महाराष्ट्र और झारखंड में चुनावों की तारीख़ें घोषित हो चुकी हैं. इन दोनों ही राज्यों में बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी है, जो यह तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी कि कौन सत्ता पर काबिज होगा.
महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में से 25 अनुसूचित जनजातियों (Scheduled tribes) के लिए आरक्षित हैं. जबकि झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 28 आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं.
हाल के लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र और झारखंड दोनों ही जगह पर बीजेपी और उसके गठबंधन को आदिवासी इलाकों में हार देखनी पड़ी थी.
इसलिए यह माना जा रहा है कि इन दोनों ही राज्यों में आदिवासी बीजेपी से नाराज़ है. इसलिए विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी को इन दोनों ही राज्यों की उन सीटों पर मुश्किलें हो सकती हैं जहां पर आदिवासी बहुसंख्यक है.
महाराष्ट्र
2011 की जनगणना के मुताबिक, महाराष्ट्र की जनसंख्या में अनुसूचित जनजातियों की हिस्सेदारी 1.05 करोड़ है. राज्य के 36 जिलों में से 21 में कम से कम 1 लाख आदिवासी हैं. सबसे बड़े आदिवासी समुदाय भील, गोंड, कोली और वर्ली हैं, जिनकी कुल संख्या करीब 65 लाख है. इसके अलावा तीन विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूहों (PVTG) के लगभग 5 लाख लोग हैं.
कुल मिलाकर 38 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां अनुसूचित जनजातियों की आबादी कम से कम 20 फीसदी है.
2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने सभी 4 एसटी-आरक्षित संसदीय सीटों को बरकरार रखने में कामयाबी हासिल की, जिसमें भाजपा ने तीन और शिवसेना ने एक सीट जीती थी.
हालांकि, उस साल के विधानसभा चुनावों में भाजपा की संख्या घटकर 8 एसटी सीटें रह गई (2014 में 11 से) जबकि शिवसेना ने तीन सीटें जीतीं. वहीं एनसीपी ने 6 आदिवासी सीटें जीतीं और उसकी सहयोगी कांग्रेस ने चार सीटें जीतीं. छोटी पार्टियों और निर्दलीयों ने बाकी चार निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की.
आदिवासी सीटों पर वोट शेयर के मामले में भाजपा 2014 में 27.92 फीसदी से मामूली रूप से गिरकर 26.92 फीसदी पर आ गई. जबकि कांग्रेस 21.9 फीसदी से गिरकर 18.11 फीसदी पर आ गई. एनसीपी 18.65 फीसदी से 15.71 फीसदी और शिवसेना 13.49 फीसदी से 12.55 फीसदी पर आ गई.
इसके बाद राज्य में एक बड़ा राजनीतिक बदलाव आया जब महा विकास अघाड़ी (MVA) और महायुति गठबंधन का उदय हुआ, जिसमें दोनों खेमों में तीन-तीन दल शामिल थे.
इस साल के लोकसभा चुनावों में भाजपा को आदिवासी सीटों पर बड़ा उलटफेर झेलना पड़ा. वह सिर्फ़ 1 सीट पर सिमट गई, जबकि कांग्रेस ने 2 सीटें जीतीं और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) ने 1 सीट जीती.
विधानसभा-खंड स्तर पर इन परिणामों को विभाजित करने से पता चलता है कि भाजपा ने 9 एसटी-आरक्षित क्षेत्रों में बढ़त हासिल की. जबकि एमवीए दलों ने 16 (कांग्रेस ने 9, शिवसेना (यूबीटी) ने 4 और एनसीपी (एसपी) ने 2) में बढ़त हासिल की. एक खंड में एक निर्दलीय ने बढ़त हासिल की.
एमवीए इस प्रदर्शन से आत्मविश्वास हासिल करेगा. जबकि सत्तारूढ़ महायुति ब्लॉक जो आदिवासियों के बीच अपनी जमीन फिर से हासिल करना चाहता है उसके सामने एक समस्या है. क्योंकि धनगर समुदाय ने एसटी दर्जे की अपनी मांग को फिर से उठा लिया है, जिससे एसटी समुदायों का विरोध शुरू हो गया है.
झारखंड
2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड की कुल आबादी में 26 फीसदी आदिवासी हैं, जिनकी संख्या राज्य के 24 जिलों में से 21 में कम से कम 1 लाख है, जो उनके चुनावी महत्व को दर्शाता है.
सबसे अधिक आबादी वाले समुदाय संथाल हैं, जिनकी संख्या अकेले 27.55 लाख है, उसके बाद ओरांव (17.17 लाख) और मुंडा (12.29 लाख) हैं. अन्य प्रमुख आदिवासी समुदाय हो, खरवार, लोहरा और भुमजी हैं.
43 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी कम से कम 20 फीसदी आबादी बनाते हैं और 22 सीटों पर वे आधी से ज़्यादा आबादी बनाते हैं.
2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने पांच साल पहले की तरह तीन आदिवासी सीटें जीतीं. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने एक-एक सीट जीती.
इसके महीनों बाद हुए विधानसभा चुनावों में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन सत्ता में आया. जब झामुमो ने एसटी-आरक्षित सीटों पर अपना दबदबा बनाया और 28 में से 19 सीटें जीतीं. इसके बाद कांग्रेस ने 6 सीटें जीतीं.
वहीं भाजपा की संख्या 11 से घटकर 2 हो गई और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) ने एक सीट जीती. अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा 24 एसटी सीटों पर दूसरे स्थान पर रही.
आदिवासी सीटों पर झामुमो की बेहतरीन बढ़त इस वजह से हुई कि पार्टी ने न सिर्फ 2014 में जीती गई 12 सीटों को बरकरार रखा बल्कि उन छह सीटों को भी जीतने में कामयाब रही, जो भाजपा ने पांच साल पहले जीती थीं.
झामुमो ने ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) से एक सीट भी छीनी. भाजपा ने 2014 की एक सीट बरकरार रखी और झामुमो से एक सीट छीन ली.
2014 की तरह जब वोट शेयर में भाजपा से थोड़ा आगे थी, झामुमो ने 34.16 फीसदी वोट जीते, जबकि भाजपा के पास 33.5 फीसदी वोट शेयर था.
इस बार झामुमो के नेतृत्व वाला गठबंधन फिर से आदिवासी सीटों पर अपना प्रदर्शन दोहराना चाह रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी ने उसे लोकसभा चुनावों से पहले सहानुभूति कार्ड खेलने का मौका दिया है.
लोकसभा चुनाव में झामुमो और कांग्रेस ने सभी 5 एसटी-आरक्षित संसदीय सीटें जीतीं. जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने बाकी 9 लोकसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की.
आदिवासी आरक्षित सीटों में जेएमएम ने 10 विधानसभा क्षेत्रों में, कांग्रेस ने 13 में और भाजपा ने पांच में बढ़त हासिल की.
मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए राजनीतिक बयानबाजी करते हुए, भाजपा ने आदिवासी क्षेत्रों में कथित बाहरी लोगों की घुसपैठ का मुद्दा उठाया है. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वादा किया है कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो वह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लागू करेगी.
इसके अलावा पार्टी ने आदिवासी समुदाय तक पहुंचने के लिए कई अन्य प्रयास भी किए हैं, जिसमें बिरसा मुंडा जैसे आदिवासी प्रतीकों को याद करना और पिछले साल झारखंड में 24 हज़ार करोड़ रुपये के पीएम पीवीटीजी विकास मिशन को लॉन्च करना शामिल है.
महाराष्ट्र में सभी 288 सीटों पर एक ही चरण में 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. वहीं झारखंड की सभी 81 सीटों के लिए दो चरण में मतदान होंगे. पहले चरण में 13 और दूसरे चरण में 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. दोनों राज्यों के नतीजे 23 नवंबर को आएंगे.