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Lok Sabha Election 2024: द्रोपदी मुर्मू के नाम पर बीजेपी और बीजेडी दोनों ही मयूरभंज जीतना चाहते हैं

मयूरभंज राज्य की एकमात्र लोकसभा सीट है, जहां झामुमो की हिस्सेदारी है और पार्टी ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बहन और इसके संस्थापक शिबू सोरेन की बेटी अंजनी सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया है और इस लड़ाई को गंभीरता से ले रही है. हालांकि मुख्य मुकाबला अभी भी बीजेडी और बीजेपी उम्मीदवार के बीच नजर आ रहा है.)

भारत की राष्ट्रपति बनने वाली पहली आदिवासी महिला और महिलाओं और हाशिए पर रहने वालों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता के उदाहरण के रूप में भाजपा द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) का हवाला देती रही है.

पिछले साल विधानसभा चुनावों के दौरान राष्ट्रपति मुर्मू का भाजपा नेताओं के भाषणों में अक्सर उल्लेख हुआ किया गया था. इस बार भी ओडिशा में चुनाव प्रचार करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने “ओडिशा की बेटी” को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर नामांकित करने के अपनी सरकार के फैसले के बारे में कई बार बात की है.

पूर्वी राज्य में किसी भी अन्य स्थान से अधिक राष्ट्रपति अपने गृह जिले मयूरभंज (Mayurbhanj) में भाजपा के लिए एक कैंपेन प्वाइंट हैं, जहां 1 जून को लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में मतदान होगा.

भाजपा आदिवासी बहुल जिले में अपनी जीत को दोहराने के लिए मुर्मू फैक्टर पर बहुत अधिक निर्भर है. वहीं पीएम मोदी बुधवार यानि आज जिले के बारीपदा शहर पहुंचेंगे.

द्रौपदी मुर्मू संथाल जनजाति से हैं जिनकी पड़ोसी राज्य झारखंड के साथ-साथ ओडिशा के मयूरभंज और क्योंझर जिलों में प्रमुख उपस्थिति है.

बांगिरिपोसी शहर में किराने की दुकान चलाने वाले स्थानीय धीरेन मारंडी ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “हमें द्रौपदी मुर्मू पर गर्व है जो अपने जीवन में कई बाधाओं को पार करते हुए यहां तक ​​​​पहुंची हैं जहां वह आज हैं. अगर किसी अन्य कारण से नहीं तो मैं इस बार मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के फैसले के कारण भाजपा को वोट दूंगा.”

राष्ट्रपति मुर्मू ने 1997 में मयूरभंज में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी और रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद (नगर पंचायत) से पार्षद के रूप में चुनी गईं. उन्होंने परिषद की उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया.

इसके बाद द्रौपदी मुर्मू पहली बार 2000 में विधानसभा के लिए चुनी गईं और उन्होंने नवीन पटनायक सरकार में मंत्री के रूप में काम किया. उनके पास वाणिज्य और परिवहन, और मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास जैसे विभाग थे. 2004 के चुनावों में उन्होंने अपनी सीट बरकरार रखी.

भाजपा और इंडिया गठबंधन

भाजपा ने पहली बार 1998 में मयूरभंज सीट जीती थी, जो अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित है. और फिर 1999 में फिर से जीती, जब उसके उम्मीदवार सालखन मुर्मू थे जिन्होंने झारखंड दिसोम पार्टी की स्थापना की.

2004 में सुदाम मरांडी, जो अब बीजू जनता दल (BJD) में हैं, ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के टिकट पर निर्वाचन क्षेत्र जीता. बीजेडी ने अगले दो बार सीट जीती. लेकिन 2019 के चुनाव में भाजपा ने नियंत्रण हासिल किया और केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री और जल शक्ति बिश्वेश्वर टुडू के दम पर ये सीट जीती.

भाजपा ने संसदीय सीट के तहत सात विधानसभा क्षेत्रों में से पांच जीतकर मयूरभंज में भी अपना दबदबा कायम किया.

लेकिन अपने प्रदर्शन को दोहराने और सत्ता विरोधी लहर की चुनौती का सामना करने के लिए इस बार भाजपा ने टुडू को हटा दिया है और रायरंगपुर के मौजूदा विधायक नबा चरण माझी को मैदान में उतारा है.  

रायरंगपुर सीट का राष्ट्रपति मुर्मू ने 2009 तक दो बार प्रतिनिधित्व किया था.

माझी का मुकाबला सुदाम मारंडी से है जो अब पटनायक कैबिनेट में मंत्री हैं और बांगिरिपोसी से मौजूदा विधायक हैं.

वहीं इंडिया गठबंधन के लिए जेएमएम फिर से मयूरभंज में बढ़त बनाए हुए है. इसकी उम्मीदवार झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की बहन और जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन की बेटी अंजनी हैं.

लेकिन कई मतदाताओं के लिए अंजनी, जो सरसकाना विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा चुनाव में भी हैं, एक व्यवहार्य विकल्प नहीं लगती हैं. 2019 में वह 11.78 प्रतिशत वोट शेयर के साथ तीसरे स्थान पर रहीं थी.

बारीपदा कस्बे के टैक्सी चालक फकीरा हेम्ब्रम ने कहा, “शिबू सोरेन की बेटी ने भी पिछली बार चुनाव लड़ा था लेकिन वह अपनी छाप नहीं छोड़ पाई थी. मयूरभंज में एक समय मजबूत उपस्थिति रखने वाली जेएमएम अब 2014 के चुनावों से पहले सुदाम मरांडी के पार्टी से बाहर होने के बाद बहुत कमजोर हो गई है.”

BJD का गेम प्लान

बीजेडी ने 2019 की हार के बाद मयूरभंज में स्ट्रक्चरल सुधार करना शुरू कर दिया था. पार्टी ने अपने संगठनात्मक सचिव प्रणब प्रकाश दास को मयूरभंज पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया. दास ने पार्टी को जिले में फिर से जमीन हासिल करने में मदद की, जो 2022 के पंचायत चुनावों में स्पष्ट हुआ जब बीजद ने जिला परिषद का गठन किया.

इस बार पार्टी आदिवासियों के लिए पटनायक सरकार की कल्याणकारी पहलों पर भरोसा कर रही है. साथ ही भाजपा को द्रौपदी मुर्मू को अपनी सफलता की कहानी के रूप में पेश करने का मौका नहीं दे रही है.

24 मई को मयूरभंज में एक चुनावी रैली में सीएम पटनायक ने राष्ट्रपति मुर्मू को अपनी भौनी (बहन) बताया और कहा कि बीजद ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करता है. राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी बीजेडी ने मुर्मू की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए अतिरिक्त प्रयास किए थे.

बीजेडी राष्ट्रपति चुनाव में मुर्मू के लिए अपने समर्थन को आदिवासी लोगों और महिलाओं के प्रति अपने सम्मान के सबूत के तौर पर पेश कर रही है. वहीं मयूरभंज में विकास को भी उजागर कर रही है.

राज्य सरकार ने बारिपदा में एक मेडिकल कॉलेज का नाम प्रसिद्ध संथाली कवि और ओल चिकी लिपि के निर्माता पंडित रघुनाथ मुर्मू के नाम पर रखा है.

पार्टी का दावा है कि उनकी सरकार ने रघुनाथ मुर्मू के जन्मस्थान के विकास के लिए 13 करोड़ रुपये भी मंजूर किए हैं.

इस सबके अलावा बीजद की उम्मीदें अपने उम्मीदवार सुदाम मारंडी पर टिकी हैं. इसलिए सीएम पटनायक ने अपने अभियान को तेज़ कर दिया है और इसे विकास और आदिवासी गौरव के इर्द-गिर्द केंद्रित कर दिया है.

सुदाम मारंडी, बांगिरिपोसी से पांच बार विधायक रह चुके हैं. जहां से उन्होंने पहली बार 1990 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी. उन्होंने पिछली दो बार बीजेडी के टिकट पर इस निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की थी.

अपने गढ़ को बरकरार रखने के लिए मारंडी की पत्नी रंजीता विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं.

वहीं राज्य के ज्यादातर हिस्सों में मतदान समाप्त होने के बाद पार्टी ने मयूरभंज के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में अभियान की देखरेख के लिए अपने कई वरिष्ठ नेताओं को तैनात किया है.

2019 के नतीजे

पिछले आम चुनाव में मयूरभंज में बीजेपी उम्मीदवार बिश्वेश्वर टुडू ने कड़े मुक़ाबले में सीट जीती थी. उन्होंने बीजेडी के देबाशीष मारंडी को हराया था. बिश्वेश्वर को 4.83 लाख और देबाशीश को 4.58 लाख वोट मिले थे.

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