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झारखंड के कुर्मी समुदाय मांग पूरी ना होने तक नहीं देंगे बीजेपी को वोट

कुर्मी आदिवासी सालों से अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग कर रहे हैं. पिछले साल कुर्मी आदिवासी रेलवे रोको आंदोलन के चलते सुर्खियों में रहे थे. अब झारखंड के कुर्मी आदिवासियों ने यह फैसला किया है कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होती, वे बीजेपी को वोट नहीं देंगे.

आदिवासी कुर्मी समाज(Adivasi Kurmi Samaj) नामक संगठन ने जानकारी दी की झारखंड में रहने वाले कुर्मी आदिवासी (Kurmi Community) बीजेपी पार्टी को वोट नहीं देंगे.

कुर्मी या कुड़मी आदिवासियों की दो मुख्य मांग है, पहली अनुसूचित जनजाति (ST Status) का दर्जा मिलना और दूसरी कुरमाली भाषा को आठवी अनुसूची में शामिल करना.

कुर्मी आदिवासियों ने यह फैसला किया है कि जब तक उनकी यह दोनों मांगे पूरी नहीं हो जाती, तब तक वे अपना विरोध ज़ारी रखेंगे.

आदिवासी कुर्मी समाज के केंद्रीय समिति के प्रवक्ता, हरमोहन महतो ने कहा कि 2014 में जब से बीजेपी केंद्र में आई है. हमने उन्हें कई प्रस्ताव और संकल्प भेजे हैं. लेकिन उन्होंने इस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है.

इसके अलावा उन्होंने अपनी नराज़गी जताते हुए कहा कि जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कुर्मी समुदाय को नाराज किया है.

2004 में अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री थे. उस समय कुर्मी आदिवासियों के मांगों को लेकर विधानसभा में विधेयक पारित हो गया था.

इस विधेयक को केंद्र पर भी प्रस्तावित किया गया था. लेकिन यह केंद्र में पारित नहीं हो पाया.

हरमोहन महतो का कहना है कि अर्जुन मुंडा कुर्मी आदिवासियों के इस प्रस्ताव पर अब कार्रवाई कर सकते हैं, लेकिन वह ऐसा करने की जगह अनाप-शनाप बातें कर रहे हैं.

2004 में झारखंड सरकार ने आदिवासी अनुसंधान संस्थान (Tribal Research Institute) को कुर्मी आदिवासियों की मांग से संबंधित आवेदन भेजा था.

हालांकि इस मुद्दे पर आदिवासी अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट उनके पक्ष में नहीं थी. इसलिए केंद्र ने उन्हें सूची में शामिल करने से इनकार कर दिया.

पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में रहने वाले कुर्मी आदिवासी संगठन अपनी मांग को लेकर सालों से आंदोलन कर रहे हैं.

पिछले साल सिंतबर में कुर्मी आदिवासी संगठन ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड की नौ रेलवे स्टेशन पर रोक लगा दी थी.

कुर्मी आदिवासी संगठन के रेलवे रोको आंदोलन के चलते, वे पिछले साल काफी सुर्खियों में भी रहे थे.

कुर्मी या कुड़मी समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा में 13 जातियों में से 12 जातियों को 1950 में अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. हालांकि कुर्मी जाति को इससे बाहर रखा गया था.

जिसके बाद से 73 वर्षों से कुर्मी समुदाय अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग कर रहे हैं.

कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग संसद के अलावा झारखंड और पश्चिम बंगाल की विधान सभाओं में भी उठाई जा चुकी है.

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