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झारखंड : चुनाव से पहले बीजेपी की बढ़ी मुश्किलें, तीन पूर्व विधायकों समेत 6 नेता JMM में शामिल

इससे पहले पिछले हफ्ते तीन बार के भाजपा विधायक केदार हाजरा और उसकी सहयोगी आजसू पार्टी के उमाकांत रजक भी सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हो गए थे.

झारखंड में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए 66 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी के बाद भाजपा में इस्तीफों का दौर जारी है. चुनाव से पहले भाजपा के तीन पूर्व विधायक सोवमार को झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) में शामिल हो गए. लुइस मरांडी, कुणाल सारंगी और लक्ष्मण टुडू ने झामुमो का दामन थाम लिया.

यह घटनाक्रम तीन बार के भाजपा विधायक केदार हाजरा और आजसू पार्टी के नेता उमाकांत रजक के झामुमो में शामिल होने के दो दिन बाद हुआ है.

लुइस के झामुमो में शामिल होने के तुरंत बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनका पार्टी में स्वागत किया. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘हम पूर्व भाजपा उपाध्यक्ष और वरिष्ठ नेता आदरणीय लुइस मरांडी जी का जेएमएम परिवार में हार्दिक स्वागत करते हैं.’

वहीं लुईस ने कहा, “पार्टी (भाजपा) के भीतर गुटबाजी चरम पर है. समर्पित कार्यकर्ताओं की आस्था और निष्ठा पर संदेह किया जा रहा है, जबकि खुले मंचों पर उनकी भावनाओं का अनादर किया जा रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा उम्मीदवार सीता सोरेन ने जिस तरह से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ मेरे जैसे समर्पित सच्चे कार्यकर्ताओं पर छल और विश्वासघात का आरोप लगाया है, उससे पता चलता है कि पार्टी के भीतर अराजकता तेजी से फैल रही है.”

लुईस मरांडी का झामुमो में शामिल होना बड़ी बात है क्योंकि उन्होंने ही 2014 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के खिलाफ जीत दर्ज कर दुमका में पहली बार कमल खिलाया था. पहली बार दुमका में लुईस की वजह से बीजेपी जीत हासिल कर पाई थी.

जेएमएम में शामिल होने वाले अन्य नेताओं में सरायकेला से बीजेपी के पूर्व उम्मीदवार गणेश महली, बहरगोड़ा से पूर्व उम्मीदवार कुणाल षाडंगी, बास्को बेहरा, बारी मुर्मू और लक्ष्मण टुडू के नाम शामिल हैं. सारठ के पूर्व विधायक चुन्ना सिंह के भी जेएमएम में शामिल होने की खबर है, जो टिकट न मिलने से नाराज बताए जा रहे हैं.

बीजेपी पार्टी कार्यकर्ताओं ने पार्टी की “वंशवादी राजनीति” और अंदरूनी कलह को लेकर चिंता जताई है.

भाजपा के एक नेता ने कहा कि पार्टी को “कार्यकर्ताओं पर ध्यान न देने” की कीमत चुकानी पड़ सकती है. उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों की घोषणा से कार्यकर्ताओं के मनोबल में व्यापक गिरावट आई है.

एक अन्य नेता ने कहा कि उन्हें “दुख” हुआ है. उन्होंने कहा, “अगर आप लिस्ट देखें तो पार्टी ने अपने समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए उन लोगों पर भरोसा जताया है जो दूसरी पार्टियों से भाजपा में शामिल हुए हैं. अब तक घोषित 66 उम्मीदवारों में से आधे से ज़्यादा ऐसे हैं जो दूसरी पार्टियों से आए हैं.”

दरअसल, उम्मीदवारों की घोषणा के बाद से एक दर्जन से अधिक भाजपा विधायक और नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. जिनमें से कई सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) में शामिल हो गए हैं, जबकि अन्य निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

भाजपा के जिन नेताओं ने इस्तीफा दिया है और जिनके निर्दलीय चुनाव लड़ने की संभावना है, उनमें सत्यानंद झा बटुल्ल, मिस्त्री सोरेन, राज्य कार्यसमिति सदस्य संदीप वर्मा और गणेश महली (सरायकेला) शामिल हैं.

पार्टी कार्यकर्ताओं ने भाजपा पर पूर्व मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों के रिश्तेदारों को मनोनीत करके “सत्ता केंद्रों की सनक और इच्छाओं को पूरा करने” का भी आरोप लगाया है.

भाजपा ने अन्य उम्मीदवारों के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास की पुत्रवधू पूर्णिमा दास साहू, अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा, चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन, सीपी चौधरी के भाई रोशन लाल, जो उम्मीदवारों की घोषणा से कुछ घंटे पहले भाजपा में शामिल हुए थे. और भाजपा सांसद ढुल्लू महतो के भाई शत्रुघ्न महतो को टिकट दिया है.

एनडीए ने पहले घोषणा की थी कि भाजपा 81 विधानसभा सीटों में से 66 पर चुनाव लड़ेगी. जबकि सहयोगी आजसू पार्टी 10, जेडी(यू) 2 और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एक सीट पर चुनाव लड़ेंगे.

वहीं कुछ अन्य नेताओं ने भाजपा द्वारा धनवार की सामान्य सीट से आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी को मैदान में उतारने पर निराशा व्यक्त की, जबकि अन्य ने कहा कि पार्टी को उम्मीदवार तय करते समय लोकसभा में अपने प्रदर्शन को ध्यान में रखना चाहिए था.

एक भाजपा नेता ने कहा कि सीता सोरेन और गीता कोरा लोकसभा चुनाव हार गईं, लेकिन उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए चुना गया है. दूसरी ओर पार्टी के राज्य प्रमुख और आदिवासी चेहरा मरांडी एक गैर-आदिवासी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. क्या यह नहीं दर्शाता है कि 1999 के लोकसभा चुनावों में दुमका से झामुमो के संस्थापक शिबू सोरेन को हराने वाले मरांडी इस बार एसटी-आरक्षित सीट जीतने के प्रति आश्वस्त नहीं हैं?

हालांकि, एक अन्य भाजपा नेता ने पार्टी का बचाव किया और दावा किया कि “जीतने की क्षमता” ही एकमात्र मानदंड था जिस पर विचार किया गया था.

जबकि पार्टी के झारखंड चुनाव प्रभारी और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने किसी भी बड़े विद्रोह से इनकार किया.

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