36 फीसदी थे और अब 26 फीसदी हैं और इसके जिम्मेवार बांग्लादेशी घुसपैठिए (मुसलमान) हैं. यह सभी दावे तथ्य से परे हैं. दुख की बात है कि ज्यादातर मीडिया भी बिना फैक्ट को जांचे ये दावे फैला रही है.’
प्रेस विज्ञप्ति में दिए गए आंकड़ों के हवाले से कहा गया है, ‘1951 की जनगणना के मुताबिक, झारखंड में 36 फीसदी आदिवासी थे. वहीं 1991 में राज्य में 27.67 फीसदी आदिवासी थे और 12.18 फीसदी मुसलमान. आखिरी जनगणना (2011) के मुताबिक, राज्य में 26.21 फीसदी आदिवासी थे और 14.53 फीसदी मुसलमान. वहीं संथाल परगना में आदिवासियों का अनुपात 2001 में 29.91 फीसदी से 2011 में 28.11 फीसदी हुआ. इसलिए भाजपा का 16 फीसदी और 10 फीसदी का दावा झूठ है.’
बयान में कहा गया है, ‘भाजपा आदिवासियों के जनसंख्या अनुपात में कमी के मूल कारणों पर बात न करके गलत आंकड़े पेश करके केवल धार्मिक सांप्रदायिकता फैलाना और ध्रुवीकरण करना चाहती है.’